प्रियदर्शी रंजन
यूं तो नीतीश कुमार गाहे बगाहे खुद को वी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करने से नहीं चूकते। मगर विधानसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास से लबरेज बिहार के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदारों में शुमार होने का सक्रिय संकेत दे रहे हैं। महागठबंधन की जीत के बाद जदयू की पहली राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में उन्हें भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करने की पार्टी नेताओं में ललक दिखी थी जिसे अब अमलीजामा पहनाया जा रहा है। अप्रैल-मई में पांच राज्यों में हो रहे विधानसभ चुनाव में जदयू जोर आजमाईश कर रही है। इसे नीतीश को भवी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करने से पूर्व की कसरत माना जा रहा है।
सुशासन बाबू ने अपनी छवि राष्ट्रीय बनाने के लिए अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव में भी हिस्सा लेने का ऐलान किया है। यही नहीं छोटे जानाधार वाली पार्टियों को भी बड़े पैमाने पर जदयू में विलय कराने की तैयारी है। इससे भजपा और कांग्रेस के बाद जदयू तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभर सकेगी। इस मुहिम के तहत केरल की समाजवादी जनता पार्टी का जदयू में विलय भी हो चुका है। यूपी में चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) को जदयू में विलय कराने की तैयारी पूरी हो चुकी है। झारखंड में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भी जदयू में विलय होना तय है।
इन तमाम कसरतों के बीच सबसे खास बात यह है कि नीतीश कुमार की राष्ट्रीय छवि वाली ललक को कांग्रस हवा दे रही है। या यूं कहें कि कांगे्रस ने ही पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार की राष्ट्रीय नेता बनने की मृतप्राय इच्छा को संजवीनी दी है तो गलत नहीं होगा। इसका ताजा उदाहरण है केरल में कांगे्रस के साथ गठबंधन वाली समाजवादी जनता दल का जदयू में विलय। समाजवादी जनता दल के केरल में दो विधायक हैं। जदयू में विलय के बाद समाजवादी जनता दल के सुप्रीमो एमपी वीरेंद्र कुमार को राज्यसभ में कांग्रेस के सहयोग से भेजा चुका है। उन्हें केरल जदयू का अध्यक्ष भी बनाया गया है। जदयू वहां कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन की ओर से नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी। केरल के राजनीतिक मामलों के जानकार व फार्मर फ्रंट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष केजे जोसमोन का मानना है कि कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर दांव खेला है जिसका लाभ वह केरल सहित देश के अन्य राज्यों में भी लेना चाहती है।
इसी तरह यूपी में भी चौधरी अजीत सिंह को राज्यसभ में भेजने की खबर गर्म है। माना जा रहा है कि रालोद के जदयू में विलय के बाद अजीत सिंह को जदयू की ओर से राज्यसभ में भेजा जाएगा। यूपी विधानसभ में रालोद और कांग्रेस के विधायकों को मिलाकर राज्यसभ की एक सीट बनती है। वैसे अजीत सिंह का पहले से ही यूपी में कांग्रेस के साथ तालमेल है। बावजूद इसके जदयू की ओर से उन्हें राज्यसभ भेजा जाना राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले नतीश कुमार को मुखर करने की मुहिम के तौर पर देखा जा रहा है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश की इस छवि को महागठबंधन के नेता लालू यादव पचा पाएंगे? लालू के बडेÞ बेटे और बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने कुछ दिनों पूर्व ही जदयू की ओर से नीतीश को भवी प्रधानमंत्री बताए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया था। हालांकि जदयू की विलय की राजनीति पर लालू या उनके कुनबे की ओर से साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है मगर नीतीश के उलट बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। उत्तराखंड सियासी प्रकरण इसका ताजा उदाहरण है। नीतीश कुमार ने भजपा को आडेÞ हाथ लेते हुए कहा कि अगर इस तरह से सरकार बनाई या गिराई जा सकती है तो संविधान के दसवें अनुच्छेद को समाप्त कर देना चाहिए। वहीं लालू ने इस प्रकरण पर कहा कि उत्तराखंड में वही हो रहा जो अन्य राज्यों में हो चुका है। इसमें नया कुछ नहीं है।
लालू और नीतीश के सुर कन्हैया कुमार प्रकरण पर भी एक नहीं रहे। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया के पक्ष में नीतीश लागातार आवाज उठाते रहे। वहीं लालू ने रूटीन बयान के अलावा कुछ खास नहीं कहा। कहा जा रहा है नीतीश भजपा के खिलाफ वाम दलों को भी अपने पाले में करना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल चुनाव में वाम दलों के साथ जदयू का गठबंधन भी हुआ है। वहां दो सीटों पर जदयू भग्य आजमा रही। जदयू के साथ तालमेल और राजद को नजरअंदाज किए जाने से लालू वाम दलों से भी नाराज बाताए जा रहे हैं। राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन से जब इस बाबत बात की गई तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यह बड़े स्तर का मामला है। हम कुछ नहीं कह सकते। मगर सूत्र बता रहे हैं कि लालू इन दिनों भजपा से ज्यादा परेशान नीतीश कुमार के बढ़ते कद से हैं।
एक सवाल यह भी है कि राहुल गांधी के होते हुए नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर करने से कांग्रेस को क्या फायदा होगा? नीतीश कुमार के करीबी डॉ. रजी अहमद कहते हैं कि कांगे्रस नेतृत्व भजपा और कांगे्रस के बीच गुड गवर्नेंस की लड़ाई में नीतीश कुमार का इस्तेमाल कर रही है। नरेंद्र मोदी के विकास पुरुष की तथाकथित छवि से मुकाबले के लिए कोई चेहरा नहीं है। नीतीश कुमार देशभर में गुड गवर्नेंस और विकास के लिए जाने जाते हैं। फिर, नीतीश कुमार से कांग्रेस को कोई बड़ा खतरा नजर नहीं आता है। राजनीतिक मामलों के जानकर ब्रजेश मिश्रा मानते हैं कि देशभर में अकेले दम पर खड़ा होने की कुव्वत कांग्रेस खो चुकी है। कुछ क्षेत्रीय दल जरूर कांग्रेस के साथ हैं मगर उनका भी हाल ठीक नहीं है। कांग्रेस बिहार की सफलता को अन्य राज्यों में भी भुनाने की कोशिश कर रही है।