रालोद के जदयू में विलय को यूपी में भाजपा को नीतीश की चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। आप इसे कैसे देखते हैं?
क्षेत्रीय नेताओं की राष्ट्रीय बनने की यह बीमारी पुरानी है। नीतीश के अलावा और कई नेता हैं जो अपनी सीमा लांघना चाहते हैं। यूपी में नीतीश कुमार का जनाधार भी नहीं है। वे मोदी के मुकाबले खड़ा नहीं हो सकते।
विलय के बाद अजित सिंह का जानाधार तो जुड़ेगा?
लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह और उनकी पार्टी का हाल सब देख चुके हैं। वे खुद भी नहीं जीत सके तो दूसरों को किस तरह चुनाव जितवाएंगे।
रालोद को किसानों का दल माना जाता है, खासकर पश्चिमी यूपी में। क्या वे किसानों का वोट नहीं ले पाएंगे?
चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता थे। उनके साथ किसानों का जुड़ाव था। वे सच्चे और ईमानदार थे। जबकि अजीत सिंह की मदद से ही विजय माल्या पहली बार राज्यसभा पहुंचा था। माल्या जैसे लोगों के परेड करने वाले किसानों के नेता नहीं हो सकते।
मगर प्रशांत किशोर के बारे में क्या कहेगें जो यूपी में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने का काम करेंगे?
उनकी अब तक की कहानी दूसरों के कंधों पर सवारी की रही है। वे मोदी लहर में भाजपा के साथ और बिहार में जातीय गणित जब महागठबंधन की ओर था तो नीतीश के साथ थे। उन्हें राजनीति की समझ नहीं है। यह उन्हें यूपी में समझ आ जाएगा।