भाजपा की राह आसान नहीं

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2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के असर से सीमांचल का इलाका प्रभावित नहीं हुआ और भाजपा तीन में से एक भी सीट नहीं बचा पाई. नतीजे बता रहे थे कि यह नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने का इफेक्ट था. 2014 में पूर्णियां की सीट पर जदयू ने जीत दर्ज की, जबकि अररिया और कटिहार की सीटों पर जदयू उम्मीदवार ने इतने वोट काटे कि भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. किशनगंज में 1999 के बाद भाजपा का खूंटा फिर कभी गड़ा नहीं.

bjp in biharसीमांचल का इलाका 2009 के लोकसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ था. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में भी सीमांचल में पिछड़ चुकी भाजपा की राह 2019 के लोकसभा चुनाव में भी आसान नहीं दिख रही है. सीमांचल की चार में से तीन लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाने वाली भाजपा 2014 में शून्य हो गई. हालांकि, नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के एनडीए में आने के बाद भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद बढ़ी है, लेकिन अब पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह के भाजपा से त्यागपत्र देने के बाद उसकी राजनीतिक सेहत को एक और झटका भी लगा है. सीमांचल में भाजपा का 1998 से ही दबदबा रहा है.

सीमांचल की चार लोकसभा सीटों पूर्णियां, अररिया, कटिहार और किशनगंज में से 1998 के लोकसभा चुनाव में अररिया और पूर्णियां पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. 1999 में पुन: हुए चुनाव में कटिहार और किशनगंज सीटें भी भाजपा की झोली में चली गईं. 2004 में भाजपा ने चार में से तीन सीटें अररिया, कटिहार और पूर्णियां जीत लीं. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी इन सीटों पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के असर से सीमांचल का इलाका प्रभावित नहीं हुआ और भाजपा तीन में से एक भी सीट नहीं बचा पाई. नतीजे बता रहे थे कि यह नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने का इफेक्ट था. 2014 में पूर्णियां की सीट पर जदयू ने जीत दर्ज की, जबकि अररिया और कटिहार की सीटों पर जदयू उम्मीदवार ने इतने वोट काटे कि भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. किशनगंज में 1999 के बाद भाजपा का खूंटा फिर कभी गड़ा नहीं.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को फिर से सीमांचल में अच्छे परिणाम की उम्मीद बंधी है. अब फिर से नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं, लेकिन पूर्णियां के कद्दावर नेता उदय सिंह के भाजपा छोडऩे से समीकरण उलझा दिख रहा है. 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में लगातार जीत दर्ज करने वाले उदय सिंह ने भाजपा से टिकट नहीं मिलने की संभावना देख दल से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, उन्होंने इस्तीफा का कारण कुछ और बताया है, लेकिन पूर्णियां जदयू की सिटिंग सीट होने की वजह से यह तय है कि यहां से एनडीए उम्मीदवार जदयू का होगा और उदय सिंह नई संभावनाओं की तलाश में भाजपा छोड़ अपने पुराने घर में लौट सकते हैं. नए राजनीतिक हालात में सीमांचल के इलाके में भाजपा के परंपरागत वोटों पर कुछ न कुछ तो इफेक्ट पड़ता फिलहाल दिख रहा है. उदय सिंह की मां माधुरी सिंह 1980 और 1984 में लगातार जीत दर्ज कर 10 वर्षों तक लोकसभा में पूर्णियां का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. बाद के वर्षों में उनके पुत्र उदय सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव पूर्णियां से लड़ा, लेकिन बदली हवा के रुख ने उन्हें संसद नहीं पहुंचने दिया.

2004 में उदय सिंह ने भाजपा का दामन थामा और वह लगातार 10 वर्षों तक पूर्णियां के सांसद रहे. 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार संतोष कुशवाहा से मात खाने के बाद भी उदय सिंह पूर्णियां में भाजपा के साथ डटे रहे. लेकिन, नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद पूर्णियां से भाजपा के लडऩे की उम्मीद खत्म होने के बाद उन्होंने खुद को भाजपा से अलग कर नए रास्ते अपना लिए. उदय सिंह के भाजपा छोडऩे का सबसे बड़ा इफेक्ट फिलहाल साफ दिख रहा है कि उनके स्वजाति (राजपूत) पसाोपेश में दिख रहे हैं. हालांकि, धमदाहा की जदयू विधायक लेसी सिंह भी इसी जाति की हैं, लेकिन वह उदय सिंह के भाजपा छोडऩे के इफेक्ट को कितना कम कर नाराज लोगों को एनडीए में जोड़े रखने में कामयाब रहती है, यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा.

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