भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों ‘ऑल इज वेल’ के हालात नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह एवं प्रदेश अध्यक्ष द्वारा राज्य में करारी हार का ठीकरा कार्यकर्ताओं के सिर फोड़े जाने से नेताओं में खासी नाराजगी है और उनके निशाने पर है शीर्ष संगठन.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के एक माह पूरे होने पर रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए कहा, ‘प्रदेश के उज्जवल भविष्य के लिए हमें अभी और कई कदम आगे चलना है. जनता के हक और हित के लिए फैसलों की रफ्तार बनी रहेगी. हम सब मिलकर छत्तीसगढ़ को विकास का ऐसा गढ़ बनाएंगे, जिसमें सब लोग समृद्ध और खुशहाल हों.’ कांग्रेस के तंबू में खुशियों का तंबूरा वादन हो रहा है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा के सीने में पार्टी नेताओं ने आरोपों के चाकू घोंपने शुरू कर दिए हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि भाजपा की करारी हार के लिए नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कार्यकर्ताओं को दोषी ठहरा दिया. दोनों शीर्ष नेताओं के इस आरोप से पार्टी में बखेड़ा खड़ा हो गया है. पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू के नेतृत्व में नेताओं-कार्यकर्ताओं ने कहा कि उक्त दोनों नेताओं को किसानों से माफी मांगनी चाहिए. किसानों को दो साल का बोनस दिया नहीं और उनके पैसे से मोबाइल बांट दिए गए. गलत नीतियों की वजह से नाराज किसानों ने भाजपा को वोट नहीं दिया. पूर्व मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने पलटवार करते हुए कहा, चंद्रशेखर साहू के ज्ञानचक्षु खुलने लगे हैं, अभी ऐसे बयान आते रहेंगे.’ प्रदेश अध्यक्ष धरम लाल कौशिक ने कहा कि साहू का बयान उनके निजी विचार हो सकते हैं. सरकार ने किसानों को पर्याप्त मौका दिया और कहीं से भी किसानों के हक के साथ छलावा नहीं किया.
संगठन में खलबली
हार के बाद से भाजपा संगठन में हाहाकार मचा है. सभी लोग एक-दूसरे का गिरहबान खींचने में लगे हैं. पूर्व गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने संगठन पर निशाना साधा, तो चंद्रशेखर साहू ने पूर्व भाजपा सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. रमन सिंह का साहू पर कटाक्ष, देवजी भाई पटेल का साहू को समर्थन, धरम लाल कौशिक का संगठन एवं सरकार के समर्थन में उतरना, भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य शिव नारायण द्विवेदी का इस्तीफा और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निजी सचिव देवेंद्र गुप्ता द्वारा धरम लाल कौशिक को डॉ. रमन सिंह का गुलाम कहना आदि नजारे बताते हैं कि भाजपा के भीतरखाने ‘ऑल इज वेल’ नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले अगर इस आक्रोश को शांत नहीं किया गया, तो यह भाजपा के हित में नहीं होगा. सवाल यह है कि 15 सालों तक सत्ता में रहने वाली भाजपा के शीर्ष नेता इस बात को क्यों नहीं स्वीकारते कि पार्टी अपनी कुछ गलतियों की वजह से चुनाव हारी. राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडेय कहते हैं, भाजपा अब कैडर बेस्ड पार्टी नहीं, बल्कि कॉरपोरेट कल्चर वाली पार्टी हो गई है, जिसमें नेता मुख्य कार्यपालक अधिकारी यानी सीईओ और कार्यकर्ता कर्मचारी हो गए हैं.
जोगी के साइड इफेक्ट्स
प्रदेश में जिस तरह भूपेश सरकार काम कर रही है, वैसे में लोकसभा की अधिक से अधिक सीटें निकाल लेना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि वह सत्ता में रहकर विधानसभा चुनाव लड़ी थी और अब उसे राज्य में सत्ता से बाहर रहकर लोकसभा चुनाव लडऩा है, जबकि माहौल लगातार उसके खिलाफ होता जा रहा है. जोगी की पार्टी पर डॉ. रमन सिंह को बहुत भरोसा था कि वह कांग्रेस के अधिक से अधिक वोट काटेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जोगी की पार्टी और बसपा ने विधानसभा चुनाव में 14 फीसद वोट हासिल कर कुल सात सीटें जीतीं. लोकसभा चुनाव में भी इनके साइड इफेक्ट से इंकार नहीं किया जा सकता.
हारे हुए नेताओं को जिम्मेदारी
भाजपा ने विधानसभा चुनाव हारने वाले नेताओं को लोकसभा का प्रभारी बनाया है, जिस पर संगठन के भीतर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. एक नेता ने कहा, जो लाज बची है, वह भी लुट जाएगी. भाजपा ने 11 लोकसभा क्षेत्रों में तीन कलस्टर बनाए हैं. बस्तर एवं कांकेर का प्रभारी केदार कश्यप को बनाया गया है. रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं महासमुंद के प्रभारी राजेश मूणत बनाए गए हैं. बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर चांपा, रायगढ़ एवं सरगुजा के प्रभारी अमर अग्रवाल बनाए गए हैं.
मंडराती चुनौतियां
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी में दोबारा जोश भरने के लिए भाजपा को अपनी चूक एवं गलतियां सुधारनी होंगी. सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई. ऐसे में क्या वह 2014 जैसा प्रदर्शन कर पाएगी. प्रदेश में लेाकसभा की 11 सीटों में से 10 भाजपा के पास हैं. लेकिन अब यह भी दूर की कौड़ी है, क्योंकि कार्यकर्ता शीर्ष नेतृत्व से बाएं हो गया है. ऐसे में मोदी और अमित शाह को आत्ममंथन करने की जरूरत है. प्रदेश संगठन मंत्री सौदान सिंह को समझना होगा कि डॉ. रमन सिंह को चुनावी रणनीति बनाने की खुली छूट देने के बाद भी आखिर कहां चूक हो गई. पार्टी में विरोध के जो स्वर उठे हैं, उन पर विचार करना चाहिए. इसलिए भी कि पार्टी के कुछ नेता कह रहे हैं, कि डॉ. रमन सिंह को अपनी व्यक्तिवादी कार्यशैली से निजात पाना जरूरी है. चुनिंदा अधिकारियों के भरोसे राज्य चलाने का नतीजा अच्छा नहीं निकला. भाजपा की हार की एक वजह यह भी है कि वह किसानों की कर्ज माफी के मामले और बेरोजगारों के हित में कुछ भी करने में नाकाम रही. जबकि कांग्रेस ने कर्ज माफी के साथ बेरोजगारों को भत्ता देने की बात कही.
भूपेश सरकार का रिपोर्ट कार्ड
- 16 लाख से अधिक किसानों के अल्पकालीन कृषि ऋण माफ
- 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी
- तेंदू पत्ता संग्रहण दर 2,500 रुपये से बढ़ाकर 4,000 रुपये मानक बोरा
- उद्योग न लगाने पर टाटा से जमीन वापस लेकर आदिवासियों को उसकी वापसी
- निरस्त वन अधिकार पट्टों की पुन: जांच
- बस्तर, सरगुजा प्राधिकरण की अध्यक्षता स्थानीय विधायकों द्वारा
- छोटे भूखंड की खरीद-बिक्री से रोक हटाई गई
- झीरम कांड और नान घोटाले की एसआईटी जांच शुरू
- जनसंपर्क विभाग के घोटाले की जांच के आदेश
- जिला खनिज संस्था न्यास के कार्यों की समीक्षा
- महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों की भर्ती
- चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई और अभिकर्ताओं के खिलाफ प्रकरण वापसी पर विचार
- राजिम कुंभ का नाम माघी पुन्नी मेला करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित
- पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू
- सरकारी खर्चों में मितव्ययिता के निर्देश
- रमन सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना ‘स्काई’ बंद
- कबीर धाम जिले के 82 गांवों में जमीन की खरीद-बिक्री पर लगी रोक हटाई गई. यह प्रतिबंध पिछले 12 सालों से लागू था.
बजट से कोई उम्मीद नहीं: रमन सिंह
प्रदेश सरकार के एक माह के कामकाज और फरवरी में पेश होने वाले उसके पहले बजट पर रमन सिंह ने निराशा जाहिर की है. उन्होंने कहा, हमें बजट से कोई उम्मीद नहीं है. अभी सरकार केवल वाहवाही बटोरने का काम कर रही है. मुझे नहीं लगता कि राज्य के विकास की दिशा में जो कदम हमने आगे बढ़ाए हैं, वे इस बजट में दिखेंगे. केवल हमारी सरकार के कामकाजों की फाइलों पर जांच बैठाने के सिवाय इसने एक महीने में किया ही क्या.
बघेल बोले खतरे में है लोकतंत्र
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी ट्वीट कर भाजपा और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर हमला करते हुए कहा, जब जीत का श्रेय सेनापति को, तो हार का ठीकरा कार्यकर्ताओं पर क्यों. इसे भाजपा का आंतरिक मामला है, कहकर नकारा नहीं जा सकता. किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं के अपमान का मतलब है, लोकतंत्र पर सीधा प्रहार करना. भूपेश ने कहा, जब लोकतंत्र खतरे में है, तो हम तटस्थ नहीं रह सकते.