भारतीय सेना ने 26 फरवरी की सुबह करीब तीन बजे जो कारनामा कर दिखाया, वह कई मायने में ऐतिहासिक है. वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप तबाह किए और करीब साढ़े तीन सौ आतंकियों को मार गिराया. 1971 के बाद पहली बार भारतीय लड़ाकू विमानों ने इंटरनेशनल बाउंड्री क्रास करके हमला किया. भारत ने पहली बार दुनिया को यह संदेश दिया कि वह हर हमले का जवाब देने में न सिर्फ सक्षम है, बल्कि हर हमले का जवाब देने को तत्पर है. पाकिस्तान की जमीन पर यह कार्रवाई इसलिए हुई, क्योंकि कश्मीर के पुलवामा हमले में 40 से ज्यादा सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे. देश के कोने-कोने में लोग सडक़ पर उतर आए. वे पाकिस्तान से नाराज हैं, उनका गुस्सा वाजिब भी है. आखिर कब तक हिंदुस्तान अपने नागरिकों का बलिदान सहता रहेगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना के बाद भरोसा दिलाया कि वह जवानों की शहादत बेकार नहीं जाने देंगे. जिन्होंने यह कायराना कुकृत्य किया है, उन्हें सजा जरूर मिलेगी. इसके लिए सेना को खुली छूट दे दी गई है. आर्मी, नेवी और एयरफोर्स हमले का जवाब देने में जुट गईं.
आखिरकार, एयरफोर्स ने पहल की. रात के अंधेरे में पाकिस्तान के रडारों को चकमा देते हुए 12 मिराज 2000 फाइटर एयरक्राफ्ट ने मुजफ्फराबाद, बालाकोट और चकोटी में मौजूद ट्रेनिंग कैंप नेस्तनाबूद कर दिए. अब तक लोग कहते थे कि हम पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकियों के ठिकाने पर हमला क्यों नहीं कर सकते. अब तक इस पर सिर्फ बातें होती थीं. लेकिन, पहली बार भारतीय सेना ने ऐसा कर दिखाया और पाकिस्तान को सबक सिखा दिया. सेना के पराक्रम की यह गाथा हमेशा याद की जाएगी. समझने वाली बात यह है कि भारत की कार्रवाई युद्ध की घोषणा नहीं है. भारत ने विश्व शांति के लिए खतरा बने आतंकियों के गढ़ पर हमला किया है. दुनिया के कई देश भारत के समर्थन में खड़े हैं. देखना यह है कि पाकिस्तान इस हमले के जवाब में क्या करता है. जो सरकार उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करने का फैसला ले सकती है, वह पुलवामा हमले के जवाब में उचित कार्रवाई करेगी, इस पर किसी को शक नहीं था. पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई क्या हो, यह तो युद्ध की रणनीति बनाने वाले विशेषज्ञ ही तय कर सकते हैं. भारत कब, कहां और क्या कार्रवाई करेगा, यह सरकार और सेना को तय करना था और उन्होंने बखूबी किया भी. लेकिन, सवाल यह है कि देश के महान टीवी चैनलों के संपादक दो परमाणु शक्तियों के बीच होने वाले युद्ध की गंभीरता को समझे बिना ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, जैसे पाकिस्तान के साथ युद्ध कोई क्रिकेट मैच हो. मीडिया तो मीडिया, सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों ने भी बेतुके बयान देने शुरू कर दिए.
पुलवामा हमले के दो दिनों बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर सबको हैरान कर दिया. उन्होंने दावा किया कि भारत पाकिस्तान को दिया जाने वाला पानी रोक देगा. उन्होंने लिखा, पाकिस्तान में जाने वाली पूर्वी नदियों यानी सतलुज, रावी और व्यास का रुख मोडक़र उनका पानी जम्मू-कश्मीर और पंजाब को भेजा जाएगा. यह ट्वीट आते ही टीवी चैनलों को उन्माद फैलाने का एक और मौका मिल गया. प्यासा मरेगा पाकिस्तान, बूंद-बूंद पानी को तरसेगा पाकिस्तान, रेगिस्तान बनेगा पाकिस्तान जैसी हेडलाइंस आने लगीं. किसी ने गडकरी के ट्वीट को संजीदगी के साथ न तो एनालाइज किया और न गडकरी ने इस पर कुछ स्पष्ट किया. हकीकत यह है कि गडकरी ने पहली बार ऐसा बयान नहीं दिया. उन्होंने उरी हमले के बाद भी ऐसे बयान दिए थे. उस समय प्रधानमंत्री ने कहा था, खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते. लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत वाकई पाकिस्तान का पानी रोक सकता है?
दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि खासी अजूबी है. इसमें पानी का बंटवारा नहीं हुआ, बल्कि नदियों को ही दो देशों के बीच बांटा गया. भारत से पाकिस्तान जाने वाली कुल छह नदियां हैं. इनमें से सिंधु, झेलम एवं चेनाब पश्चिमी नदियां कहलाती हैं और सतलुज, रावी और व्यास पूर्वी नदियां हैं. सिंधु जल संधि के मुताबिक, पूर्वी नदियों पर भारत का अधिकार है और पश्चिमी नदियों पर पाकिस्तान का. यही वजह है कि भारत ने सतलुज पर भाखड़ा बांध, रावी पर रंजीत सागर बांध और व्यास नदी पर पोंग एवं पंदु बांध का निर्माण किया. इन नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए व्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-व्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई गईं. इन सबके बावजूद भारत पूर्वी नदियों का पानी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाता, इसलिए वह पानी पाकिस्तान चला जाता है, जो पाकिस्तान के पंजाब एवं सिंध इलाके के लिए काफी अहम है. पेयजल का मामला हो या सिंचाई का, इस इलाके के लोग भारत से आने वाले पानी पर ही निर्भर हैं.
रावी और व्यास नदी का पानी पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए पठानकोट के पास शाहपुरखंडी डैम और उझ नदी परियोजना को पूरा करना होगा. उझ नदी कश्मीर के कठुआ जिले में बहती है, जो रावी से जा मिलती है. तीसरी परियोजना उझ के नीचे दूसरी रावी-व्यास लिंक परियोजना है. इसका उद्देश्य थेन बांध के निर्माण के बावजूद रावी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले अतिरिक्त पानी को रोकना है. इसके लिए रावी पर एक बैराज बनाया जाएगा और व्यास बेसिन से जुड़ी एक सुरंग के जरिये पानी का बहाव दूसरी ओर मोड़ा जाएगा. इन तीन प्रोजेक्ट्स के जरिये पाकिस्तान में जाने वाला पानी रोका जा सकता है. शाहपुरखंडी प्रोजक्ट का काम शुरू हो गया है, पैसा भी आवंटित कर दिया गया है और यह 2023 तक बनकर तैयार होगा. उझ नदी पर बनने वाले डैम पर काम शुरुआती दौर में है. इसमें और भी ज्यादा समय लगेगा, क्योंकि यहां 110 मीटर ऊंचा डैम बनाया जा रहा है. पूर्वी नदियों पर बन रहे डैम भारत के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. इससे सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं होगा. लेकिन इसमें अभी विलंब है. इन तीनों परियोजनाओं को पूरा होने में कम से कम पांच-सात साल लगेंगे, अगर इन पर तेजी से काम होता है.
हकीकत यह है कि उरी हमले के बाद इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है. जब उक्त तीनों परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी, तब हम सतलुज, व्यास और रावी का पानी पाकिस्तान जाने से रोक पाएंगे. भारत की यह क्षमता पाकिस्तान के लिए किसी परमाणु बम से ज्यादा घातक साबित होगी. लेकिन सवाल है कि जब तक उक्त परियोजनाएं पूरी नहीं हो जाती हैं, तब तक इस विषय पर किसी केंद्रीय मंत्री का सार्वजनिक बयान देना कितना उचित है? क्या यह इन परियोजनाओं की सुरक्षा को खतरे में डालना नहीं है? क्या हम ऐसी बातें करके पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों को एक संवेदनशील टारगेट का पता तो नहीं बता रहे हैं? हैरानी तो इस बात की है कि यह सब तब हुआ, जब कुछ टीवी चैनल पाकिस्तान का पानी रोकने की मांग करने लगे. दुनिया भर में यह संदेश गया कि भारत सिंधु जल संधि को दरकिनार करके नदियों का पानी रोक रहा है. यह मामला इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि भारत पश्चिमी नदियों, जिन पर पाकिस्तान का अधिकार है, पर भी कई डैम और परियोजनाएं चला रहा है. इसे लेकर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विरोध भी करता रहा है. सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों को समझना चाहिए कि उनके बयानों से भारत को नुकसान पहुंच सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारतीय डिप्लोमेसी की धाक है, जिसके जरिये बड़ी आसानी से पाकिस्तान को अलग-थलग किया जा सकता है. मीडिया और बड़बोले मंत्रियों को गैर जिम्मेदाराना बयान देने से बाज आना चाहिए. चीन को छोडक़र दुनिया के ज्यादातर बड़े और महत्वपूर्ण देश इस लड़ाई में भारत के साथ हैं. हमारे राजनयिकों की यह कोशिश होनी चाहिए कि विभिन्न देश पृथक-पृथक रूप से पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला देश घोषित करें, ताकि भविष्य में अगर पुलवामा, उरी या मुंबई जैसे आतंकी हमले के जवाब में भारत पाकिस्तान का पानी रोके, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत के साथ खड़ा नजर आए.