पूर्वोत्तर
असम सहित पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों में भाजपा अपना आधार धीरे-धीरे मजबूत कर रही है. अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी थे. अरुणाचल की दोनों लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई और यहां उसे 58 प्रतिशत वोट मिले. अरुणाचल में कांग्रेस को 20.7 प्रतिशत वोट तो मिले, लेकिन कोई सीट नहीं मिल पाई. विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत हुई. उसने 57 सीटों में से 38 पर कब्जा जमाया, जबकि कांग्रेस को केवल चार सीटें मिलीं. भाजपा को 50.9 प्रतिशत, तो कांग्रेस को 16.9 प्रतिशत वोट मिले. मणिपुर में भी भाजपा का आधार बढ़ रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा की जीत हुई थी और पहली बार उसकी सरकार बनी. इस लोकसभा चुनाव में मणिपुर की दो सीटों में से एक सीट पर भाजपा की जीत हुई, वहीं दूसरी सीट पर नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने जीत दर्ज की. एनपीएफ के साथ भाजपा का गठबंधन था, लेकिन चुनाव के दौरान ही उसने मणिपुर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. मणिपुर में भाजपा को 34.2 प्रतिशत वोट मिले, तो कांग्रेस को 24.6 प्रतिशत. यहां की एक सीट पर कब्जा करने वाली एनपीएफ को 22.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए.
पूर्वोत्तर के बेहद खूबसूरत राज्य मेघालय में नरेंद्र मोदी लहर का कोई असर नहीं दिखा. यहां की दो सीटों में से एक पर कांग्रेस की जीत हुई, तो दूसरी सीट नेशनल पीपुल्स पार्टी को मिली. कांग्रेस को 48.3 प्रतिशत वोट मिले, जबकि नेशनल पीपुल्स पार्टी को 22.3 प्रतिशत. भाजपा को केवल 7.9 प्रतिशत वोट हासिल हुए. भारतीय जनता पार्टी को मिजोरम में झटका लगा. यहां की एकमात्र लोकसभा सीट पर मिजो नेशनल फ्रंट की जीत हुई. नगालैंड में भाजपा की सहयोगी पार्टी एनडीपीपी ने जीत हासिल की. इस राज्य में केवल एक लोकसभा सीट है. एनडीपीपी को 49.7 प्रतिशत वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 48.1 प्रतिशत. सिक्किम में इस बार लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के भी चुनाव हुए. यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की हार हुई. हालांकि, विधानसभा चुनाव में पवन चामलिंग के सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के बीच कांटे की टक्कर रही. विधानसभा की 32 सीटों में से चामलिंग के एसडीएफ को 15 सीटें मिलीं, वहीं एसकेएम को 17 सीटों पर जीत हासिल हुई. यहां की एकमात्र संसदीय सीट पर सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की जीत हुई. राज्य में साल 1994 से सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार थी और पवन चामलिंग सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं, लेकिन इस बार राज्य के लोगों ने सत्ता परिवर्तन के पक्ष में मतदान किया.
पूर्वोत्तर में वाम दलों का गढ़ माने जाने वाले त्रिपुरा के लाल किले में सेंध तो भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में ही लगा दी थी और पहली बार उसने राज्य में सरकार बनाई थी, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सीपीएम का सूपड़ा साफ कर दिया. यहां की दोनों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की. भाजपा को 49 प्रतिशत वोट मिले, वहीं सीपीएम को केवल 17 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा. हालांकि, राज्य में कांग्रेस को सीट तो नहीं मिली, लेकिन उसने सीपीएम से दूसरे नंबर की पार्टी का दर्जा छीन लिया. कांग्रेस को यहां 25 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जो उसके लिए अच्छा संकेत है.