पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक बार फिर से सता में काबिज हो गई हैं ममता ने वादों के जरिये चाहे एक बार वोट हासिल कर लिए हो लेकिन हकीकत ये है कि पश्चिम बंगाल के बच्चों को शिक्षा तक नहीं मिल पा रही है।
यह खबर आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि नेताओं के वादे और काम करने के इरादे में कितना अंतर होता है। ममता के राज्य के मेतेलदांगा गांव में 150 सालों में पहली बार चार बच्चों ने माध्यमिक शिक्षा हासिल की है। यह गांव बीरभूमि के मयूरेश्वर ब्लॉक 1 में है, जो शांतिनिकेतन से महज 56 किमी दूर है। शांतिनिकेतन जो शिक्षा के मंदिर के तौर पर दुनिया में जाना जाता है।
मगर, इस गांव में माध्यमिक शिक्षा हासिल करने में 150 साल लग गए। इस गांव में करीब 40 परिवार रहते हैं। ये परिवार खेती पर निर्भर हैं। गांव से तीन किमी दूर अंभा गांव में एक प्राथमिक स्कूल है। वहां बच्चे पढ़ने जाते हैं, लेकिन जल्द ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे तो पहली कक्षा में ही स्कूल छोड़ देते हैं और कुछ बच्चे ही चौथी तक पढ़े हैं। गांव में अधिकांश किसान हैं। और अपने काम को नजरअंदाज ना करने की वजह से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं।
पर सोचने वाली बात है कि इस गांव में सरकार की तरफ से कोई जागरूकता अभियान या कोई कोशिश नहीं की गई। एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन, मल्लारपुर नईसुवा ने साल 2001 में यहां परिवर्तन का बीज बोया। इस एनजीओ ने सर्व शिक्षा अभियान से वित्तीय सहायता के साथ 2002 से एक पूर्व प्राथमिक स्कूल व क्रेच खोला। यह बाद में एक शिशु शिक्षा केन्द्र में बदल गया।
गांव वालों के मुताबिक एनजीओ के लोगों ने हमारे बच्चों को केन्द्र में पढ़ने के लिए जागरुक किया। इससे बच्चों के स्कूरल छोड़ने की प्रवृति कम हुई। सभी चार बच्चे जिन्होंने माध्यमिक परीक्षा पास की है, वे इसी केन्द्र से निकले हैं। चौथी कक्षा पास करने के बाद वे बच्चेन गांव से करीब तीन किमी दूर कल्लाहरपुर में दो उच्च विद्यालयों में अध्ययन करने गए।
बहरहाल, 40 परिवारों वाले इस गांव में चार बच्चों ने स्कूल स्तरीय परीक्षा पास की है। इनमे से दो लड़कियां हैं। माध्यमिक परीक्षा पास करने वाले बच्चे खुकुमोनी तादू (18), सुमी माद्दी (17), साहेब माद्दी (16) और मंगल मुर्मू (16) हैं। खुकुमोनी ने 33 फीसद, सुमी ने 31 और साहेब व मंगल ने 29 फीसद अंक हासिल किए हैं।
खुकुमोनी और सुमी ने 2014 में बोर्ड की परीक्षा दी थी, लेकिन वे असफल रहीं। मगर, इस बार वे पास हो गईं। इन बच्चों के सम्मान में गांव के लोग पैसे जमा करके सांस्कृतिक समारोह करने जा रहे हैं।