सूखे का जवाब है जल संरक्षण

बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार आशीष सागर दीक्षित से सूखे को लेकर हुई बातचीत के कुछ अंश-

बुंदेलखंड की सूखती नदियों और गायब होते तालाबों की वजह क्या है?

खनन। सबको पता है कि बालू माफिया पर लगाम लगाए बिना नदियों का पानी हम नहीं बचा पाएंगे। सदानीरा केन नदी भी इस सूखे में जवाब दे रही है। बालू माफिया पर लगाम लगाए बिना हम कुछ नहीं कर सकते। तालाबों पर कब्जे किए जा रहे हैं। कई बड़े तालाब तो अब इतिहास बन गए हैं।

बुंदेलखंड के सूखे का समाधान क्या है?

जल संरक्षण सूखे का समाधान है। सूखा बुंदेलखंड के लिए नया नहीं है। लेकिन गर्मियां आने से पहले प्रशासन कोई उपाए नहीं करता ताकि सूखे से निपटा जा सके। सरकारी और निजी तौर पर जल संरक्षण के उपाए किए बिना सूखे से निपटा नहीं जा सकता। नदियों, नहरों पर कब्जा किया जा रहा है। बांदा में इंद्रानगर इलाके में एक नहर थी जिसमें बचपन में मैं डूबते-डूबते बचा था। आज उसमें एक हाथ पानी भी नहीं है। नहर नाले में तब्दील हो गई है। अतिक्रमण इतना बढ़ा कि नहर सिकुड़ती गई। तालाबों पर कब्जा लगातार जारी है।

बुंदेलखंड पैकेज मिल चुका है। एक और बड़ी रकम प्रदेश सरकार ने मांगी है। क्या यह रकम सूखे से राहत दिला पाएगी?

7266 करोड़ रुपए का बुंदेलखंड पैकेज कहां गया? किसी के पास कोई हिसाब है। अब एक और बड़ी रकम मांगी है। मुख्यमंत्री जी नए दो हजार खेत तालाब बनवाने जा रहे हैं, लेकिन हम चार हजार चंदेलकालीन तालाबों का रखरखाव नहीं कर पाए। मलखान सागर, मदन सागर, कीरथ सागर जैसे कभी न सूखने वाले तालाब इस साल सूख गए। बिना सोच और मंशा के अरबों रुपए बह गए हैं। और भी बह जाएंगे मगर बुंदेलखंड ज्यों का त्यों रहेगा। बजट से ज्यादा जरूरी है विकास के जमीनी प्रयास।

पानी की ट्रेन यूपी सरकार ने वापस लौटा दी। कहा यहां पानी है। रेलवे स्टेशन से पानी पहुंचाने से ज्यादा आसान जिले के टैंकरों से पानी पहुंचाना होगा। क्या पानी की जरूरत नहीं थी?

देखिए बुंदेलखंड सूखे से ज्यादा सियासत का मारा है। केंद्र सरकार को लगा लपक लो इस मौके को। अगले साल चुनाव हैं। भुनाएंगे। राज्य को लगा कि केंद्र का पानी अगर बुंदेलखंडवासियों के मुंह लगा तो कहीं चुनाव में इसका नुकसान न हो। दरअसल न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार को लोगों की प्यास से मतलब है। दोनों अपनी राजनीति चमका रहे हैं। केंद्र और राज्य की इस सियासी ट्रेन के चक्कर में एक पत्रकार भी शहीद हो गया।

सूखे का सबसे ज्यादा असर किसानों पर पड़ रहा है। कर्ज के बोझ तले दबकर ये लोग आत्महत्या कर रहे हैं। क्या यह सही है?

यह पूरा सच नहीं है। कर्ज लेने और देने के बीच दलालों का आना आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है। दलाल और बैंक मैनेजर मिलकर किसानों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। ज्यादातर मामलों में बिना बिचवानी के कर्ज नहीं मिलता। यह बिचवानी किसान के दिमाग में भर देता है कि कर्ज तो माफी के लिए ही होता है। किसान के दिमाग में भी बैठ जाता है कि कर्ज चुकाना नहीं है बल्कि माफ करवाना है। लेकिन जब कर्ज चुकाने का दबाव पड़ता है तो किसान मरता है। बुंदेलखंड में ही कई किसान ऐसे हैं जो अच्छा कर रहे हैं। सरकारें भी किसान के हित के लिए कर्ज नहीं माफ करतीं बल्कि वोट बैंक बनाए रखने के लिए कर्ज माफ करती हैं।

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