जिरह- आतंकवाद का जवाब एक ही है…..

प्रदीप सिंह (प्रधान संपादक/ओपिनियन पोस्ट)।

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। यह वाक्य आजकल देश और दुनिया के सभी बड़े छोटे नेताओं से सुनने को मिलता है। यह अलग बात है कि अस्सी के दशक में भारत के पंजाब में खालिस्तानियों को सिख आतंकवादी कहने पर किसी को कोई एतराज नहीं था। इस दोहरे मापदंड के बारे में बोलने के लिए कोई तैयार नहीं है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को क्या कहना चाहिए इस पर खामोशी है। कब तक हम सचाई से आंखें मूंदे रहेंगे। दरअसल ऐसा करके हम आतंकवाद को बढ़ावा ही दे रहे हैं। कश्मीर घाटी में आतंकवाद अब कश्मीरियत से आगे इस्लामियत की ओर चला गया है। जम्मू-कश्मीर में भारत के सुरक्षा बलों ने हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर और आतंकवादी बुरहान वानी को एक मुठभेड़ में मार दिया। किसी आतंकवादी का मारा जाना राहत का विषय होना चाहिए, वह किसी देश में भी हो। पर सबके लिए ऐसा नहीं है। अपने देश में ऐसे लोग भी हैं जो किसी आतंकवादी के मारे जाने को एक्स्ट्रा जूडीशियल किलिंग (सीधे शब्दों में फर्जी मुठभेड़) बताने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। ऐसे लोगों की सहानुभूति कभी आतंकवादियों की गोली से मारे गए निर्दोष लोगों के साथ नहीं होती। इनके लिए तो कानून की सारी प्रक्रिया पूरी करके सर्वोच्च न्यायालय से दोषी ठहराए गए आतंकवादी भी बेचारे होते हैं जिनके बचाव और समर्थन में खड़ा होना उन्हें अपना नागरिक कर्तव्य लगता है। पंजाब में आतंकवाद से लड़ने और जीतने का अनुभव भारत के सुरक्षा बलों के पास है। उस जीत का एक बड़ा कारण यह था कि सूबे की आधी आबादी आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की मदद करने के लिए तैयार थी। कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि उन्हें स्थानीय लोगों का वांछित समर्थन नहीं मिल रहा है। यह जानने के लिए किसी शोध की जरूरत नहीं है। प्रदेश के आज के दौर के सबसे लोकप्रिय नेता (कम से कम कश्मीर घाटी में) रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद के जनाजे में कुछ सौ लोग जाते हैं और आतंकवादी के जनाजे में हजारों की भीड़ उमड़ती है तो इससे क्या निष्कर्ष निकलता है। ऐसे हालात में जब नेता अपने छोटे और फौरी राजनीतिक फायदे के लिए आग में घी डालने का काम करते हैं तो स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो जाती है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का यह कहना कि कब्र में लेटा बुरहान वानी जिंदा बुरहान वानी से ज्यादा खतरनाक है, को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उमर और उनके जैसी राय रखने वालों का इस कथन के जरिए आशय यह है कि आतंकवादी को मारना नहीं चाहिए था। क्यों नहीं मारना चाहिए था? इसके जवाब में कहा जा रहा है कि वह बहुत लोकप्रिय था। क्या किसी आतंकवादी से निपटने का आधार उसकी लोकप्रियता या उसमें कमी होना चाहिए। यह किस तरह का तर्क है?

देश की राजधानी दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपी छात्रों का मुद्दा लोगों की स्मृति से हट रहा था। बुरहान वानी की घटना ने उन तत्वों को एक बार फिर सक्रिय कर दिया है। उमर खालिद और शाहेला मसूद जैसे लोग वानी के समर्थन में खड़े हो गए हैं। इस अभियान में वे अकेले नहीं हैं। आतंकवाद की चुनौती भारत के लिए नई नहीं है। आतंकवाद से बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आतंकवाद का समर्थन करने वाले बन रहे हैं। इस प्रवृत्ति के लोग दरअसल आतंकवाद को जायज ठहराने का आधार प्रदान करते हैं। सोचने की बात यह है कि आतंकवाद के मामले पर ऐसे लोगों की भाषा और कथ्य वही क्यों होता है जो पाकिस्तान बोलता है। कश्मीर में आतंकवाद पाकिस्तान की देन है। वह न केवल आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर घाटी में भेजता है बल्कि उन्हें हर तरह की मदद देता है। साथ ही उन्हें आजादी के लिए लड़ने वाला बताकर एक सैद्धांतिक आधार भी देता है। आतंकवाद के समर्थक तथाकथित बुद्धिजीवियों की जबान से पाकिस्तान की भूमिका की आलोचना कभी सुनने को नहीं मिलती। क्योंकि पाकिस्तान की भूमिका की बात करना या उसकी आलोचना इनके पक्ष को कमजोर कर देगी। अब समय आ गया है कि आतंकवाद के इन खुले समर्थकों को कानून के दायरे में लाया जाय। भारत का संविधान देश के हर नागरिक को बिना भेदभाव के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। पर देश का संविधान इस स्वतंत्रता की आड़ में देश को तोड़ने की आजादी नहीं देता। देश के टुकड़े करने की वकालत करने वालों को संविधान की आड़ में छिपने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। ये लोग आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं। क्योंकि आतंकवादी तो छिपकर रहते हैं। ये लोग तो हमारे आपके बीच रहते हैं। ऐसे लोगों और उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करना इन्हें बढ़ावा देने जैसा होगा। आतंकवाद से निपटने का एक ही तरीका है और वह है उन्हीं की भाषा में जवाब। दुनिया के इतिहास में बातचीत से कभी कहीं आतंकवाद की समस्या खत्म नहीं हुई है। भारत में हो सकती है ऐसा उम्मीद करना अपने को धोखा देने के अलावा कुछ नहीं है।

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