नई दिल्ली। सौर विमान ‘सोलर इम्पल्स’ का मकसद दुनिया को यह दिखाना है कि बिना उत्सर्जन के भी हवाई सफर मुमकिन है। यह विमान इसके पायलट स्विटजरलैंड मूल के बर्ट्रेंड पिकार्ड और एंड्रे बोर्शबर्ग के दिमाग की उपज है। इन दोनों का यह प्रोजेक्ट 12 साल के रिसर्च का नतीजा है, जिन्होंने विमान के आविष्कारक राइट ब्रदर्स की याद दिला दी है। यह एक हल्का विमान है जिसका वजन एक SUV के बराबर (करीब 2300 किलोग्राम) है लेकिन इसकी चौड़ाई बोइंग 747 विमान से भी ज्यादा (72 मीटर यानी 236 फीट) है। विमान की औसत स्पीड 75 किलोमीटर प्रति घंटा और अधिकतम 216 किलोमीटर प्रति घंटा रही जो अधिकतम 8,500 मीटर की ऊंचाई तक उड़ा। स्विस तकनीक पर आधारित यह विमान 80 फीसदी कार्बन फाइबर से बना है और इसमें 17 हजार सोलर सेल लगे हैं। इस विमान में एक ही सीट है। दोनों पायलट बारी-बारी से प्लेन उड़ाते रहे।
यह विमान कुल 505 घंटे (23 दिनों से ज्यादा समय तक) आसमान में रहा। मौसम की तमाम मुसीबतों को झेलते हुए यह यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया के तमाम एयरपोर्ट पर रुका और यात्रा 17 चरणों में पूरी हुई। ये पायलट वैक्युम पैक्ड खाने का सामान अपने पास रखते थे ताकि सफर के दौरान भूख मिटाई जा सके। जब ये उड़ान पर होते थे तो इनके पास करीब ढाई किलो खाने का सामान, ढाई लीटर पानी और एक लीटर स्पोर्ट्स ड्रिंक होता था।
इसके कॉकपिट का साइज एक पब्लिक टेलीफोन बॉक्स के बराबर है, जिसमें पायलट ऊंचाई पर जाने पर ऑक्सीजन के मास्क का इस्तेमाल करते हैं और एक वक्त में पायलट को महज 20 मिनट तक ही सोने की इजाजत है। इस विमान की सबसे लंबी यात्रा जापान से हवाई के की बीच रही। इसके पायलटों ने नागोया से होनोलुलू का सफर 4 दिन, 21 घंटे और 51 मिनट में तय किया। इस सफर के दौरान सबसे मुश्किल पल काहिरा से आबू धाबी की उड़ान के दौरान आया जब पिकार्ड दिन के दौरान 29 हजार फीट की ऊंचाई तक ले गए और रात के समय जब विमान के सोलर सेल चार्ज नहीं हो रहे थे तो इसे 5000 फीट तक उतारना पड़ा। इस प्लेन ने बिना ईंधन के अटलांटिक पार करने वाला पहला विमान होने का रिकॉर्ड भी बनाया है, जब यह न्यूयॉर्क के जेएफके एयरपोर्ट से उड़ान भर स्पेन के सेविले पहुंचा।