प्रियदर्शी रंजन/ अरुण साथी।
विष्णुपुर गांव की सुनैना देवी कहती हैं कि गरीब के कागजे पर ठगेला लोग बाबू। हमनीं के एक बार फिर ठग लेलक। पहीले तो ब्लॉक के बाबू लोग ठगलन। अबरी मुख्यमुंत्री कागज पर ठग ले लन। हमनी के कोई न सुनी थे।’ हताशा, कुंठा और ठगी का शिकार होने का दर्द सुनैना की आवाज में साफ झलकता है। हो भी क्यों न! दरअसल साल 2010 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रदेश भर में सेवा यात्रा की, जिसका एक पड़ाव शेखपुरा जिला का बरबीघा भी था। सेवा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत दर्जनों गरीब घरहीन परिवारों को तीन डिसमिल जमीन की रसीद अपने हाथों से सौंपी थी। हैरानी की बात है कि पांच साल से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी सुनैया देवी जैसे कई गरीब परिवारों का तीन डिसमिल में आशियाना निर्मित नहीं हो पाया। ऐसा नहीं कि लाभार्थी मकान बनाना नहीं चाहते थे। पैसे की भी किल्लत नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों का घर बनाने का काम सरकार ही करती है। फिर पांच वर्षों से अधिक गुजर जाने के बाद भी क्यों नहीं बन पाई बरबीघा प्रखंड के सामस खुर्द पंचायत के विष्णुपुर में महादलित बस्ती?
इसका जबाब गाढ़ों मांझी के बातों से मिल जाता है
गाढ़ों कहता है- हम लोगों को जमीन का पर्चा तो थमा दिए साहेब। पर जमीन ढूंढने से नहीं मिलता है। गांव वाले कहते हैं कि तोहनी के यहां जमीन कहां हऊ। जे जमीन के तोहनी के रसीद हऊ ओने तो सड़क बनल हई। इसी तरह गौरा मांझी ने कई बार जमीन ढूंढने का प्रयास किया। उसने अमीन बुला कर नापी भी कराई। मगर जमीन नहीं मिली। गौरा कहता है, ‘हम चार साल से जमीन ढूंढते रहीं। लगी थई मुख्यमंत्री साहेब जमीन के नकली कागज दे देलथिन है। जीमनवां रहला पर उड़ थोड़े जतई हल।’
गौरा मांझी का मुख्यमंत्री पर आरोप निराधार नहीं है। मुख्यमंत्री ने अपने हाथों से जो जमीन की रसीद लाभार्थियों को सौंपी वह खाली ही नहीं है। ‘ओपिनियन पोस्ट’ की पड़ताल में मालूम हुआ कि जिस जमीन पर पचास साल पहले से सड़क बनी हुई है, उसी जमीन को खरीद कर अधिकारियों ने महादलित मांझी परिवारों को पर्चा थमा दिया। बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के संकल्प संख्या 01 (8) के आलोक में महादलितों को रैयती जमीन खरीद कर उसका पर्चा देना था। इसी के तहत 21 अप्रैल 2010 को अंचल कार्यालय बरबीघा द्वारा रजैरा गांव में थाना संख्या 29, खाता संख्या 90, खसरा संख्या 1236 रकवा 3 डिसमिल हिसाब से कुल 105 डिसमिल जमीन का पर्चा 35 महादलित मांझी परिवारों को 21 जनवरी 2011 को उपलब्ध कराया।
इस जमीन को खरीदने के लिए हल्का कर्मचारी ने अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया तथा रजौरा गांव निवासी किसानों के कब्जे में जमीन होने का प्रमाण भी दिया। उसके बाद तत्कालीन अंचलाधिकारी एवं बीडीओ ने जांच की। फिर जमीन की खरीद की गई। जमीन के बदले प्रति किसान को 20000 प्रति 3 डिसमिल के हिसाब से रुपए भी दिए गए। वास्तव में यह जमीन तो रैयती ही है पर पचास साल पूर्व से ही इस जमीन पर बरबीघा से खलीलचक जाने वाली सड़क बनी हुई है। इसी जमीन पर मांझी परिवार के लोगों को घर बनाना था।
इस सबके बावजूद सरकार को यह नहीं लगता कि लाभार्थियों को गलत जमीन की रसीद दी गई है। शेखपुरा जिला के डी.एम. का कहना है, ‘जमीन साफ-सुथरी दी गई है। अगर कुछ मामला है तो आप ब्लॉक में बात कर लें।’ बरबीघा अंचलाधिकारी मनीष कुमार से जब इस बारे में पूछा तो उनका कहना था, ‘शिकायत है तो जमीन की मापी कराई जाएगी और जो भी तथ्य सामने आएगा उसी हिसाब से कार्रवाई की जाएगी। यदि इस तरह की बात समाने आती है तो उच्चाधिकारियों तक इसकी बात पहुंचाई जाएगी।’
ऐसा नहीं कि ओपिनियन पोस्ट की पड़ताल के पहले लाभार्थियों ने इसके लिए सरकार और संबंधित अधिकारियों से गुहार नहीं लगाई। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन कल्याण मंत्री जीतन राम मांझी ने वर्ष 2012 में विष्णुपुर गांव में सबरी मंदिर का उद्घाटन करने आए थे। तब मांझी परिवारों ने उनसे अपने जमीन को लेकर गुहार लगाई। जीतन राम मांझी ने आश्वस्त भी किया कि उनकी जमीन मिल जाएगी। साथ में सबको घर और बच्चों के लिए स्कूल उपलब्ध कराने का भरोसा दिया था। उसी भरोसे के सहारे आज तक मांझी परिवारों को लग रहा है कि उनको घर और उनके बच्चों के लिए स्कूल अवश्य मिलेगा पर सड़क की जमीन पर घर कैसे बने यह उनको समझ नहीं आ रहा है।
इन्हें दिया गया था जमीन का पर्चा
सुनैयना देवी, कमेसर मांझी, हरी मांझी ,रक्शमा देवी ,जीरा देवीकारू मांझी, सुदामा देवी, संजू देवी, भुनेश्वर मांझी, शांति देवी, रानी देवी, सरीता देवी, पंचा मांझी, नारायण मांझी, राजेश मांझी, करनी देवी, लाखो मांझी, गाढ़ो मांझी, धानो देवी, धानो मांझी, सबो देवी, ललीता देवी, सुन्नी मांझी, धर्मेन्द्र मांझी, मुटुर देवी, जालो मांझी, धारो मांझी, योगेन्द्र मांझी, मिनता देवी, प्रेम मांझी, चन्द्रमनी मांझी, यमुनी देवी, जरदू मांझी, कान्ती देवी, अर्जुन मांझी।