संध्या द्विवेदी।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की को-फाउंडर जकिया सोमन का मानना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ का कोडिफिकेशन यानी स्पष्ट और सही व्याख्या किए जाने की जरूरत है, जिससे इसमें लिखीं बातें सबके सामने स्पष्ट हों। अभी इसकी व्याख्या कुछ मुट्ठीभर लोग अपने ढंग से करते हैं। हालांकि रूढ़िवादी मुस्लिम तबका कोडिफिकेशन के खिलाफ है। उसका कहना है कि कोडिफिकेशन और तीन तलाक पर बैन लगाने का मतलब इस्लाम के रास्ते से भटकना है और ऐसे कदम शरीया लॉ के खिलाफ हैं।
जकिया सोमन पर्सनल लॉ का कोडिफिकेशन चाहती हैं, तीन तलाक पर रोक चाहती हैं, शादी की उम्र तय करना चाहती हैं, हलाला भी रोकना चाहती हैं, मेहर की रकम कैसे तय हो इस पर भी स्पष्टता चाहती हैं, मगर जब उनसे यूनिफार्म सिविल कोड के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि पहले पर्सनल लॉ में सुधार होना चाहिए। बाद में जो करना हो करें। उनके जवाब से साफ लगा कि वह भले ही स्पष्ट रूप से यूनिफार्म सिविल कोड के खिलाफ न बोलें, लेकिन कॉमन लॉ के समर्थन में बिल्कुल भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड वैसे भी वैकल्पिक व्यवस्था ही होगी। जैसा कि संविधान में लिखा है और जैसा अभी तक चर्चा में है। ऐसे में मुस्लिम औरतों के खिलाफ हो रही हिंसा तो होती रहेगी। उनके खिलाफ नाइंसाफी जारी रहेगी।
जकिया सोमन कहती हैं कि वैसे भी इस यूनिफार्म सिविल कोड के बारे में प्रचारित किया जा रहा है कि यह जेंडर जस्टिस का औजार है। अगर जेंडर जस्टिस ही करना है तो पर्सनल लॉ का कोडिफिकेशन कर पितृसत्तात्मक व्याख्या की कैद से रिहा कराएं। हर धर्म का यहां पर अपना पर्सनल लॉ है। सरकार और विधि आयोग मिलकर उसमें सुधार की तरफ कदम बढ़ाएं तो जेंडर जस्टिस बेहतर होगा। और यह सवाल मुस्लिमों से ही क्यों पूछा जाता है, दूसरे धर्म के लोगों से भी पूछा जाए कि क्या वे अपना पर्सनल लॉ बदलने को तैयार हैं?