मनोहर नायक।
जेठ की भीषण गर्मी के बाद मॉनसून की प्रतीक्षा में अधीरता बढ़ती जाती है। तन-मन आकुल हो उठता है। न खाने में स्वाद, न काम में लगन। गर्मी ही गर्मी और पसीना ही पसीना। ऐसे में बरसात जीवन की नई उमंग लेकर आती है। ‘महासिंधु से हवा चली/मौसम ने पिपरमेंट देह में मली।’ ठंडी हवाएं, फुहारें, रिमझिम और मूसलाधार बारिश का सौंदर्य विधान हर रंग में अनूठा और आह्लादकारी होता है। जो इस सौंदर्य से अनजान हैं निश्चित ही वे अभागे हैं। बारिश को ‘धरती का उत्सव’ ठीक ही कहा गया है। इसकी हर बूंद जीवन से सराबोर है। महान दार्शनिक लाओत्से ने कहा था, ‘पानी की तरह हो जाओ। जो व्यक्ति पानी की तरह तरल, मृदुल और सहनशील होता है, वह किसी भी बाधा को पार कर लेता है और समुद्र तक पहुंच जाता है।’ ग्रेबियल गार्सिया मारक्वेज को बारिश और खासतौर से लगातार घंटों तक होने वाली बारिश बहुत प्रिय थी। अपनी कहानियों में उन्होंने ऐसे शहर रचे जहां बारिश रुकने का नाम नहीं लेती।
मॉनसून बगैर भारत को समझना असंभव
भारत का जीवन तो मॉनसून पर ही टिका है। ब्रितानी लेखक अलेक्जेंडर फ्रैटर ने बारिश पर यात्रा वृतांत की शक्ल में एक पुस्तक लिखी है, ‘चेजिंग दी मॉनसून’। इसे लिखने के लिए केरल से चेरापूंजी तक उन्होंने यात्रा की। उनका मानना है कि भारत को समझना मॉनसून को समझे बगैर असंभव है। उन्होंने लिखा है, ‘बारिश को बस देखें, हो सके तो भीगें। वह टिप-टिप बरस रही हो या झमाझम, आप जीवन का आनंद महसूस करेंगे। हो सकता है पल भर में जीवन का मर्म समझ जाएं।’ दिलचस्प यह है कि लोग वर्षा के लिए तरसते भी हैं और लगातार हुई तो कोसने भी लगते हैं। जून आते-आते हमारे देश में ही नहीं बल्कि समूचे दक्षिण एशिया में ‘इस साल मॉनसून कैसा रहेगा’ पर चर्चा शुरू हो जाती है। अच्छे होने की खबर शेयर बाजार को उठा देती है। मॉनसून खराब रहेगा या रहता है तो वित्त मंत्री से लेकर रिजर्व बैंक के गवर्नर तक चिंता जताने लगते हैं। महंगाई बढ़ने लगती है। पानी-बिजली का संकट बढ़ जाता है। जनजीवन की बेहाली बढ़ जाती है। केंद्र सरकार से राज्य सरकारें मदद की गुहार लगाने लगती हैं। कृषि प्रधान इस देश की अर्थव्यवस्था की मॉनसून केंद्रीय चीज है। हमारी खुशहाली उसी पर निर्भर रहती है।
वर्षा ऋतु हमारे लिए उत्सव है, उमंग और उम्मीद है। हमारे गीत, संगीत, साहित्य और फिल्म में यह छायी हुई है। मिलन हो, विरह हो, दुख हो, सुख हो, आशा हो या निराशा जीवन की हर रंगत का यह प्रतीक बन जाती है। असंख्य लोकगीत इस पर हैं और अनेक लोकोक्ति भी। कम ही कवि होंगे जिन्होंने बारिश पर कविता न लिखी हो। कालिदास के विरही यक्ष ने तो मेघ को ही अपना दूत बना लिया था। रामचरित मानस में तुलसीदास पावस आने का आनंद व्यक्त करते हैं, ‘बरषा काल मेघ नभ छाए/गरजत लागत परम सुहाए।’ लेकिन उनके राम भी विरही हैं इसलिए उन्होंने लिखा, ‘घन घमंड नभ गरजत घोरा/पिया हीन डरपत मन मोरा।’ वर्षा को लेकर यहां तुलसीदास ने सुंदर तुलनाएं की हैं, ‘सिमिट सिमिट जल भरहिं तलावा/जिमि सद्गुन सज्जन पहिं आवा। बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे/खल के बचन संत सहिं जैसे।’
कविता में वर्षा
और भी पुराने कवियों ने वर्षा पर खूब लिखा है। शायद महाकवि निराला वसंत के साथ वर्षा के भी सबसे बड़े कवि हैं। बादल राग उनकी लंबी कविता है- ‘झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर/राग अमर अंबर में भर निज रोर/…अरे वर्ष के हर्ष! बरस तू बरस-बरस रस धार!’ उनकी एक कविता है ‘गाढ़ तन आषाढ़ आया’ जिसमें आषाढ़, सावन और भादो की अनोखी छटा है। उनकी कई कविताएं वर्षा पर हैं, ‘फिर नभ घन गहराये’, ‘धिक मद, गरजे बदरवा’। निराला की ही तरह नागार्जुन भी वर्षा के अप्रतिम कवि हैं। ‘मेघ बजेह्ण’ अद्भुत है : ‘धिन-धिन धा धमक-धमक/मेघ बजे/दामिनि यह गयी दमक/मेघ बजे/दादुर का कंठ खुला/मेघ बजे/धरती का हृदय खुला/मेघ बजे/पंक बना हरिचंदन/मेघ बजे/। ‘बादल को घिरते देखा है’, ‘बादल भिगो गए रातोंरात’, ‘घन कुरंग’ जैसी अनेक कविताएं बाबा नागार्जुन ने लिखी हैं। पावस की हर तरह की छवियों, मनोभावों और स्थितियों पर कविताएं हैं। बारिश के मौसम में जब कई दिन तक बादल छाए रहने से बेचैनी बढ़ती है और एक दिन अचानक सूर्यनारायण दिखते हैं तब निराला कहते हैं, ‘बहुत दिन बाद खुला आसमान/निकली है धूप खुश हुआ जहान।’
फिल्मों में विविध रूप
साहित्य की तरह फिल्म संगीत भी वर्षा से ओतप्रोत है। हिंदी फिल्मों में एक से एक गाने बारिश पर हैं। विविध रूपकों में इसका फिल्मों में इस्तेमाल हुआ है। वह प्यार है, इकरार है, रागात्मक स्मृतियां हैं। विरह, मिलन, उमंग, आशा-निराशा के तमाम रंग बारिश समेटे हुए है। गीतों में ही नहीं कई फिल्मों के कथानक में इसका रचनात्मक इस्तेमाल हुआ है। कई फिल्मों में तो बारिश कहानी को आगे बढ़ाती है। ‘धूल का फूल’ में राजेंद्र कुमार-माला सिन्हा मस्ती में गा रहे हैं ‘धड़कने लगे दिल के तारों की दुनिया, जो तुम मुस्कुरा दो…’ तभी गाने के अंत में बरसात शुरू हो जाती है और नतीजा वही होता है जो इसके काफी बाद में बनी ‘आराधना’ में हुआ जिसमें बाहर तेज बारिश हो रही है और पार्श्व में ‘रूप तेरा मस्ताना’ गाना बज रहा है। गाने के बीच में बिजली गरजने की तेज आवाजें हैं। अंदर कमरे में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर के प्रेम की हदें टूटने को हैं। दोनों फिल्मों में नायिकाएं बिन ब्याही मां बन जाती हैं और कहानी को नया मोड़ मिलता है।
कई गाने ऐसे भी हैं जहां रोमांटिक सीन की संवेदना को बारिश ने और तेज कर दिया है। ‘असली नकली’ में देवानंद साधना के लिए गा रहे हैं ‘एक बुत बनाऊंगा, तेरी मैं पूजा करूंगा’ और बाहर धुंधलका है, तेज बारिश हो रही है। ऐसा ही एक गीत ‘अनुभव’ फिल्म का है गीतादत्त का गाया। बाहर बारिश हो रही है जो खिड़कियों के शीशे से दिख रही है और संजीव कुमार के लिए तनुजा बेहद शोखी भरा गाना गा रही हैं, ‘मुझे जान न कहो मेरी जान, मेरी जान।’ गाइड में भी ‘दिन ढल जाये रात न जाये’ गाने के अंतरे में बारिश हो रही है जहां रफी गाते हैं, ‘ऐसी ही रिमझिम, ऐसी ही थी बरसात/खुद से जुदा और जग से पराये हम दोनों थे साथ/फिर से वो सावन अब क्यों न आए।’ बारिश से वास्ता न होते हुए भी अनेक गाने हैं जिनमें बादल हैं, सावन-भादो है। जैसे दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी या मेरे नैना सावन भादो। इनके अलावा कई ऐसी फिल्में भी हैं जिनके नाम बारिश पर रखे गए हैं मगर उनका बारिश से कोई लेना-देना नहीं है। सावन को आने दो में सिर्फ शीर्षक गीत ही बारिश में भीगते हुए है। रेखा और नवीन निश्चल की पहली फिल्म सावन भादो भी ऐसी ही फिल्म है।
फिल्मी गीत-संगीत में बारिश पर एक से एक गाने हैं। मगर बारिश पर पहले जैसे दिलकश गीत अब सुनने को नहीं मिलते। बारिश का इस्तेमाल कैसे होने वाला है यह 1974 की अजनबी फिल्म के गाने में बता दिया गया था। राजेश खन्ना पूछते हैं- ‘भीगी भीगी रातों में, मीठी-मीठी बातों में, ऐसी बरसातों में कैसा लगता है।’ जीनत अमान जवाब देती हैं, ‘ऐसा लगता है, तुम बन के बादल, मेरे बदन को भिगो के छेड़ रहे हो।’ नमक हलाल का लोकप्रिय गीत ‘आज रपट जाए तो हमें न उठइयो’ इसी सिलसिले की स्मिता-अमिताभ की पेशकश थी। ऐसे गानों की लंबी फेहरिस्त है। 1979 में योगेश का लिखा ‘रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाये मन/भीगे आज इस मौसम में, लागी कैसी ये अगन’ मधुर गीत है। इसी तरह गुरु फिल्म में गुलजार का लिखा और श्रेया घोषाल व उदय मजूमदार का गाया, ‘बरसो रे मेघा’ और आमिर खान की फिल्म लगान का ‘घनन घनन घिर आए बदरा’ सुनने में मधुर लगता है।
पर्दे पर राजकपूर ने किया अजर अमर
बारिश के अनोखे गानों को गीतों के बोल, संगीत संयोजन, गायकी और दृश्य संयोजन अद्वितीय बना देता है। गीत के भाव मन को छू जाते हैं। वर्षा का आनंद या उसके कारण साकार होती दिखती जीवन की उमंग, उसका उल्लास या उसके निमित्त उभरी पीड़ा सभी अनुभव बन जाते हैं। वर्षा की भावनाएं व्यक्त करने का प्रमुख राग मल्हार है। मल्हार के और भी रूप हैं, मियां मल्हार, गौड़ मल्हार, मेघ मल्हार। सारंग और जैजैवंती राग भी वर्षा ऋतु की प्रकृति को व्यक्त करता है। यह कहा जाता है कि मल्हार में सारंग की छाया है। कई गाने मेघ मल्हार पर आधारित हैं। हमारी स्मृतियों में बरसात को अजर अमर किया राजकपूर ने। रुपहले पर्दे पर उनकी फिल्म बरसात ने वर्षा, संगीत और बारिश के दृश्यों को जीवंत कर दिया। ‘तुमसे मिले हम सजन, बरसात में’ इस फिल्म का यह गीत हिट था। फिल्म बरसात ने बारिश के गीतों, दृश्यों और उसको प्रतिध्वनित करते संगीत की झड़ी लगा दी। हंसते जख्म का गीत ‘तुम जो मिल गये हो’ का बरसात से संबंध नहीं है लेकिन मदनमोहन ने इसमें बारिश, तेज हवा की ध्वनियों का जो इस्तेमाल किया है वह लाजवाब है। राजकपूर ने फिल्म श्री 420 में ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ जैसा शानदार गीत दिया। मन्ना डे-लता की आवाज में यह गीत धरोहर बन गया। घनघोर बारिश में काली छतरी के नीचे खड़े राजकपूर-नरगिस का यह चित्र फिल्मी बारिश का प्रतीक चिन्ह है।
1953 में आई थी बिमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन। यह फिल्म किसानों की त्रासदी और यंत्रणा को बेहत सटीक और यथार्थवादी ढंग से उभारती है। इसमें एक गीत बरसात पर है। शायद यह बरसात पर सबसे सुंदर गीत है जिसमें उत्पीड़ित किसान परिवारजनों के साथ बारिश आने से उल्लासित है। उनकी आवाजों में, बोलों में, आंखों में खुशहाल भविष्य छाया हुआ है। ‘हरियाला सावन ढोल बजाता आया, धिन तक तक मन के मोर नचाता आया।’ संगीतकार सलिल चौधरी ने फिल्म परख की कहानी लिखी थी जिसमें लता मंगेश्कर का गाया यह बेजोड़ गीत है, ‘सुनो सजना बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, नैनों में प्यार लाई।’ सलिल दा की धुनें जटिल होती थीं और इस गीत की धुन के लिए पंडित रविशंकर ने कहा था कि सलिल दा चाहते तो इसे आसान बना सकते थे। फिल्म छाया में भी तलत-लता का एक उम्दा गीत उन्होंने बनाया था, ‘इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा कि मैं एक बादल आवारा।’ सलिल दा के प्रिय गीतकार शैलेंद्र थे लेकिन यह गीत राजेंद्र कृष्ण का है।
बरसात के कुछ और गाने भी हैं जो जिंदगी भर भुला नहीं सकते। फिल्म छलिया में राजकपूर पर फिल्माया झमाझम बारिश का गीत था, ‘डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा।’ बारिश पर एक से एक गीत हैं। किस-किस को याद करें। गालिब वाली मुसीबत है। संगीतकार मदनमोहन ने वह कौन थी फिल्म में राजा मेहंदी अली खां का गीत लता के स्वर में खूबसूरती से सजाया था, ‘नैना बरसे रिमझिम रिमझिम’। फिल्म मेरा साया में नायाब गीत है, ‘नैनों में बदरा छाये, बिजुरी सी चमके हाय’। ऐसे और भी कई गाने हैं, ‘काली घटा छाये, मोरा जिया घबराये’, ‘जा रे कारे बदरा बलमा के द्वार, मोरी नगरिया न शोर मचा’। आज के अर्थप्रधान युग में रोटी कपड़ा और मकान फिल्म के इस गाने में सावन की महत्ता ठीक आंकी गई है, ‘तेरी दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाये’। संगीतकार सचिन देव बर्मन ने भी बारिश पर कई गीत बनाए हैं। काला बाजार में देवानंद-वहीदा रहमान बारिश में छतरी तले चले जा रहे हैं। पुरानी यादों के चित्र दोनों के मन में चल रहे हैं और पार्श्व में गीत गूंज रहा है, ‘रिमझिम के तराने ले के आई बरसात’। उनके बेटे आरडी बर्मन ने भी ऐसे कई गाने बनाए। उनकी पहली फिल्म छोटे नवाब का गीत भी सुरीला है। फिल्मांकन में बारिश का खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है। महमूद कोठे पर दोस्तों के दबाव में गाना सुन रहे हैं, ‘घर आजा घिर आए बदरा सांवरिया/मोरा जिया धक धक करे चमके बिजुरिया’। फिल्म मिलन का सुनील दत्त-नूतन पर फिल्माया गया गीत ‘सावन का महीना पवन करे सोर’ बेहद लोकप्रिय गीत था। ‘एक लड़की भीगी भागी सी’, ‘गोरे रंग पे न इतना गुमान कर’ जैसे बारिश से भीगते गाने हैं तो कुछ में ‘ये रात भीगी भीगी’ का अहसास है। कुछ गाने तो इस मौसम की मस्ती से सराबोर हैं। बारिश की मन:स्थितियां विविध हैं। बाहर लगातार बारिश हो, घर में सब इकट्ठे हों, गर्मागर्म चाय-पकौड़े खाते हुए बतिया रहे हों इसका समां और मजा ही अलग है। बातें ही बातें, किस्से और किस्से। सबको लगता है बारिश के साथ किस्से चलते रहें। थोड़ा रुकते ही आवाज आती है… ‘फिर क्या हुआ बताओ/बरसात थम न जाये’।
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