निशा शर्मा।
बात कुछ हफ्ते पहले की है पंजाब में ड्रग्स और पंजाब की समस्याओं के लिए पंजाब के दौरे पर जाना था। जहन में आया गुरद्याल सिंह से बात नहीं कि तो पंजाब को जान पाना अधूरा रहेगा। कहते हैं लेखक अपनी पीढ़ी, पिछली पीढ़ी और उससे अगली पीढ़ी को उकेरने का हुनर रखता है। यही कुछ था दिमाग में और ढूंढा गुरद्याल सिंह का नंबर जिनसे लिया वह भी एक जाने- माने लेखक हैं कहने लगे इनसे जरूर बात करो अगर हो सके तो।
उत्साहित थी कि एक लम्बे समय बाद बात होगी एक जिंदादिल इंसान से जो अपनी बातों और नेक इरादों से लोगों को प्रभावित कर लेता है। मैं 2007 में गुरद्याल सिंह से मिली थी। उन पर दूरदर्शन के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाई जा रही थी, मैं भी उस टीम का हिस्सा थी। मुझे पंजाबी पढ़नी, लिखनी और समझ आती थी। यही कारण था कि डारेक्शन के साथ-साथ मुझे काम दिया गया कि मैं उनके बोले को पंजाबी से हिन्दी में ट्रांसक्राइब करूं और मैंने किया भी। एक एक शब्द सुना एक एक शब्द लिखा। गुरद्याल सिंह के बोलने और विचारों से लगा कि इस लेखक को पढ़ूं। फिर मैंने पढ़ा परसा और मढ़ी दा दीवा जो उनके उपन्यास थे। दलितों पर लिखने वाला ऐसा लेखक जो खुद को पात्रों में ढाल लेता हो। जिसकी कल्पना भी पंजाब की हकीकत रही। ज्ञानपीठ का हकदार तो था ही।
एक बार फिर मौका था कि उनसे मिलूं। इस बार मैंने गुरद्याल सिंह को पढ़ा था। सोचा इस बार कुछ सवाल पढ़ने के बाद जो जहन में आए हैं पूछ लूंगी। सुबह से फोन करना शुरू किया लेकिन नंबर पर घंटियां जाती रही फोन किसी ने नहीं उठाया। मन में कई सवाल आए पर फिर भी दिलासा दी कि नहीं ऐसे शख्स नहीं हैं कि फोन ना उठाएं सोचा शायद व्यस्त होंगे। जब मैंने अपने फोन पर देखा तो डिटेल आ रही थी कि मैं 25 बार उनके नंबर पर फोन कर चुकी हूं। फोन करते करते शाम हो गई।
आखिरी कोशिश मैंने शाम करीब 6 बजे की और इस बार दूसरी तरफ से लड़खड़ाती आवाज आई बोलिए कौन। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह आवाज गुरद्याल सिंह की है। शायद उन्हे मेरी आवाज नहीं आ रही थी तो उन्होने फिर दोहराया मैं गुरद्याल सिंह बोल रहा हूं। मैंने कहा जी दिल्ली से बोल रही हूं निशा। बहुत अरसे पहले आपसे मुलाकात हुई थी। और अब मौका मिला है दोबारा तो आपसे मिलना चाह रही थी। पंजाब को लेकर बात करना चाह रही हूं, आजकल पंजाब सुर्खियों में है उन्होंने कहा क्यों? उनका कहा ‘क्यों’ चुभा कि ऐसा लेखक जिसे पंजाब के किसी भी मुद्दे पर पूछ लो उसे जानकारी होती है वह ऐसा कह रहा है। मैंने कहा जी गरीबी, बेरोजगारी, नशाखोरी और बड़े मसले हैं। तो उन्होंने कहा मैंने इन सब मुद्दों पर लिखा है तुम पढ़ लो गहराई में पता लग जाएगा मैंने कहा मैंने पढ़ा तो है आपको, पर फिर भी मिलना चाह रही थी। अगर आप चाहेंगे तो। उनकी आवाज़ में वो दम नहीं था, वो जोश नहीं था। मुझे जो वह कह रहे थे समझने के लिए बहुत कोशिश करनी पढ़ रही थी। फिर उनकी बात समझ में आई कि ‘तबियत ठीक नहीं है बिस्तर पर ही रहता हूं कम लिख पाता हूं। एक नॉवल शुरू किया है उसे समय लगता है तो लिखता हूं।’ मैंने दोहराया मैं आपसे मिलना चाह रही हूं तो उन्होंने कहा ‘मिलने से अच्छा है एक चिट्टी डाल दो मैं जवाब दे दूंगा’। मुझे कुछ चिट्ठी की बात अटपटी लगी और मैंने एकाएक कहा ‘चिट्ठी बोलेगी नहीं ना सर’। मिल कर बात करना चाहती हूं इच्छा है मेरी, तो उनकी धीमी आवाज मैं मुझे सुनाई दिया फोन करके आना। मैंने कहा जरूर…
पंजाब के दौरे के दौरान मैंने उनका फोन मिलाया पर फोन पर दोबारा बात नहीं हो पाई और मुझे बिना उनसे बात करे वापस आना पड़ा। मन में बात ना होने का मलाल तो था लेकिन सोचा दोबारा मुलाकात हो जाएगी। आज जब खबर है कि गुरद्याल सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया तो मलाल और गहरा गया।