दिल्ली हाई कोर्ट ने तिब्बती नागरिकों के हक में एक अहम फैसला सुनाया है। फैसले में कोर्ट ने 26 जनवरी 1950 के बाद और 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुए तिब्बती को भारतीय नागरिक माना है। कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि उन्हें भारतीय पासपोर्ट देने से इंकार नहीं किया जा सकता।
हाई कोर्ट ने ये फैसला तीन भारतीय-तिब्बती याचिकाकर्ताओं की याचिका का निपटारा करते हुए सुनाया है। तीनों ने भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। लेकिन नियमों का हवाला देते हुए पासपोर्ट ऑफिस ने उन्हें पासपोर्ट देने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने पासपोर्ट विभाग को आदेश जारी करते हुए कहा कि भारतीय नागरिक मानते हुए चार हफ्ते के भीतर इन्हें पासपोर्ट जारी किया जाए।
दरअसल,, इस मामले में दो याचिकाकर्ता 1950-1987 के बीच पैदा हुए थे जबकि एक याचिकाकर्ता बाद में पैदा हुआ था लेकिन उनके पिता भारत में इस अवधि के दौरान ही पैदा हुआ थे। सुनवाई के दौरान लोबसांग वांग्याल व फुंग्सुक वांग्याल ने हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए बताया कि वो भारत में पंजीकृत मतदाता है इसके बावजूद उसके भारतीय पासपोर्ट के लिए पेश आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वह भले ही 1970 में भारत में पैदा हुआ है, लेकिन वह तिब्बती वंश का है।
वांग्याल ने कोर्ट से गुहार लगायी थी कि क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी (आरपीओ) को निर्देश दिया जाए कि तिब्बती लोगों को, जो भारत में 26 जनवरी 1950 के बाद और 1 जुलाई 1987 से पहले पैदा हुए हैं। उन्हें बतौर कानूनी रूप से भारतीय नागरिक मानें। इस याचिकाकर्ता के पास कहीं की भी नागरिकता नहीं है। याचिका में बताया गया था कि याचिकाकर्ता के पास यैलो बुक और पहचान प्रमाण पत्र है जिसके आधार पर वह यात्रा कर सकते हैं।
जानें क्या है कानून
1955 में पास भारत के नागरिक कानून के तहत 26 जनवरी 1950 के बाद पैदा हर व्यक्ति भारतीय नागरिक है। इसके बाद कानून में संशोधन कर कहा गया कि 1 जुलाई 1987 के बाद पैदा व्यक्ति जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता का दावा नहीं कर सकता। यदि उसके माता-पिता में से एक भारतीय है तभी उसे भारतीय नागरिकता मिल सकती है।