सरेंडर के बाद शहाबुद्दीन को सिवान के मंडल कारागार भेज दिया गया। जमानत रद्द किए जाने पर शहाबुद्दीन ने कहा कि वह अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए समर्पण कर रहे हैं। हालांकि इसके साथ ही उसने संवाददाताओं से कहा, ‘मेरे समर्थक अगले चुनाव में नीतीश कुमार को सबक सिखाएंगे।’ जमानत मिलने पर जेल से बाहर आते समय भी शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए उन्हें परिस्थितियों का मुख्यमंत्री करार दिया था जिसके बाद बिहार की राजनीति गरमा गई थी।
गौरतलब है कि बिहार सरकार और राजीव रोशन के पिता चंदा बाबू ने शहाबुद्दीन की जमानत रद करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिका लगाई थी। इस पर पिछली सुनवाई में शहाबुद्दीन की ओर से कहा गया कि उसे बार-बार हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं तो उसे भी अदालत ने फटकार लगाई।पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस पीसी घोष ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं जिनमें उसे हिस्ट्रीशीटर माना गया है। क्या ये गलत कहे जा सकते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि हम इस बारे में बहुत स्पष्ट हैं कि हिस्ट्रीशीटर को जमानत नहीं दी जा सकती।
बिहार सरकार पर उठे सवाल
इससे पहले जस्टिस घोष और जस्टिस अमिताभ रॉय की पीठ ने बिहार सरकार से पूछा कि क्या शहाबुदीन की जमानत अर्जी की सुनवाई के समय अभियोजन अधिकारी कोर्ट में गए थे। हाई कोर्ट को क्या यह बताया गया था कि ट्रायल शुरू होने में नौ माह की देरी शहाबुद्दीन के कारण ही हुई है क्योंकि उसने हत्या के मामले में संज्ञान लेने के फैसले को रिवीजन कोर्ट में चुनौती दी थी जिससे पूरा रिकॉर्ड वहां चला गया और ट्रायल शुरू नहीं हो पाया। सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि अगस्त में दाखिल जमानत अर्जी सात सितंबर को सुनवाई के लिए लगी और उसी दिन हाई कोर्ट ने जमानत का आदेश पारित कर दिया।
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि शहाबुद्दीन को जब हाई कोर्ट से जमानत मिली तो इस मामले में वह अशक्त थे। इस पर कोर्ट ने कहा, आप राज्य हैं आप अशक्त कैसे हो सकते हैं। साथ ही पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या हाई कोर्ट ने आपको जमानत की याचिका पर नोटिस नहीं दिया था। जब आपको नोटिस मिला था तो आपने पूरा प्रकरण कोर्ट के सामने क्यों नहीं रखा। आप यह नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट ने आपको नहीं सुना। आप हमें दिखाइए कि आपने सुनवाई के लिए समय मांगा था और हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।
मामला गंभीरता से नहीं लिया गया
पीठ ने कहा कि यह इतना महत्वपूर्ण केस है और कई बार सुप्रीम कोर्ट भी आया है। ऐसे में क्या अभियोजन अधिकारी को यह जानकारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट को यह कहना पड़ रहा है कि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। पीठ ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ 45 आपराधिक केस लंबित हैं और इससे पूर्व सभी मामलों में उसे जमानत मिली लेकिन राज्य नींद से तभी जागा जबकि हत्या के इस केस में उसे जमानत मिली।
सुनवाई के दौरान चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बहस की और उन्होंने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने का आग्रह किया। उन्होंने 2010 और 2015 के फैसले कोर्ट को बताए जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुदीन की जमानत रद्द करने के आदेश दिए थे। चंदा बाबू के तीन बेटों की हत्या का मामला शहबुद्दीन पर चल रहा है। इसी केस में उसे 11 साल बाद जमानत मिली थी। उसकी जमानत के खिलाफ चंदाबाबू ने अपनी याचिका में कहा था कि शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के बाद क्षेत्र में सनसनी और डर का माहौल बन गया है। इसके अलावा बिहार सरकार ने भी शहाबुद्दीन की जमानत के खिलाफ याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि पटना हाई कोर्ट का जमानत देने का आदेश कानून का मजाक उड़ाना है क्योंकि हत्या के केस में अभी तक गवाहों के बयान भी दर्ज नहीं हुए हैं। साथ ही हाई कोर्ट ने इस तथ्य को भी अनदेखा कर दिया कि शहाबुद्दीन पर 13 मई 2016 को सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या का भी आरोप है।शहाबुद्दीन के खिलाफ हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के 40 से अधिक मामले दर्ज हैं।
16 अगस्त 2004 को सिवान के गोशाला रोड में रहने वाले कारोबारी चंद्रकेश्वर प्रसाद (चंदा बाबू) के दो बेटों सतीश और गिरीश का अपहरण हुआ था। सतीश और गिरीश के बड़े भाई राजीव रोशन ने गवाही दी कि शहाबुद्दीन की मौजूदगी में उसके दोनों भाइयों को तेजाब से नहलाकर मार डाला गया था। पटना हाई कोर्ट के आदेश पर शहाबुद्दीन के खिलाफ मामले की सुनवाई शुरू हुई। इसी बीच, 16 जून 2014 को अहम गवाह राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसमें शहाबुद्दीन के साथ उनका बेटा ओसामा भी आरोपी है।