पंजाब के बठिंडा के गांव मालवाला के चबूतरे पर शाम होते ही सियासी चर्चा गर्म हो जाती है। अभी पखवाड़ा भी बीता नहीं जब इसी गांव के नंबरदार सरदार रूप सिंह आम आदमी पार्टी के गुण गाते नहीं थक रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा छोड़ कर नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में पार्टी की कमान संभाल लेंगे, फिर सब ठीक हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि इस गांव में सिर्फ आप के समर्थक हैं। एक तबका अकाली दल का समर्थक है तो कांग्रेस समर्थकों की भी अच्छी खासी संख्या है। फिर भी नंबरदार भारी पड़ते थे, क्योंकि उनके तर्क की काट तब तक दूसरे ग्रामीणों के पास नहीं थी। लेकिन अब नंबरदार सियासी चर्चा में ज्यादा नहीं बोल रहे। बस एक बात कह कर चुप हो जाते हैं, ‘आप भी बाकी सियासी दलों जैसी निकली, और फिर सब चुप्प…।’ यह चुप्पी पंजाब के हर उस मतदाता की है जो आप से बड़ी-बड़ी उम्मीद लगा रहा था। पिछले दिनों तेजी से बदले घटनाक्रम से आप का ग्राफ तेजी से घटा है। एक बार बहुत आगे नजर आ रही आप अब बाकी दलों के साथ कदम मिला कर चलने में भी हांफ सी रही है।
सबसे पहले टिकट घोषित कर आप जो सियासी माइलेज लेना चाह रही थी, वह दांव फिलहाल उलटा पड़ता नजर आ रहा है। पंजाब के संयोजक सरदार सुच्चा सिंह छोटेपुर का विरोध और फिर नाटकीय तरीके से उन्हें पार्टी से बाहर करने की कोशिश से पंजाब में आप को जबरदस्त झटका लगा है। पंजाब की राजनीति पर पीएचडी कर रहे सरदार सुखचैन सिंह ने बताया, ‘छोटेपुर पार्टी का पंजाब में बड़ा सिख चेहरा थे। उनकी अच्छी छवि थी, लेकिन केजरीवाल ने जिस तरह से उन्हें अलग किया, इसे पंजाबी सिख अपना अपमान मान रहा है।’ सुखचैन कहते हैं, ‘इसका फौरी असर भी देखने को मिल रहा है। आठ सितंबर को पंजाब दौरे पर आए केजरीवाल को जगह जगह विरोध का सामना करना पड़ा। ऐसा नहीं है कि यह विरोध पहले नहीं था, लेकिन तब विरोध के पीछे राजनीति थी। इस वक्त विरोध के पीछे साधारण लोग हैं जो गुस्से में हैं।’ सुखचैन सिंह ने बताया, ‘दिल्ली के घटनाक्रम का पंजाब पर सीधा असर पड़ रहा है। इसके अलावा छोटेपुर ने केजरी को घेरना शुरू कर दिया है। रही सही कसर नवजोत सिंह सिद्धू पूरी कर रहे हैं।’
ये हालात क्यों बने
अभी तक मुद्दों के आधार पर केजरीवाल को कोई घेरने वाला नहीं था, लेकिन अब सिद्धू, छोटेपुर और उनके समर्थक लगातार घेर रहे हैं। आप समर्थकों का एक बड़ा तबका छोटेपुर के साथ आ गया है। यह पंजाब में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका है। केजरीवाल नशे पर लगातार बादल सरकार को घेरते रहे, लेकिन उनके सांसद भगवंत मान खुद नशे की वजह से चर्चा में रहे। केजरीवाल ने उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। आप से निलंबित सांसद धर्मवीर गांधी और हरिंदर सिंह खालसा भी पार्टी के लिए परेशानी की बड़ी वजह बन रहे हैं।
योगेंद्र यादव भी संभावनाएं तलाश रहे हैं
पंजाब के सीनियर पत्रकार आईपी सिंह के मुताबिक इस सभी से आप को नुकसान हो रहा है। पंजाब के गुस्साए मतदाता के पास पहले एक विकल्प ‘आप’ था, लेकिन अब दूसरा विकल्प ‘सिद्धू’ भी है। आठ सितंबर को नवजोत सिंह सिद्धू ने आवाज ए पंजाब मोर्चा बनाया। उनकी कोशिश है कि समान विचारधारा वाले नेताओं को साथ जोड़ा जाए। सिद्धू के पास संगठन नहीं है और इतना समय नहीं बचा कि वे संगठन खड़ा कर सकें। संगठन छोटेपुर के पास है। योगेंद्र यादव सियासी रणनीति में उनकी मदद कर सकते हैं। यही वजह रही कि नवजोत सिंह सिद्धू आठ सिंतबर को बोल तो बहुत कुछ रहे थे, लेकिन बता कम रहे थे। उनकी बातों का सीधा मतलब है कि वे अकेले नहीं चलेंगे, उन्हें किसी का साथ चाहिए। यदि यह मोर्चा सियासी पार्टी में तब्दील हो जाता है तो कांग्रेस, अकाली दल और आप से नाराज मतदाता के पास एक विकल्प बन जाएगा।
पंजाब की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा
नवजोत सिंह सिद्धू का फोरम पंजाब की सियासत के मौजूदा हालात में काफी अहम माना जा रहा है। सिद्धू के साथ इस मोर्चे में पूर्व हॉकी कैप्टन और ओलंपियन परगट सिंह और बैंस ब्रदर्स-सिमरजीत सिंह और बलविंदर सिंह भी शामिल हैं। अगर यह फ्रंट चुनाव लड़ता है तो राज्य की 41 सीटों के नतीजों पर असर डाल सकता है।
अब आगे क्या…
मौजूदा हालात का सीधा फायदा अकाली व कांग्रेस को मिला नजर आ रहा है। क्योंकि दोनों ही दल पारंपरिक राजनीति करते हैं। कांग्रेस ने अपना पूरा ध्यान अब अकाली भाजपा गठबंधन पर टिका दिया है। अकाली दल भी अपने पुराने तौर तरीके पर आ गया है। सोशल स्टडी इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डाक्टर अवतार सिंह ने बताया कि आम आदमी पार्टी ने जो माहौल बनाया था, इससे मतदाता के मन में बदलाव की भावना पैदा हुई थी। लेकिन दिल्ली प्रकरण और इसके बाद पंजाब में जो हुआ इससे मतदाता का मन आहत हुआ है। साथ ही आप में जो टूट हुई उससे भी मतदाता निराशा में हैं। ऐसे में जाहिर तौर पर वे अकाली या कांग्रेस की ओर मूव कर सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ था, जिसका फायदा अकाली दल ने उठाया था। पंजाब में जो हालात बन रहे हैं, उनका सीधा लाभ अकाली दल को मिलता नजर आ रहा है। जब जब विपक्ष बिखरा है और कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा मजबूत विकल्प पंजाब में आया, तब तबअकाली दल फायदे में रहा है। हालांकि इस बार अकाली दल के प्रति लोगों में गुस्सा बहुत ज्यादा है। देखने की बात यह होगी कि यह गुस्सा विपक्षी दल कैसे भुनाते हैं।