केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ रहा है, वहीं विपक्षी पार्टियां एक सुर में प्रधानमंत्री से निर्णय रद्द करने की मांग कर रही हैं। उनका आरोप है कि नोटबंदी की वजह से देश में रबी फसलों की बुवाई में देरी हो रही है और किसान परेशान है। इन्हीं तमाम मुद्दों पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से ओपिनियन पोस्ट के विशेष संवाददाता अभिषेक रंजन सिंह ने बातचीत की।
विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि अचानक नोटबंदी के फैसले से आम लोगों को काफी तकलीफें हो रही हैं और किसानों व मजदूरों पर इसका सर्वाधिक असर पड़ा है ?
नोटबंदी पर प्रधानमंत्री का फैसला एक साहसिक, ऐतिहासिक और जनहित में उठाया गया कदम है। विपक्षी पार्टियां किसानों और गरीबों का मुखौटा लगाकर सरकार के निर्णय का विरोध कर रही हैं। अगर उन्हें वाकई गरीबों की फिक्र होती, तो आजादी के कई दशकों बाद भी हमारे देश में भ्रष्टाचार एक विकराल समस्या नहीं बनती। नोटबंदी से लोगों को कुछ परेशानियां हो रही हैं, फिर भी आम आदमी खुश है, क्योंकि उसे लगता है कि आज की कुछ दिक्कतें भविष्य को खुशहाल बनाएंगी। संसद में विपक्षी पार्टियों के रवैये से यह जाहिर होता है कि उन्हें आतंकवाद, भ्रष्टाचार और नक्सलवाद से काफी प्रेम है। अगर ऐसा नहीं होता, तो कालाधन के खिलाफ सरकार के इस अहम फैसले का विरोध नहीं करते।
विपक्षी दलों का आरोप है कि नोटबंदी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है और किसान पैसों के अभाव में खाद और बीज नहीं खरीद पा रहे हैं?
मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि किसानों का नाम लेकर विपक्षी पार्टियां नोटबंदी जैसे सकारात्मक कदम का विरोध कर रही हैं। वे कहते हैं कि नोटबंदी के बाद देश में रबी फसलों की बुवाई गत वर्ष की तुलना में कम हुई है, जबकि हालिया तथ्यपरक सूचनाओं के आधार पर मैं यह बताना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में पिछले साल 15 नवंबर से 18 नवंबर के बीच 14 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर रबी की बुवाई हुई थी। जबकि, इस साल नोटबंदी के बाद 15 नवंबर से 18 नवंबर के बीच 14.85 लाख हेक्टेयर भूमि पर बुवाई का काम पूरा हो गया है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गेहूं की बुवाई थोड़ी पहले हो जाती है। जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बुवाई का यह काम दिसंबर प्रथम सप्ताह तक चलती है। इन आंकड़ों से विपक्षी पार्टियों का आरोप खारिज हो जाता है।
विमुद्रीकरण के बाद केंद्र सरकार किसानों को किस प्रकार की सुविधाएं मुहैया करा रही है?
वित्त मंत्रालय ने नाबार्ड के सहयोग से 25,000 करोड़ रुपये जारी किए हैं, ताकि देश की सहकारी बैंकों में खाताधारक किसानों को नगदी मिल सके। इसके अलावा एक सप्ताह में किसानों को अपने खाते से 25,000 रुपये निकालने की अनुमति दी गई है। केंद्रीय बीज निगम से किसान पुराने नोट से खाद-बीज खरीद सकते हैं। आने वाले दिनों में और भी सहूलियतें किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी।
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि केंद्र सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है, खासकर ढाई साल के शासन में किसानों की हालत सर्वाधिक खराब हुई है?
देश की कषि और उससे जुड़े करोड़ों किसानों के लिए प्रधानमंत्री ने कई लाभकारी योजनाएं लागू की हैं। देश के सभी छोटे-बड़े किसानों के खेतों में पानी पहुंचे, इसके लिए हमारी सरकार प्रयत्नशील हैं. प्रधानमंत्री कषि सिंचाई योजना और राष्ट्रीय कृषि बाजार केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं हैं। इस योजना के तहत अगले चार वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। धन की कमी इस योजना में आड़े नहीं आएगी। राष्ट्रीय कषि बाजार एक क्रांतिकारी कदम है। राष्ट्रीय कृषि बाजार के तहत देश की ज्यादातर कृषि मंडियों को कम्प्यूटर नेटवर्किंग से जोड़ा गया है। इस आॅनलाइन व्यवस्था से कृषि मंडियों में आढ़तियों पर नकेल कसने में मदद मिलेगी।