निशा शर्मा।
तमिलनाडु के परंपरागत खेल जल्लीकट्टू को राज्य के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक माना जाता रहा है जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध के बाद तमिलनाडु में हर वर्ग चाहे वह विद्यार्थी हो, तकनीकी कामगार हो, अभिनेता हो या राजनेता सब हज़ारों की संख्या में एकजुट होकर प्रतिबंध को हटाने की मांग कर रहे हैं।
जल्लीकट्टू तमिलनाडु की संस्कृति से जुड़ा सदियों पुराना खेल है जिसका मतलब होता है, ‘बैलों को काबू करना’। जिसे तमिलनाडु में पोंगल पर्व के दौरान खेला जाता रहा है। इस खेल में बैलों और सांडों को खुला छोड़ दिया जाता है और युवाओं को उन्हें काबू में करना होता है। सांड को काबू करने वाले पर इनाम होता है। जिससे यह खेल रोचक हो जाता है। रोचकता के चलते इसमें भारी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। मदुरै और तिरुचिरापल्ली में हर साल बहुत से लोग जल्लीकट्टू रोचक होने के कारण ही देखने आते हैं।
प्रतिबंधित किए जाने के बाद इस खेल पर बहस शुरु हो गई है। क्या जल्लीकट्टू से जानवर आहत होते हैं जिससे इस परंपरा पर रोक लगनी चाहिए या यह परंपरा बरकरार रहनी चाहिए।
बरकरार रहना चाहिए खेल-
जो लोग मानते हैं कि जल्लीकट्टू जानवरों को हानि नहीं पहुंचाता वह कहते हैं इस तरह से तो घोड़ों की रेस पर, बैलगाड़ी की रेस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यही नहीं बकरीद नहीं मनाई जानी चाहिए जिसमें जानवरों की निर्मम हत्या की जाती है।
सूरज जो तमिल सिनेमा में सिनेमेटोग्राफर हैं, बताते हैं कि जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है। जो मैंने बचपन से देखा है क्योंकि मैं एक गांव से हूं। मेरे घर में कई बैल हुआ करते थे। यह जानवर पेटा (पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) के लिए हो सकते हैं लेकिन यह बैल तमिलनाडु के किसान के परिवार का हिस्सा होते हैं। हमारे परिवार में भी ऐसा ही रहा है बाकायदा बच्चों की तरह इन बैलों का नाम रखा जाता है। अभी मेरे मामा के यहां चार पांच बछड़े हैं जिनके पालन पोषण के लिए उन्होंने गाय रखी थी ताकि वह उन्हे दूध पिला सके। खेल के बाद भी बैलों के लिए दूध का विशेष प्रतिबंध किया जाता है। हर त्योहार की तरह जल्लीकट्टू हमारे लिए एक त्योहार है जहां जश्न की तैयारी होती है। बैल को सजाया जाता है, संवारा जाता है। और पूरे अभ्यास के साथ यह खेल खेला जाता है। यह अभ्यास कईं दिन तक चलता है। यह त्यौहार किसी की जान लेने का नहीं है। जैसा की बकरीद में होता है।
हालांकि इस खेल में अब कुछ ऐसी चीजें आ गई हैं जिसके चलते लोगों को जान का खतरा होने की संभावना होती है अब लोग अवैधानिक तरीके से सांडों को जबरन शराब पिलाते हैं और खेल में उतारते हैं जिससे उनके बेकाबू होने की पूरी संभावना होती है। खेल को प्रकिबंधित करने की जगह ऐसे तत्वों को सजा होनी चाहिए।
https://twitter.com/GHOSTBUSTOR/status/687677120911425537
#JusticeforJallikattu Madi say no special law #Jallikuttu. #TamilYoungBloods Lets be unite. We fight till we get back our right
— Mithun Rajesvaran (@mithunrajesvar) January 19, 2017
खेल पर रोक लगनी चाहिए-
परंपरा के तौर पर जल्लीकट्टू का आयोजन किया जाता है लेकिन जानवरों के कल्याण से जुड़ी संस्थाओं का कहना है कि इस खेल में जानवर प्रताड़ित किए जाते हैं। प्रतियोगिता के दौरान सांडों पर अत्याचार किया जाता है। सांडों को डंडे से मारा जाता है।
पेटा और एफआईएपीओ के मुताबिक पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के तहत जल्लीकट्टू एक अवैध गतिविधि है।
पेटा ने ट्वीट किया है कि 2006 में मदुरै में नागाअर्जुन के बेटे की जल्लीकट्टू खेल के दौरान मौत हो गई जिसके चलते इस खेल को रोकने की याचिका कोर्ट में दी गई थी।
Original 2006 court petition was filed by A Nagarajan of Madurai whose son died during jallikattu.
— PETA India (@PetaIndia) January 19, 2017
एफआईएपीओ के निदेशक वरदा मेहरोत्रा का कहना है कि कोई संस्कृति हिंसा का समर्थन नहीं करती।
खेल और राजनीति
इस खेल में आयोजन समितियां आम तौर पर राजनीतिक दलों से जुड़ी होती है। खिलाड़ियों को नेताओं की तस्वीरों वाली जर्सी भी दी जाती है। जीतने वाली टीम को इनाम मिलता है। जो राजनीतिक दल इसमें जीतता है वह जीत के तौर पर अपना प्रचार भी करता है। यही कारण है कि तमाम विरोधों की अनदेखी करते हुए केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में सांड को काबू में करने के इस विवादास्पद खेल से प्रतिबंध हटाया था।
दरअसल,, पर्यावरण मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रतिबंधित जानवरों की सूची से सांडों को हटा दिया था। सरकार ने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध हटाने के साथ ही आयोजन के लिए कुछ शर्तें भी जोड़ी थीं। अधिसूचना के मुताबिक जल्लीकट्टू के तहत सांड या बैलों को 15 मीटर के दायरे के अंदर ही काबू करना होगा। कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले सांडों और बैलों की स्वास्थ्य जांच का प्रावधान भी जोड़ा गया। यह जांच पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों से ही करवाए जाने की शर्त रखी गई थी।
जल्लीकट्टू के प्रतिबंध के खिलाफ़ अब तक प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं, लेकिन चेन्नई के बीचोंबीच इस तरह इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जुटना चिंताजनक माना जा रहा है। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन नाकाम रही।
राज्य सरकार का कहना है कि वह इस मामले में कानूनी विकल्प भी तलाश रही है।