नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में मांग कमजोर होने से यह उम्मीद जताई जा रही थी कि रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरें घटाने का ऐलान करेगा मगर उसने ऐसा नहीं किया और रेपो रेट को 6.25 फीसदी पर ही बरकरार रखा। हालांकि रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के बाद बैंक खातों से नकद निकालने की सीमा को हटाकर लोगों को राहत देने का ऐलान जरूर किया।
आरबीआई ने बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा में ऐलान किया कि 20 फरवरी से लोग एक हफ्ते में बचत खाते से 50 हजार रुपये निकाल पाएंगे। इसके बाद 13 मार्च से नोटबंदी से पहले की तरह नकदी निकालने की कोई सीमा नहीं रह जाएगी। फिलहाल बचत खाते से एक हफ्ते में 24 हजार रुपये ही निकाले जा सकते हैं। रिजर्व बैंक ने कहा कि 27 जनवरी तक कुल मिलाकर 9.92 लाख करोड़ रुपये के नये नोट चलन में आ चुके हैं।
ब्याज दरों में कोई फेरबदल
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक बुधवार को दूसरे दिन भी हुई। समिति की बैठक में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया गया। रेपो रेट 6.25 फीसदी पर ही बरकरार रखा गया है। वहीं रिवर्स रेपो रेट को भी 5.75 फीसदी ही रखा गया। वहीं सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) भी 4 फीसदी पर ही पहले की तरह बरकरार है। इससे लोगों की कर्ज सस्ते होने की उम्मीदों को झटका लगा है। बैंकों ने पहले ही साफ साफ कहा था कि ग्राहकों के लिए कर्ज की दरें पहले ही कम हो गई हैं इसलिए अब ज्यादा कटौती की उम्मीदें ना रखी जाएं। रेपो रेट में कटौती की उम्मीद के पीछे सबसे अहम कारण था कि दिसंबर में पिछली मौद्रिक नीति के बाद से खुदरा महंगाई घटी है। लिहाजा नोटबंदी के बाद खपत में जो गिरावट आई है उसे सुधारने के लिए रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदे थी पर आरबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया। जानकारों का मानना है कि मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू स्तर पर महंगाई बढ़ने के अनुमान के चलते दरें घटाने से परहेज किया।
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की जीडीपी वद्धि का अनुमान घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है। साथ ही अगले वित्त वर्ष में इसके 7.4 प्रतिशत पर पहुंचने की उम्मीद जताई है। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि महंगाई दर जनवरी-मार्च में पांच प्रतिशत से नीचे रहेगी। आरबीआई ने वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में मुद्रास्फीति 4-4.5 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 4.5-5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।