आंकड़ों की बाजीगरी

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राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो गैर-सरकारी सदस्यों, जिनमें उसके कार्यवाहक प्रमुख भी शामिल हैं, ने नौकरियों के आंकड़े जारी होने को लेकर मोदी सरकार के साथ हुई असहमति के कारण इस्तीफा दे दिया. उनकी चिंता थी कि चुनावी मौसम में उक्त आंकड़े दफन कर दिए जाएंगे.

इस स्वायत्त निकाय के कार्यवाहक अध्यक्ष एवं भारतीय सांख्यिकी सेवा के पूर्व सदस्य पीसी मोहनन और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर जेवी मीनाक्षी के इस्तीफे के साथ ही अब आयोग में कोई बाहरी सदस्य नहीं है. इस पैनल में अब केवल दो अन्य सदस्य मुख्य सांख्यिकीविद् प्रवीण श्रीवास्तव और नीति आयोग के अमिताभ कांत रह गए हैं.

जाहिर तौर पर, मोहनन एवं मीनाक्षी पिछले साल के रोजगार सर्वेक्षण के प्रकाशन और यूपीए युग के जीडीपी आंकड़ों को लेकर मौजूदा सरकार से नाखुश थे. मौजूदा सरकार ऐसे आंकड़े दिखाना चाहती थी, जिनसे लगे कि यूपीए की तुलना में अर्थव्यवस्था एनडीए के शासन में बेहतर प्रदर्शन कर रही है. इन इस्तीफों से निश्चित रूप से विपक्षी दलों को मदद मिलेगी, जो आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार ने रोजगार और जीडीपी के आंकड़ों के साथ धोखा किया है, क्योंकि यह उसके राजनीतिक एजेंडे के अनुरूप नहीं थे. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अधीन आने वाले आयोग में सात सदस्यों का होना अनिवार्य है. इन इस्तीफों से पहले भी तीन पद खाली थे.

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