मुंबई। महानायक अमिताभ बच्चन और शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा के बीच जवानी के जोश और स्टारडम के चलते दूरियां बढ़ी थी। अपनी बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश’ की शुक्रवार को लॉन्चिंग के मौके पर शत्रुघ्न सिन्हा ने यह बात बताई। इस मौके पर सालों बाद दोनों सुपर स्टार गले मिले। फिल्ममेकर सुभाष घई की मौजूदगी में हुई लॉन्चिंग पर सोनाक्षी सिन्हा, पूनम सिन्हा और राइटर भारती प्रधान भी मौजूद रहे। मीडिया से बातचीत के दौरान शत्रुघ्न और अमिताभ ने अपनी ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन केमिस्ट्री पर भी बात की।
दोस्ताना में कैसे पड़ी दरार
शत्रुघ्न ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है, फिल्मों में जो शोहरत अमिताभ बच्चन चाहते थे, वो मुझे मिल रही थी। इससे अमिताभ परेशान होते थे। इसके चलते मैंने कई फिल्में छोड़ दी और साइनिंग अमाउंट तक लौटा दिए। बता दें कि बॉलीवुड कभी अमिताभ व शत्रु के दोस्ताना का गवाह रहा है। 70 के दशक में इस दोस्ती में दरार पड़ गई। दोस्ती दुश्मनी में कैसे बदली? इस सवाल का जवाब शॉटगन ने अपनी बायोग्राफी में दिया है। शॉटगन आज भी अमिताभ से दोस्ती टूटने को भूल नहीं पाए हैं। यह दर्द उनको रह-रहकर परेशान करता रहता है। बायोग्राफी में भी उन्होंने इस दर्द को बयां किया है।
शत्रु मानते हैं कि 70 के दशक में बॉलीबुड में उनका कद अमिताभ बच्चन से बड़ा था। इस कारण ही दोस्ती में दरार पड़ी। अपनी किताब में शत्रु लिखते हैं कि तब लोग कहते थे कि अमिताभ और मेरी ऑन स्क्रीन जोड़ी सुपरहिट है, पर वो मेरे साथ काम नहीं करना चाहते थे। उनको लगता था कि नसीब, काला पत्थर, शान और दोस्ताना में शत्रुघ्न सिन्हा मुझ पर भारी पड़ गए, लेकिन इससे मुझे कभी फर्क नहीं पड़ा।
काला पत्थर के सेट पर कभी मुझे अमिताभ के बगल वाली कुर्सी ऑफर नहीं की गई। शूटिंग के बाद लोकेशन से होटल जाते हुए कभी अमिताभ ने मुझे अपनी कार में आने के लिए ऑफर नहीं दिया। मुझे ये देखकर आश्चर्य होता था कि आखिर ये क्यों हो रहा है, लेकिन मैंने कभी किसी बात को लेकर शिकायत नहीं की।
शत्रुघ्न की बायोग्राफी में उनके और बिग बी के बीच मनमुटाव और खटास के बारे में कई बातें लिखी गई हैं। इस बारे में शत्रुघ्न सिन्हा ने बताया, “ये बातें सब कल की हैं। अगर नहीं लिखता तो ऑनेस्ट बायोग्राफी नहीं होती। इसका मतलब यह नहीं कि आज मेरे दिल में कुछ खटास है। वो जवानी का जोश और स्टारडम का तकाजा था। यदि हम दोस्त हैं, तो हमें लड़ने का भी हक है। अगर आज आप मुझसे पूछे तो मैं कहूंगा कि मेरे दिल में अमित (अमिताभ बच्चन) के लिए बेहद आदर हैं और मैं उन्हें पर्सनालिटी ऑफ द मिलेनियम मानता हूं।”
शत्रु की लेटलतीफी बिग बी ने की उजागर
शत्रुघ्न अपनी लेटलतीफी के लिए काफी मशहूर हैं। इस बारे में बिग बी बोले, “कुछ आदतें पैदाइशी होती हैं, उन्हें बदलना नहीं चाहिए। उन दिनों हम लोग दो फिल्मों ‘शान’ (1980) और नसीब (1981) में साथ काम कर रहे थे। सुबह 7 से दोपहर 2 बजे तक ‘शान’ की शूटिंग फिल्मसिटी में होती थी। दोपहर 2 से रात 10 बजे तक ‘नसीब’ की शूटिंग चांदी वली स्टूडियो में। हम दोनों फिल्म के क्लाइमेक्स पर काम कर रहे थे। 7 से 2 बजे तक काम करने के बाद हमारी छुट्टी होती थी। मैं गाड़ी में बैठ चांदी वली स्टूडियो चला जाता था। ये (शत्रुघ्न) भी अपनी गाड़ी में बैठ चांदी वली की ओर निकलते थे। मैं ढाई बजे पहुंचता था और ये 6-7 बजे तक आते थे। जाना एक ही जगह है, लेकिन ये कहां चले जाते थे? ये मैं आज इनसे जानना चाहूंगा।” इस पर शत्रुघ्न बोले, “अब तो बड़ी देर कर दी मेहर-बा आते आते। अब बताकर क्या फायदा।”
बिग ने फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ (1972) से जुड़ा दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए कहा, “वे जहां भी रहें सबका अटेंशन बटोरते हैं। हमने ‘बॉम्बे टू गोवा’ में काम किया। फिल्म के एक सीन में, मैं अरुणा ईरानी जी के साथ स्वीमिंग पूल के किनारे शूटिंग कर रहा था। शत्रुघ्न के साथ डायलॉग खत्म हो गए थे और वे थोड़ी दूरी पर चले गए थे। तब मैं और अरुणा जी कैमरे के सामने अपनी सीन्स दे रहे थे। डायलॉग के बीच एक सिगरेट के धुंए का छल्ला हमारे चेहरे के बीच आ गया। भाई साहब (शत्रुघ्न) पीछे बैठे थे और स्मोक रिंग छोड़ रहे थे। ताकी लोगों का ध्यान अरुणा जी और मुझमें न होकर उनपर जाए। लेकिन यह एक बहुत ही खूबसूरत क्वालिटी है।”
शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि उनकी बायोग्राफी -एनीथिंग बट खामोश : द शत्रुघ्न सिन्हा- सच्ची और पारदर्शी है। मेरी जीवनी मनोरंजक और प्रभावशाली है, क्योंकि इसमें अच्छी बुरी हर तरह की चीजें हैं और इसमें नकारात्मक पहलू को भी ईमानदारी से बताया गया है। उन्होंने कहा, लोग मेरे बारे में बहुत कुछ कहते हैं, जो मझे पसंद नहीं है, लेकिन इसमें कुछ भी छिपा नहीं है। इस देश में लोकतंत्र है और यहां सभी को बोलने का अधिकार है। उन्होंने बताया कि यह अलग तरह की जीवनी है। शत्रुघ्न ने कहा, अमूमन जीवनियों में संबंधित व्यक्ति की प्रशंसा होती है, लेकिन मेरी जीवनी अलग है, इसलिए यह मनोरंजक और दिलचस्प है। प्रधान ने सात साल के शोध, 37 साक्षात्कार और सिन्हा परिवार के साथ 200 घंटों से भी ज्यादा समय की बातचीत के आधार पर यह जीवनी लिखी है।