अच्छी फिल्म। अच्छी कहानी। पारंपिरक ढर्रे को तोड़ती हुई। फिमेल करेक्टर के डीप कलीवेज दिखा दर्शको को सिनेमाघर तक खिंचने की घटिया कोशिश से दूर एक दम साफ सुथरी फिल्म। जबरदस्ती के किसिंग सीन डाल कर दर्शकों की सक्सुअलिटी को एक्सप्लायट करने की कुत्सित कोशिश नहीं है। परिवार के साथ देखे, अकेले देखे, जैसे मर्जी देखे। एपीक है, लेकिन टैक्नोलोजी, वीएफेक्स, स्पेशल इफेक्ट्स इस कहानी को आज के दौर से कई मील आगे खड़ा कर रहे हैं। लगता ही नहीं हम युद्ध इतिहास की किसी घटना के साक्षात्कार कर रहे हैं। कहानी दर्शकों को जोड़ती हुई अाज के वक्त सी जान पड़ती है।
अच्छी फिल्म है। सत्ता के लिए घटिया चालाकी, साजिश, सिद्धांत, सच सिर्फ इतिहास के पन्नों में लिपटे कुछ शब्द भर नहीं है। यह षड़यंत्र तो आज भी हो रहा है, शायद हमारे आस पास भी।
प्रेम के लिए सिहासन छोडने की कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन इस फिल्म में जिस तरह से सिलसिलेवार इन घटनाओं को गूंथा है, यह कोशिश बेदह उम्दा है। हर करेक्टर ने अपना किरदार बहुत ही करीने से निभाया है। तभी तो रफ्ता रफ्ता गुजरते वक्त का अहसास ही नहीं होता। कब तीन घंटे सरक जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता। फिल्म के जिस शो में मैं था उस शो में युवा, बच्चे , युवतियां सब मौजूद थे। हर कोई खुश था।
यह फिल्म बहुत ज्यादाकारोबार कर रही है। ऐसा मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है। बताया जा रहा हैकि टिकट ही नहीं मिल रहे। प्रचार के परपंच के दूर से फिल्म दौड़ रही है। किसी नए कीर्तिमान की ओर। कैसे हुआ यह सब। मुबंई सोच रही है, हैदराबाद ने क्या कर दिया। यूं तो फिल्म युरोप के बुलगारियां, कर्नाटक, केरल और रामाजी राव फिल्मसिटी में शूट हुई। लेकिन इसमें महक साउथ की है। टैक्नॉलजी के मामले में तो फिल्म हालीवुड का भी पीछे छोड़ती नजर आती है। एक होता है टैक्नोलोजी, दूसरा होता है इसका बेहतर इस्तेमाल। मुंबई के लिए यह फिल्म एक सबक और सीख हो सकती है। उन्हें भी बदलना होगा। नया कांसेप्ट लाना होगा। प्रेमिका और प्रेमी की कहानी भर से अब काम चलने वाला नहीं है।
मुंबई को सोचना होगा साउथ की इस फिल्म ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। क्योंकि मुंबई बने बनाए ढर्रे पर चलती रही। भेजपुरी सिनेमा भी यहीं हाल है। हां पंजाबी सिनेमा खूब तरक्की कर रहा है।
फलसफा इतना भर है बने बनाए रास्ते छोड़ खुद के रास्ते बनाएं। वह चाहे पगडंडी ही क्यों न साबित हो, लेकिन होंगे तो अपने। सो प्रयोग करें। यहीं वक्त की जरूरत है।
(मनोज ठाकुर की फेसबुक वॉल से…)