राकेश चंद्र श्रीवास्तव/सचिन श्रीवास्तव
भारत में केला सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण फल है तथा उत्पादकता के मामले में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बस्ती, सन्त कबीर नगर, श्रावस्ती, बलरामपुर और बहराइच जनपदों में केले की खेती प्रमुखता से की जाती है। उत्तर प्रदेश में बहराइच केले की खेती में प्रथम स्थान पर है। गोण्डा, बलरामपुर, फतेहपुर, श्रावस्ती सहित बहराइच जनपदों को उत्तर प्रदेश शासन ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत केले की आधुनिक खेती में पायलट प्रोजेक्ट के रुप में चुना है। बहराइच, श्रावस्ती में लगभग पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में केले की खेती की जा रही है जिससे किसान प्रति हेक्टेयर लगभग दो लाख रुपए तक कमा लेते हैं। केले का उद्गम क्षेत्र मलेशिया माना जाता है जहां से छठी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु द्वारा श्रावस्ती (बहराइच) में केला का वृक्ष लाये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।
बहराइच, श्रावस्ती में लगभग पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में केले की खेती की जा रही है जिससे किसान प्रति हेक्टेयर लगभग दो लाख रुपए तक कमा लेते हैं। केले का उद्गम क्षेत्र मलेशिया माना जाता है
विश्व के कुल केला उत्पादन मेंं भारत का लगभग 30 प्रतिशत योगदान है। अन्य प्रमुख केला उत्पादक देशों में फिलीपींस 9.3 प्रतिशत, चीन 8.6 प्रतिशत, ब्राजील 7.6 प्रतिशत, इक्वाडोर 6.2 प्रतिशत और इंडोनेशिया 6.1 प्रतिशत हैं। देश के प्रमुख केला उत्पादक राज्यों में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वी, तराई और मध्य क्षेत्र के जनपदों सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बस्ती, सन्तकबीरनगर, गोरखपुर, बलिया, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, गोण्डा, फैजाबाद, लखीमपुर, बरेली, पीलीभीत, कौशाम्बी, इलाहाबाद, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, सुल्तानपुर, बाराबंकी और लखनऊ में केले की खेती प्रमुख रुप से की जा रही है। यहां केले की खेती से किसान मालामाल हो रहे हैं। पहले स्थानीय प्रजातियों रोबस्टा, कैम्पियरगंज, हरीछाल आदि रोपित की जाती थीं। फसल लम्बे समय में होती थी और उत्पादन भी कम था। अम्बेडकर विशेष रोजगार योजना के तहत कृषि एवं उद्यान विभाग के प्रयास से प्रदेश के पूर्वी तथा तराई क्षेत्र के जनपदों मे हरीछाल केला को प्रोत्साहन दिया गया जिससे उत्पादन की अवधि अपेक्षाकृत कम हुई और उत्पादन भी बढ़ा। बहराइच के विकास क्षेत्र जरवल, कैसरगंज, फखरपुर, पयागपुर, मिहींपुरवा, बलहा, महसी, विशेश्वरगंज क्षेत्रों तथा फखरपुर विकास क्षेत्र के अर्न्तगत राजापुर खुर्द एवं न्यायपंचायत सरदपारा के ग्राम भिलौरा बासु, ससना, सुपानी, जगतापुर, भिलौरा काजी, राजापुर टेपरा, ननुहा आदि ग्रामों में सैकड़ों एकड़ में केले की खेती की जा रही है। केला किसान एक एकड़ भूमि में लगभग 1800 से 2000 केले की पौध रोपते हैं। केले के एक पेड़ में 70 किलो से एक कुन्तल तक की पैदावार होती है। पहले केला भुसावल से बहराइच आकर बिकता था किन्तु अब बहराइच का केला मेरठ, दिल्ली, भुसावल और काठमांडो को भी जा रहा है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
टीशु कल्चर से खेती, डॉ. एम.वी. सिंह, कृषि वैज्ञानिक
उत्तर भारत का हिमालय पर्वत से लगा हुआ पूर्वांचल तराई क्षेत्र है जिसकी जलवायु फलों की खेती के लिए उपयोेगी है। यहां की भूमि जीवांशयुक्त नमी से ओतप्रोत रहती तथा वार्षिक वर्षा भी पर्याप्त मात्रा में मिलती है। केला इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण नकदी बागवानी फसल है जिसका क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। इस समय अनुमानत: बहराइच और श्रावस्ती में पांच हजार हेक्टेयर के आसपास केले की खेती होती है। इन दोनों जिलों में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियां हरीछाल, रोबस्टा, कोठिया, ग्रेनाइन आदि हैं। इस समय केले की खेती कृषकों द्वारा टीशु कल्चर विधि द्वारा उगाई गई पौध से की जा रही है। पूर्वांचल में केले की खेती किसानों के लिए वरदान बनी हुई है। भारत केले के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है तथा बहराइच उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पर है।
सबसे कमाऊ फसल, आर.के. वर्मा, उद्यान सलाहकार
वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश के गोण्डा, बलरामपुर, श्रावस्ती, फतेहपुर और बहराइच को शासन ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना। इसके तहत बहराइच में लगभग तीन हजार हेक्टेयर में टीशु कल्चर पद्धति से केले की खेती की गइै और किसान एक हेक्टेयर में लगभग दो लाख रुपये बचत भी कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल जिलों के किसान केले की खेती से मालामाल हो रहे हैं।