रालोसपा प्रत्याशी राम कुमार शर्मा चार लाख 11 हजार 265 मत पाकर सांसद निर्वाचित हुए. वहीं राजद प्रत्याशी एवं पूर्व सांसद सीता राम यादव दो लाख 63 हजार तीन सौ मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे. जदयू प्रत्याशी डॉ. अर्जुन राय महज 97 हजार 188 मतों पर सिमट कर रह गए थे.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में देश भर में एक नया तूफानी अभियान चला था. जहां देखो, मोदी लहर थी. सीतामढ़ी सीट से कुल 19 प्रत्याशी चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे थे, जिनमें भाजपा गठबंधन के तहत रालोसपा के टिकट पर राम कुमार शर्मा, राजद से सीताराम यादव, जदयू से डॉ. अर्जुन राय, बसपा के महेश कुमार, आम आदमी पार्टी के किशोरी दास, लोकदल के जय कुमार चौधरी, सर्वजन कल्याण लोकतांत्रिक पार्टी के भारत भूषण सहनी, समाजवादी जनता पार्टी के महेंद्र प्रसाद, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के राजीव रंजन, बहुजन मुक्ति पार्टी के सत्येंद्र भंडारी, बज्जीकांचल विकास पार्टी के सुरेंद्र कुमार, समाजवादी पार्टी के सैयद अबु दोजाना और बतौर निर्दलीय अजय कुमार, चंद्रिका प्रसाद, नरेंद्र मिश्रा, महेश नंदन सिंह, मो. फैयाज अहमद, विनोद साह एवं सोने लाल साह शामिल थे.
रालोसपा प्रत्याशी राम कुमार शर्मा चार लाख 11 हजार 265 मत पाकर सांसद निर्वाचित हुए. वहीं राजद प्रत्याशी एवं पूर्व सांसद सीता राम यादव दो लाख 63 हजार तीन सौ मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे. जदयू प्रत्याशी डॉ. अर्जुन राय महज 97 हजार 188 मतों पर सिमट कर रह गए थे. चौथे स्थान पर महेश नंदन सिंह (20,613) रहे. किशोरी दास को 18, 043 और राजीव रंजन 11, 250 मत मिले थे. शेष प्रत्याशियों में किसी को दस हजार वोट भी नसीब नहीं हो सके. इन दस हजार से कम वोट लाने वाले प्रत्याशियों पर नजर डालें, तो तकरीबन 73 हजार वोट कहीं के नहीं रहे. सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में हजारों मतदाताओं ने ‘नोटा’ का इस्तेमाल किया. बथनाहा में 1042, परिहार में 1132, सुरसंड में 980, बाजपट्टी में 1019, सीतामढ़ी में 798 और रून्नीसैदपुर में 977 मतदाताओं ने ‘नोटा’ दबाया था. इन कुल मतों की संख्या 5948 थी. मतलब यह कि डमी प्रत्याशी और ‘नोटा’ मिलाकर 78 हजार मतों का कोई ठिकाना नहीं रहा.
2019 के लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. तकरीबन सभी दलों के संभावित प्रत्याशियों ने जनता से लेकर आला नेताओं तक दरबार लगाना शुरू कर दिया है. जिले की राजनीति में पैठ रखने वालों की मानें, तो 2019 के चुनाव में भी प्रत्याशियों की तादाद में कमी आने की संभावना बहुत कम है. यह भी साफ है कि गठबंधन की चल रही राजनीति के तहत सीधा चुनावी मुकाबला महा-गठबंधन और एनडीए के बीच होना तय है. सत्ताधारी दल के नेता जहां नई विकास योजनाओं के सहारे चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में लग गए हैं, वहीं दूसरी ओर विरोधी दल के नेता सरकार पर जनविरोधी होने का आरोप लगाते हुए जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूम बनाने में जुटे हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथ-साथ निर्दलीय खेमा भी व्यवस्था परिवर्तन के लिए जनता को एकजुट करने में पसीना बहा रहा है. उसका मानना है कि जब तक जाति और पार्टी की चक्की में जनता उलझी रहेगी, तब तक न तो समुचित विकास हो सकता है और न गरीबों को उनके अधिकार मिल सकते हैं. फिलहाल जनता संभावित प्रत्याशियों की भीड़ में अपने प्रतिनिधि की तलाश में नजरें घुमा रही है.