भागलपुर के सृजन घोटाले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है घोटाले की राशि बढ़ती जा रही है। शुरुआती जांच में 300 करोड़ रुपये का माना जाने वाला यह घोटाला बढ़कर 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जैसे-जैसे घोटाले की परतें खुलती जाएंगी राशि बढ़ती जाएगी। मामले के बढ़ते ही बिहार की राजनीति भी गरमा रही है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए उन पर घोटाला दबाने का आरोप लगाया है। साथ ही मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। सीबीआई जांच के लिए पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर हो चुकी है।
नीतीश कुमार पर आरोप लगाते हुए लालू यादव ने कहा कि घोटाले से बचने के लिए वह एनडीए की शरण में गए हैं। उन्होंने कहा कि इस घोटाले की जानकारी नीतीश कुमार को पहले से ही थी तो उन्होंने समय पर कार्रवाई क्यों नहीं की। अब वे कह रहे हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। लालू के मुताबिक, जुलाई 2013 में हिन्दुस्तान अखबार ने 2000 करोड़ रुपये के इस घोटाले को प्रकाशित किया था। इसके बाद संजीव कुमार नाम के आदमी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस ओर ध्यान दिलाया। उसने भारत सरकार के वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक को भी पत्र लिखा था।
अॉडिटर ने 2008 में ही पकड़ी थी गड़बड़ी
लालू के इन आरोपों में दम है क्योंकि 2008 में ही सरकारी अॉडिटर ने यह गड़बड़ी पकड़ ली थी। तब बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार थी और वित्त मंत्रालय सुशील मोदी के पास था। ऑडिटर ने आपत्ति जताई थी कि सरकार का पैसा को-अॉपरेटिव बैंक में कैसे जमा हो रहा है। अॉडिटर ने अपनी आपत्ति नीतीश सरकार को बता दी थी। भागलपुर के तत्कालीन एसडीएम विपिन कुमार ने सभी प्रखंड के अधिकारियों को लिखा कि पैसा सृजन के खाते में जमा नहीं करें लेकिन सब कुछ पहले जैसा होता रहा। आखिर कोई जिलाधिकारी किसके कहने पर सरकारी विभागों का पैसा सृजन को-अॉपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर कर रहे थे। एक के बाद एक कई जिलाधिकारियों ने ऐसा होने दिया।
रिजर्व बैंक ने भी चेताया था
यही नहीं 25 जुलाई, 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार सरकार से कहा था कि इस को-ऑपरेटिव बैंक की गतिविधियों की जांच करें। रिजर्व बैंक का आदेश है कि अगर 30 करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी होगी तो जांच सीबीआई करेगी। 2013 में भागलपुर के तत्कालीन डीएम प्रेम सिंह मीणा ने सृजन के बैंकिंग प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए जांच टीम बना दी थी मगर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इन सब तथ्यों के आधार पर यह स्वीकार करना मुश्किल लग रहा है कि राज्य सरकार को इस बात की जानकारी नहीं थी। ऐसे में सवाल यह है कि राज्य सरकार ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की। सुशासन बाबू ने इस मामले से आंखें क्यों मूदें रखी। अब जब मामला पूरी तरह से खुल चुका है तो मुख्यमंत्री दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कर रहे हैं।
क्या है सृजन घोटाला
भागलपुर जिले में सृजन नाम का एक एनजीओ है। 1996 में इस एनजीओ को महिलाओं को काम देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 2003-04 में यह संस्था झारखंड की राजधानी रांची से भागलपुर आई। उस समय के जिलाधिकारी ने इस एनजीओ को मात्र 200 रुपये महीने पर सरकारी जमीन लीज पर दी। यही अपने आप में नियमों के खिलाफ था। सृजन ने इस जमीन पर अपना मुख्यालय बना लिया और 2007-8 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल गया। इसी बैंक से खेल शुरू हुआ भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को इसके खाते में ट्रांसफर करने का और फिर वहां से सरकारी पैसे को मार्केट में लगाने का। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सृजन ने महिलाओं के कौशल विकास के नाम पर कई फर्जी स्वयं सहायता समूह बनाए, उनके खाते खोले गए और उन खातों में नेताओं और नौकरशाहों ने अपना काला धन सफेद कर लिया। लालू यादव का आरोप है कि सुशील मोदी की बहन ने भी इस बैंक में खाता खुलवाया।
कैसे आया सामने
इस घोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी को बताया जा रहा है जिसकी मृत्यु इसी साल फरवरी में हो गई। उसकी मौत के बाद ही यह मामला सामने आने लगा। इसी महीने 3 अगस्त को 10 करोड़ रुपये का जब एक सरकारी चेक बाउंस हो गया तो यह घोटाला पूरी तरह से बाहर आ गया। जांच में पता चला है कि जिलाधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर से बैंक से सरकारी पैसा निकाल कर एनजीओ के खाते में डाला जाता था। यह खेल बैंक अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा था।
इस मामले में कई जिलाधिकारी का पीए रह चुका प्रेम कुमार और भागलपुर ट्रेजरी के नाजीर महेश मंडल सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस एसआईटी का गठन कर इस मामले से जुड़े लोगों के घर और सृजन एनजीओ के ठिकानों पर छापेमारी कर रही है। उम्मीद की जा रही है कि घोटाले में बैंक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों सहित प्रदेश के कई नेताओं के नाम सामने आ सकते हैं। मनोरमा देवी की बहू एक बड़े नेता की बेटी बताई जा रही है। उसका बेटा अमित कुमार और बहू अभी फरार चल रहे हैं जिनकी पुलिस को तलाश है। उनकी गिरफ्तारी के बाद कई और सफेदपोश पुलिस के शिकंजे में होंगे।
नेताओं पर भी आरोप
इस मामले में गोड्डा से बीजीपी सांसद निशिकांत दूबे पर भी आरोप लग रहे हैं कि उनकी जमीन पर भागलपुर में बन रहे मॉल में इस घोटाले के आरोपियों का पैसा लगा है। जांच में पता चला है कि बीजेपी नेता और राज्य किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष विपिन शर्मा ने इस मॉल में 4 दुकानों की बुकिंग कराई थी। विपिन की तलाश भागलपुर पुलिस कर रही है। इस मामले के उजागर होने के बाद से वह फरार है। अभी तक की जांच में विपिन शर्मा की सीधी भूमिका सामने आई है। वहीं नाजीर महेश मंडल जिसका आलीशान मकान जांच एजेंसियो ने पकड़ा था उसका भी सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड से सीधा सम्बन्ध रहा है। उसका एक बेटा शिव मंडल न केवल जिला परिषद का सदस्य है बल्कि भागलपुर युवा जनता दल यूनाइटेड का अध्यक्ष भी था।
सूत्र बताते हैं कि सृजन का पूरा घोटाला विपिन शर्मा के पैसा न लौटाने की जिद के कारण हुआ। मनोरमा देवी ने अपने जीवन में कई लोगों को पैसा दिया और उन लोगों के पैसा वापस करने पर वह उन पैसों को बैंकों में जमा करा देती थी। लेकिन विपिन ने उनकी मौत के बाद पैसा देने से इनकार कर दिया, जिससे उसका और मनोरमा देवी के बेटे अमित में काफी तनाव हो गया। जब अमित ने पैसा जमा करने में अपनी लाचारी दिखाई तब बैंको के पास चेक को बाउंस करने के अलावा कोई चारा नहीं रहा।