चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ अलग राह चुनने की क्या वजह रही?
कांग्रेस छोड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं था क्योंकि उस पार्टी में पुराने नेताओं की कद्र नहीं है, खासकर गुजरात कांग्रेस तो पूरी तरह चापलूसों से घिरी है। कांग्रेस लीडरशिप के संकट से जूझ रही है। राहुल गांधी को जबरदस्ती नेता बनाने की कोशिश हो रही है। जबकि पार्टी में कई योग्य नेता हैं जिन्हें प्रमोट किया जाना जरूरी है। मैंने एक दिन में पार्टी छोड़ने का फैसला नहीं लिया। पार्टी की बेहतरी के लिए काफी प्रयास किए लेकिन जब शीर्ष नेताओं को इससे कोई मतलब ही न हो तो कोई क्या कर सकता है। मैंने जन विकल्प पार्टी बनाई है और करीब-करीब सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। मेरा मानना है कि गुजरात की जनता भाजपा और कांग्रेस दोनों से नाराज है। इस बार भाजपा के खिलाफ लोगों में गुस्सा देखा जा रहा है। ऐसे में हमारी पार्टी एक बेहतर विकल्प हो सकती है।
लेकिन यह चर्चा आम है कि आपकी पार्टी कहीं न कहीं भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगी?
यह बहुत ही हास्यास्पद तर्क है। इसका कोई आधार नहीं है। गुजरात में हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता रहा है। पहली बार ऐसा होगा कि लड़ाई त्रिकोणात्मक होगी। जिन राज्यों में अमूमन दो दलों का प्रभाव रहता है वहां पार्टियां निरंकुश हो जाती हैं। मेरा मानना है कि लोकतंत्र में अधिक से अधिक दलों का होना जरूरी है। हमारी पार्टी को गुजरात के सभी हिस्सों में सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। चुनाव में हमारी मौजूदगी से किसे फायदा या नुकसान होगा मुझे नहीं पता। लेकिन भाजपा और कांग्रेस की नीतियों से नाराज जनता हमारे साथ आएगी।
इस बार गुजरात चुनाव में जातीय रंग दिख रहा है। पाटीदारों को आरक्षण की मांग कितनी जायज है?
आरक्षण की सीमा 49 फीसद से अधिक नहीं हो सकती। इसमें किसी तरह की वृद्धि के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। कई राज्य सरकारों ने तय सीमा से अधिक आरक्षण देने की कोशिश की लेकिन अदालत ने उसे निरस्त कर दिया। यह सच है कि पाटीदारों में सभी लोग संपन्न नहीं हैं। ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। गुजरात में पाटीदार अनामत को लेकर कांग्रेस सिर्फ राजनीति कर रही है। हार्दिक पटेल के पास भी इसे लेकर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं है। कांग्रेस और भाजपा को लगता है कि पाटीदारों को आरक्षण मिलना चाहिए तो सर्व सम्मति से विधानसभा में प्रस्ताव लाए। उसके बाद केंद्र सरकार संसद में इसे पारित कराए। लेकिन ऐसा नहीं होगा क्योंकि पाटीदार आरक्षण तो केवल वोट पाने का एक मकसद है।
राहुल गांधी इस चुनाव में जीएसटी को भाजपा के खिलाफ अहम मुद्दा मानते हैं। आपको नहीं लगता कि कई ऐसे मुद्दे हैं जिसकी चर्चा तक नहीं हो रही?
गुजरात में इस बार नकात्मक प्रचार अधिक हो रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रही हैं। जीएसटी से कारोबारियों में निराशा है लेकिन जनता से जुड़े और भी कई मुद्दे हैं जिस पर बात होनी चाहिए। किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही है। फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। युवाओं के समक्ष रोजगार का संकट है। दुग्ध उत्पादकों की अपनी समस्याएं हैं। जीएसटी का गन्ना उत्पादक किसानों, छोटे और लघु उद्योगों पर काफी बुरा असर पड़ा है।
मैं जब मुख्यमंत्री था तब टेक्सटाइल इंडस्ट्री को कई प्रकार की आर्थिक राहत मुहैया कराई थी। भाजपा के बाइस वर्षों के शासन में इन्हें कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं मिला।
लेकिन राज्यसभा चुनाव में आपने भाजपा के पक्ष में भूमिका निभाई। आपके गुट के कई कांग्रेसी विधायक भाजपा में शामिल हुए। भाजपा से आपकी कुछ खिचड़ी तो जरूर पक रही है? क्या चुनाव बाद किसी प्रकार का गठबंधन संभव है?
भाजपा और हमारे बीच कहीं कुछ नहीं चल रहा है। कांग्रेस के विधायक अपनी मर्जी से भाजपा में शामिल हुए। उन्हें जो अच्छा लगा उन्होंने फैसला किया। चुनावी गठबंधन का प्रयास मैंने नहीं किया और न ही उनकी तरफ से किसी प्रकार का प्रस्ताव आया। हमने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया। इस बार गुजरात की सभी सीटों पर कड़ा मुकाबला है। मुझे नहीं लगता है कि भाजपा या कांग्रेस को स्पष्ट जनादेश मिलेगा। हमें भरोसा है कि हम ठीक-ठाक सीटें जीतने में कामयाब होंगे। चुनाव के बाद देखते हैं क्या समीकरण बनते हैं।