गुलाम चिश्ती
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं। दोनों चुनावों में भाजपा की जीत हुई है। इसके बाद भाजपा त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा की चुनावी तैयारी में लग गई है। चुनाव परिणाम आने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि भाजपा गुजरात और हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में जीत दर्ज करेगी, जो फिलवक्त कांग्रेस के पास है। नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक व असम के वरिष्ठ मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा का कहना है कि गुजरात और हिमाचल में जीत के बाद भाजपा की पूरी नजर मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड पर है जहां संभवत: फरवरी महीने में चुनाव होने वाले हैं। हिमंत का दावा है कि पार्टी इन तीन राज्यों में जीत दर्ज करेगी और पूर्वोत्तर भारत को कांग्रेस मुक्त करने की ओर आगे बढ़ेगी। 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेघालय और मिजोरम का दौरा कर चुके हैं। इस मौके पर उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बड़े पैकेज की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे पूरे पूर्वोत्तर के विकास के लिए तत्पर हैं। उन्होंने यहां तक कह डाला कि पूर्वोत्तर के विकास के बिना शेष भारती के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि यदि पूर्व की मनमोहन सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन के विकास के लिए कार्य किया होता तो आज इस क्षेत्र में इतनी बेरोजगारी नहीं होती।
बता दें कि भाजपा की नजर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) शासित राज्य त्रिपुरा पर भी है जहां मुख्यमंत्री पद पर दो दशकों से देश के कथित सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री माणिक सरकार विराजमान हैं। भाजपा को लगता है कि वह अवैध हिंदू बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता दिलाने के नाम पर सत्ता पर काबिज हो जाएगी। साथ ही पार्टी ने उस स्तर पर तैयारी भी शुरू कर दी है। पार्टी को अपने अभियान में सफलता भी मिली है। कहा जाता है कि जिस राज्य में भाजपा के सदस्य 20 हजार भी नहीं थे, वहां अब उनकी संख्या दो लाख से भी अधिक हो गई है। त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में किसी भी पार्टी के सदस्यों की संख्या दो लाख हो, यह किसी भी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। त्रिपुरा की राजनीति के जानकार आसित सेनगुप्ता का कहना है कि माकपा एक कैडर आधारित पार्टी है, जो अपने कैडरों के बलबूते पश्चिम बंगाल में तीन दशक से अधिक समय तक लगातार सत्ता में रह चुकी है, वहीं त्रिपुरा में भी दो दशक पूरे हो चुके हैं। पश्चिम बंगाल में पिछले सात सालों से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का शासन है, वहीं अब त्रिपुरा में भाजपा माकपा सरकार को हटाने में जुट गई है। अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अब राज्य में भाजपा ने अपना अभियान तेज कर दिया है। समझा जाता है कि बारी- बारी से प्रधानमंत्री और अमित शाह त्रिपुरा आएंगे। साथ ही केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कैडरों की गतिविधियां और तेज हो जाएंगी। यहां बताना आवश्यक है कि पूर्वोत्तर राज्यों में संघ एकल विद्यालय, वनबंधु परिषद और अन्य माध्यमों और प्रकल्पों के माध्यम से ट्राइबल समुदाय और अन्य के बीच कार्य करती रही है। संघ के प्रचारक कृष्ण गोपाल ने इन राज्यों में काफी कार्य किया है। उन्होंने अपने कार्यों की शुरुआत उस समय की थी, जब संघ के प्रति पूरे क्षेत्र में विपरीत परिस्थिति थी। उग्रवाद उफान पर था। आज भाजपा असम, मणिपुर और अरुणाचल में सत्तासीन है। यदि वह त्रिपुरा और मेघालय में अगली सरकार बनाने का सपना देख रही है तो उसके पीछे संघ की मेहनत है, जो भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए पिछले दो दशक से लगातार कार्य कर रही है।
त्रिपुरा में भाजपा अपनी जमीन इसलिए मजबूत कर रही है कि पार्टी वहां के हिंदू बंगालियों को उनका हितैषी बताने में काफी हद तक कामयाब हो रही है तो वहां के स्थानीय आदिवासियों को भी अपने सेवा कार्य से जोड़ने में सफल रही है। फिर भी पार्टी स्तर पर नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार पर माणिक सरकार को चुनौती देना आसान नहीं है। कारण कि उन्होंने भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित इस राज्य में विकास की ऐसी इबारत लिखी है, जो स्थानीय आदिवासियों और बहुसंख्यक हिंदू बंगालियों को काफी भाता है। ऐसे में भाजपा के लिए त्रिपुरा फतह असंभव भले न हो, परंतु कठिन जरूर है। ईसाई बहुल राज्य मेघालय में भी भाजपा अपनी पैठ बनाने में जुटी है। यहां पार्टी कांग्रेस की आपसी कलह का फायदा उठाकर सत्ता तक पहुंचना चाहती है। इसको लेकर अपना अभियान भी चला रही है। राजनीतिक जानकार देवाशीष भट्टाचार्य का कहना है कि पूर्वोत्तर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने नवनियुक्त केंद्रीय मंत्री अलफोंस कन्नथनम को मेघालय का चुनाव प्रभारी बनाया है, जो ईसाई समुदाय से हैं। पूर्व नौकरशाह रहे कन्नथनम ईसाई मतदाताओं को लुभाने में कितना सफल होंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, परंतु उनको मेघालय का प्रभारी बनाए जाने से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा खुद को ईसाई समुदाय से दूर रखना नहीं चाहती। मेघालय के स्वतंत्र पत्रकार सी. मारक का कहना है कि भाजपा महज चुनाव जीतने के लिए बीफ के मामले में दोहरा मापदंड अपना रही है। वह बीफ को लेकर उत्तर भारत में काफी सख्त दिखती है तो पूर्वोत्तर में उसकी स्थिति अलग है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित कई बड़े नेता बार-बार कह चुके हैं कि पूर्वोत्तर में वे बीफ पर पाबंदी लगाने के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे में इन राज्यों के ईसाई मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों की ओर से अपने-अपने स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। दूसरी ओर, भाजपा की ओर से उक्त तीनों राज्यों में बड़े स्तर पर ईसाई समुदाय के लोगों को शामिल किया जा रहा है ताकि इस समुदाय का मानसिक रूप से भाजपा के साथ जो दुराव है, उसको दूर किया जा सके। मेघालय भाजपा की कार्यकारिणी में इस समुदाय के कई लोगों को बड़े पद दिए गए। ऐसे में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल होने का मन बना रहे हैं। राज्य में भाजपा की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने ऐलान कर दिया है कि मेघालय में भाजपा अपने बलबूते चुनाव लड़ेगी और चुनाव जीतकर सरकार भी बनाएगी, जबकि पी. संगमा की पार्टी एनपीपी भी नेडा में शामिल है। हिमंत ने चुनाव से पहले एनपीपी या किसी भी अन्य दल से किसी भी तरह के चुनावी समझौते को नकार दिया है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ईसाई बहुल इन राज्यों में अपनी जीत सुनिश्चित कराने के लिए केंद्र और एनएससीएन (आईएम) के साथ नगालिम पर हुए प्रारूप समझौते को कार्यान्वित करने पर विचार कर रही है, ताकि इस समुदाय के वोट को अपने पाले में किया जा सके।
बता दें कि यह समझौता वर्ष 2015 में ही हो गया था, परंतु असम और मणिपुर विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। अब जब इस वर्ष मेघालय, नगालैंड और मिजोरम जैसे ईसाई बहुल क्षेत्र में चुनाव होने वाले हैं तो इस समझौते पर कार्यान्वयन शुरू करने की बात की जा रही है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गुजरात और हिमाचल के बाद भाजपा मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड चुनाव की तैयारी में लग गई है।