गोवा में होने जा रहा ब्रिक्स सम्मेलन भारत के लिए बेहद खास है। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका, यानी ब्रिक्स (BRICS) देशों के नेताओं के एक साथ इकट्टठा होने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तानी की ओर से आतंकवादियों के खतरे का ज़िक्र करने का मौका मिलेगा।
बताया जा रहा है कि शिखर सम्मेलन में ‘आतंकवादी गुटों को पनाह देने और उन्हें हथियार मुहैया करने में मदद देने वाले देशों को अलग-थलग कर देने’ की बात कही जाने की संभावना है।
दरअसल,, भारत उरी हमलों के बाद पश्चिमी देशों तथा रूस से समर्थन हासिल करने में कामयाब रहा था, अब ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ पीएम नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय बैठक भी होगी।
चीन का क्या होगा कदम
इस बात की कम संभावना मानी जा रही है कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ऐसे किसी कदम में रुचि लेंगे, जिससे पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों को लेकर कोई संदेह में खटास पैदा हो।
हालांकि चीन को इस बात की चिंता है कि पाकिस्तान से अरब सागर तक उसके आर्थिक गलियारे को पाकिस्तान में फैले आतंकवाद की वजह से खतरा हो सकता है।
इसके अलावा आतंकवादी गुट जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित करवाने की भारत की कोशिशों को भी चीन ने ही नाकाम किया, चीन ने हाल ही में इस घोषणा पर तीन महीने के लिए कथित रूप से ‘तकनीकी रोक’ लगाई है।
उधर,, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में शामिल होने की भारत की लंबे समय से जारी कोशिशों को भी अब तक चीन ही नाकाम करता आया है, और विशेषज्ञों का कहना है कि गोवा शिखर सम्मेलन में भी इसमें कोई कामयाबी मिलने के आसार नहीं हैं।
ब्रिक्स का थीम
ब्रिक्स 2016 का अध्यक्ष भारत है, भारत की अध्यक्षता की मूल विषयवस्तु — समूह के लिए उत्तरदायी, समावेशी और सामूहिक समाधान तैयार करने का मुख्य उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि ब्रिक्स देश समग्र रूप में अपनी अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष प्रस्तुत सवालों के समाधान खोजने के लिए मिल-जुल कर काम करें।
क्या है ब्रिक्स
ब्रिक्स की स्थापना साल 2011 में हुई थी, और उसका उद्देश्य अपने बढ़ते आर्थिक व राजनैतिक प्रभाव से पश्चिमी देशों के आधिपत्य को चुनौती देना था। ये राष्ट्र क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। साल 2013 तक, पाँचों ब्रिक्स राष्ट्र दुनिया के लगभग 3 अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक अनुमान के अनुसार ये राष्ट्र संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार में 4 खरब अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं।