ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो, शिमला
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मुश्किलें अब ज्यादा बढ़ती दिख रही हैं। 26 सितंबर की सुबह जब वे शिमला के संकट मोचन मंदिर में बेटी की शादी में व्यस्त थे, उसी दौरान आय से अधिक संपत्ति मामले में उनके आवास होली लॉज सहित 11 अन्य ठिकानों पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापे ने सबको चौंका दिया। शादी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के परिवार में हो रही थी। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अपने बुजुर्ग सीएम की तरफ से स्टैंड लेने के मूड में दिख रहा है। देखना यह होगा कि इसका उनके राजनीतिक कैरियर पर किस तरीके से असर होगा।
वीरभद्र सिंह अपने बेबाक रवैये के कारण काफी समय से पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ से निशाने पर थे। आय से अधिक संपत्ति मामले में इन्हें लोकसभा चुनाव से पहले ही घेर दिया गया था। उसी समय कांग्रेस नेतृत्व में उन्हें हटाने पर विचार होने लगा था। मगर लोकसभा चुनाव में नुकसान के मद्देनजर इसे चुनाव तक टाल दिया गया था। चुनाव में पूरे देश में फजीहत होने के बाद कांग्रेस नेतृत्व उन्हें हटाने की हिम्मत नहीं कर सका।
वीरभद्र को अपने सूत्रों से इस बात की भनक थी कि कोई कार्रवाई होने वाली है। संभवत: यही कारण था कि दो दिन पहले ही उन्होंने 11 मंत्रियों से इस आशय के कागज पर हस्ताक्षर कराए थे कि वे सभी मुख्यमंत्री के साथ हैं। तब यह समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों कराया जा रहा है। लेकिन जब 26 सितंबर को सुबह आठ बजे प्रदेश के 11 स्थानों पर 300 अधिकारियों की टीम के साथ छापे पड़े तो मामला साफ हो गया। वीरभद्र को भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शादी के दिन ही कार्रवाई हो जाएगी। शादी को सादे तरीके से घंटों में निपटा देना पड़ा और दोपहर का वीआईपी भोज भी रद हो गया। शिमला के केबल कनेक्शन बंद कर दिए गए। शादी की बधाई देने पहुंचे मंत्रियों और अतिथियों को जांच अधिकारी बाहर से ही लौटाते रहे।
अब निगाहें इस बात पर हैं कि आगे क्या होगा। वीरभद्र अपने स्वभाव के मुताबिक स्टैंड लेने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान भी फिलहाल उनके साथ दिख रहा है। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मामला काफी पुराना है। बेटी की शादी के दिन इस तरह की जांच ठीक नहीं है, जबकि अदालत में मामला विचाराधीन है। वीरभद्र इसे प्रेम कुमार धूमल और भाजपा की साजिश बताते हुए अपने समर्थक विधायकों और मंत्रियों के साथ आक्रामक रवैया अपना सकते हैं। वहीं भाजपा भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों को दुहराते हुए इस्तीफा मांगकर दबाव बनाए रखना चाहेगी।
2009 में केंद्रीय इस्पात मंत्री रहते हुए वीरभद्र सिंह पर पत्नी और बेटे के माध्यम से 6.5 करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप है। इस मामले का पता आयकर विभाग के भोपाल में मारे गए छापों के बाद चला था। विभाग को वहां एक डायरी मिली थी जिसमें, वीबीएस नाम के आगे मोटी रकम की जानकारी लिखी गई थी। जांच में पता चला कि इसका मतलब वीरभद्र सिंह है। इसके बाद सीबीआई ने सीएम के खिलाफ प्रारंभिक जांच भी करवाई थी। आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में सिंह तथा अन्य के खिलाफ प्राथमिक जांच को अब भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत एक नियमित मामले में बदल दिया गया है। सीबीआई सूत्रों ने बताया कि वीरभद्र, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, पुत्र विक्रमादित्य सिंह, पुत्री अपराजिता सिंह और एक एलआईसी एजेंट आनंद चौहान के खिलाफ प्राथमिक जांच की गई। आरोपों के मुताबिक सिंह ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए अपने और परिजनों के नाम जीवन बीमा पॉलिसियों में एलआईसी एजेंट चौहान के माध्यम से 6.1 करोड़ रुपए का निवेश किया।
अगर इस मामले में जांच एजेंसियों को कुछ और पुख्ता तथ्य मिलते हैं तो कांग्रेस हाईकमान भी उनसे धीरे से किनारा कर सकती है। उनके विरोधी माने जाने वाले कौल सिंह और बाली सरीखे नेता इस अवसर का लाभ उठाना चाहेंगे।