ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो
रोहतक के रामेश्वर बेहद गुस्से में हैं। उनका गुस्सा जायज है। जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में उनका सब कुछ खत्म हो गया। कभी उनकी बड़ी दुकान थी, आज उनके पास कुछ नहीं है। उनकी किसी से दुश्मनी भी नहीं है। फिर उनकी दुकान क्यों जलाई गई? यह जानने के लिए वे पुलिस और प्रशासन के चक्कर लगा रहे हैं। मगर उनके इस छोटे से सवाल का जवाब नहीं मिल रहा। उनका कहना है कि कम से कम जांच हो जाए तो यह पता चल जाए कि उनकी दुकान जलाने वाले गुनाहगार हैं कौन?
इस परिवार का गुस्सा तब और बढ़ गया जब राज्य सरकार ने रोहतक में ही वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की कोठी व प्रतिष्ठान जलाने का मामला सीबीआई को सौंप दिया। कैप्टन के घर और प्रतिष्ठानों पर 19, 20 व 21 फरवरी 2016 को आगजनी होती रही। उनके परिवार के दस सदस्यों को बड़ी मुश्किल से बचाया गया था। उनके अखबार के दफ्तर और स्कूल को भी इस दौरान निशाना बनाया गया था। इन मामलों की जांच अभी तक प्रदेश पुलिस कर रही थी।
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
छह महीने बाद लिए गए इस निर्णय से प्रदेश सरकार निशाने पर है। विपक्ष ही नहीं पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट तक ने टिप्पणी की कि लग रहा है कि सरकार को पुलिस की कार्यकुशलता पर यकीन नहीं है। यदि होता तो कम से कम यह निर्णय न होता। 19 अगस्त को मुरथल गैंग रेप कांड की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोर्ट चाहती तो पहले ही सभी मामले सीबीआई को सौंप सकती थी लेकिन हमें पुलिस की जांच पर भरोसा था। शायद सरकार को ही अपनी पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं है। हाई कोर्ट ने सरकार की ओर से पेश हुए असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन से इस बारे में जानकारी मांगी तो महाजन ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। इसके बाद एमिकस क्यूरी अनुपम गुप्ता ने कहा कि प्रदेश के वित्त मंत्री को ही अपनी सरकार व पुलिस पर भरोसा नहीं है तो लोग कैसे भरोसा करेंगे। राजनीतिक रसूख वाले मामलों की जांच सीबीआई को तो बाकी क्यों नहीं। इस पर कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि आखिर उसने मुरथल समेत अन्य मामलों की जांच सीबीआई से कराने से इनकार क्यों किया? इस पर तुषार मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट आदेश दे तो सरकार इन मामलों की जांच भी सीबीआई से कराने को तैयार है।
सच सामने लाएगी सीबीआई
छह महीने बाद आखिर क्या हुआ कि सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया। गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि जिस तरह से कुछ विशेष ठिकानों को निशाना बनाया गया उसे देखते हुए यह पता लगाया जाएगा कि क्या इन घटनाओं के पीछे राजनीतिक साजिश थी? इनके पीछे कौन थे और उनकी मंशा क्या थी। माना जा रहा है कि योजना बना कर हमला किया गया था। यदि यह गुस्साई भीड़ का हमला होता तो एकदम से होता और एक बार ही होता। लेकिन लगातार निशाना बनाया जाना इस ओर इशारा कर रहा है कि कहीं न कहीं गड़बड़ी है।
देरी से फैसला क्यों
इस फैसले में देरी की एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि सरकार जाटों को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाह रही थी। यदि तुरंत इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाता तो विपक्ष भी सरकार को घेरता। जाटों को यह संदेश देने की कोशिश होती कि सरकार उन्हें फंसा रही है। इसलिए सरकार ने पहले मामले को शांत होने दिया। जाट आरक्षण को लेकर एक बार फिर से कुछ संगठन सक्रिय हो रहे हैं। अब मामला सीबीआई के पास जाने से ये संगठन भी जांच की डर से चुप बैठ जाएंगे। एक नवंबर को सरकार स्वर्ण जयंती वर्ष मना रही है। फिर से जाट आरक्षण की मांग इस रंग में भंग डाल सकती है।
जाट आरक्षण आंदोलन में कैप्टन अभिमन्यु व कृषि मंत्री ओपी धनखड़ पर उंगली उठती रही है। कैप्टन के विरोधी तो अकसर यह आरोप लगाते रहे हैं कि जाट नेता बनने के चक्कर में उन्होंने खुद ही घर में आग लगा ली ताकि वोटरों की सहानुभूति ली जा सके। सरकार के भीतर भी एक बड़ा धड़ा गाहे बगाहे यह आरोप लगाता रहा है कि कैप्टन की जाट आरक्षण के आंदोलनकारियों से सहानुभति रही है। इन आरोपों से कैप्टन खासे आहत थे। कैप्टन की दिक्कत यह रही कि इन आरोपों पर वे न तो पार्टी के भीतर खुद को पाक-साफ साबित कर पा रहे, न मतदाता के बीच। ऐसे में वे अकसर सरकार से मामले की सीबीआई जांच की मांग करते रहे। सरकार ने फैसला लेने में छह महीने लगा दिए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ओपिनियन पोस्ट को बताया कि कैप्टन के घर जलाने के मामले के अलावा तीन अन्य मामले भी सीबीआई को सौंपे जाने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा यदि कोई अन्य मांग भी ऐसी आती है कि जाट आरक्षण के दौरान हुई हिंसा की जांच सीबीआई से हो तो वह भी करा ली जाएगी। सीएम ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि पूरे आंदोलन की जांच ही सीबीआई को क्यों नहीं दी गई।
हुड्डा को घेरने की तैयारी
जानकारों का कहना है कि इस मामले को सरकार ने सोच समझ कर सीबीआई को सौंपा है। असली कोशिश पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को घेरने की है। कैप्टन अभिमन्यु के घर जलाने के आरोपियों की पूर्व सीएम से निकटता बताई जा रही है। ज्यादातर आरोपी हुड्डा के विधानसभा क्षेत्र के युवक हैं। ऐसे में यदि सीबीआई जांच होती है और आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होते हैं तो भाजपा आसानी से हुड्डा को घेर सकती है। इसी सोच के बाद यह मामला सीबीआई को दिया गया है। पिछले दिनों हुड्डा अचानक ही सरकार पर काफी हमलावर हो गए थे। तभी से सरकार ने उन्हें घेरने की रणनीति बना रखी है। इससे पहले पंचकुला के इंडस्ट्रियल प्लॉट आवंटन मामले में भी उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है।
साजिश आएगी सामने : खट्टर
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए दंगे साजिश थी। सीबीआई जांच से सच सामने आएगा। इसी सोच की वजह से यह मामले सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया गया है। इतना ही नहीं यदि जाट आरक्षण से जुड़ा कोई दूसरा मामला भी सीबीआई को सौंपने की मांग आती है तो उसे भी सीबीआई को दे दिया जाएगा। सीएम ने इस मामले में किसी भी तरह के भेदभाव से इनकार किया। उन्होंने कहा कि यह तो एक प्रक्रिया है। इसी के तहत काम किया गया है।
परिवार को मारने की कोशिश : कैप्टन
कैप्टन अभिमन्यु ने इस फैसले पर पर कहा कि मेरी तो शुरू से ही मांग रही है कि इस मामले की सीबीआई से जांच होनी चाहिए। यह भीड़ का काम नहीं था। इसके पीछे बड़ी राजनीतिक साजिश थी जिसे कुछ विरोधी नेताओं ने अंजाम दिया। तीन दिन तक मेरे घर पर हमले होते रहे। गुंडे योजना बना कर मेरे घर को निशाना बनाते रहे। इससे साबित होता है कि कोई था जो पर्दे के पीछे से काम कर रहा था। मैं चाहता था कि मामले की जांच सीबीआई से हो।