मलिक असगर हाशमी
देश का तो पता नहीं पर कृषि के प्रति हरियाणा सरकार और यहां के किसानों का नजरिया बदलने से खेत-खलिहान की तस्वीर बदल रही है। लोग समझने लगे हैं कि परंपरागत खेती सिवाय घाटे के कुछ नहीं। नकदी और आधुनिक खेती ही उनके जीवन की नैया पार लगा सकती है।’ यह कहना है हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट एंड पैथोलॉजी के विभागाध्यक्ष रहे एपी श्रीवास्तव का। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार आने के बाद से पेरी अर्बन एग्रीकल्चर यानी महानगरीय मांग के अनुरूप खेती को बढ़ावा देने पर जोर बढ़ा है। नई-नई योजनाएं शुरू की जा रही हैं। यहां तक कि जल संकट से जूझ रहे हरियाणा के अधिकांश हिस्सों में धान की एक से अधिक पैदावार लेने की मनाही है जबकि मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसके उत्पादन क्षेत्र निरंतर बढ़ाए जा रहे हैं। 2005 में सूबे का मछली उत्पादन क्षेत्र 10,532 हेक्टेयर जल क्षेत्र था जो 2015-16 में बढ़कर 16,921 और 2016-17 में 18,975 हेक्टेयर हो गया। सरकार के प्रोत्साहन के चलते हरियाणा मछली उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। फिलहाल यहां प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष 7,200 किलोग्राम मछली उत्पादन हो रहा है।
नेशनल ब्यूरो आॅफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज इसे रोग मुक्त मछली वाला राज्य मानता है। हरियाणा मत्स्य विभाग की एक रिपोर्ट पर यकीन करें तो मछली उत्पादक प्रत्येक वर्ष तीन लाख 20 हजार रुपये की शुद्ध कमाई कर रहे हैं। इस नतीजे से प्रभावित प्रदेश सरकार अब खाने की मछली के साथ सजावटी मछली के उत्पादन के क्षेत्र में उतर रही है। इसे सिरे चढ़ाने को 14 करोड़ रुपये की लागत से झज्जर के तलाव गांव में उत्तर भारत का पहला आधुनिक सजावटी हेचरी का निर्माण किया जा रहा है। पिछले वर्ष 5 दिसंबर को इसकी आधारशिला केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने रखी थी। दरअसल, पेरी अर्बन एग्रीकल्चर के बहाने हरियाणा सरकार दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले चार से छह करोड़ लागों को ग्राहक मानकर प्रदेश के कृषि उत्पाद उन तक पहुंचाना चाहती है। यह करीब 3,600 करोड़ रुपये की सालाना मार्केट है। सूबे के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ इसमें खास दिलचस्पी ले रहे हैं। धनखड़ कहते हैं, ‘सरकार धान और गेहूं की बजाय हरियाणा की पहचान सब्जी की टोकरी के तौर पर बनाना चाहती है। इसके लिए दिल्ली-एनसीआर के मिजाज के अनुकूल दूध, दुग्ध उत्पाद, मछली, मुर्गा, अंडा, बकरे का मांस, फल, फूल और सब्जी के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। फैशनेबल एग्रीकल्चर, मार्केटिंग एवं एंटरप्रेन्योरशिप में यकीन रखने वाले किसानों को आगे किया जा रहा है।’
हरियाणा में 90 लाख एकड़ में खेती होती है जिसमें अभी बागवानी का क्षेत्र मात्र एक चौथाई है। सरकार इसका रकबा बढ़ाने में लगी है। पशुपालकों, बागवानी करने वालों को विशेष सब्सिडी देकर आगे लाया जा रहा है। कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, ‘वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में पचास फीसदी और आगामी वर्ष की खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना बढ़ोतरी की घोषणा की है तो भावांतर योजना के तहत आलू, टमाटर, गोभी, प्याज जैसी कुछ खास सब्जियों के काश्तकारों को बाजार भाव कम मिलने पर सरकार की ओर से भारी भरपाई की जा रही है। पेरी अर्बन एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य, पशुपालन, बागवानी विभाग का बजट बढ़ाया गया है। मत्स्य पालन विभाग का पहले कुल बजट पांच करोड़ रुपये का था जिसे बढ़ाकर 150 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसमें से 70 करोड़ रुपये मछली पालकों की सब्सिडी पर खर्च किया जा रहा है।’
बागवानी मिशन के निदेशक बीएस सहरावत का कहना है कि हरियाणा में दो हजार एकड़ भूमि में 1958 पोली हाउस बन रहे हैं। विभाग के संयुक्त निदेशक रणवीर सिंह के मुताबिक, 510 करोड़ रुपये की लागत से फसल समूह विकास कार्यक्रम शुरू किया गया है। बागवानी को बढ़ाने के लिए सूबे के 340 गांव और 140 समूह चिन्हित किए गए हैं। बकरी और मुर्गी पालन पर भी सरकार जोर दे रही है। पशुपालन विभाग के महानिदेशक डॉक्टर जीएस जाखड़ कहते हैं, ‘पेरी अर्बन के अनुरूप कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने को यमुनानगर, मेवात, अंबाला को बकरी पालन के लिए चुना गया है। गरेड़िया जाति के लोगों के लिए विशेष योजना बनाई गई है। 40 बकरों से कारोबार शुरू करने पर बैंकों से ब्याज मुक्त कर्ज दिलाए जा रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में आर्गेनिक अंडों की बढ़ती मांग को देखते हुए गुरुग्राम के सोहना क्षेत्र में बैक यार्ड पॉलट्री स्कीम शुरू की गई है। इसके तहत मकान के पिछले हिस्से में मुर्गी पालन के कारोबार के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। अभी यह योजना बारह क्लस्टरों में चल रही है। अगले वर्ष इसकी संख्या बढ़ाकर एक हजार क्लस्टर करने का लक्ष्य रखा गया है।’ प्रदेश सरकार सूबे की डेयरी की तस्वीर भी बदल देना चाहती है। हरियाणा दूध-दही खाने से जाना जाता है पर अब कोशिश है कि इस प्रदेश का अधिक से अधिक दुग्ध उत्पाद दिल्ली-एनसीआर के बाजारों में खपाया जाए। इस रणनीति के तहत डेयरी आउटलेट्स की संख्या बढ़ाई गई है। हरियाणा डेयरी डेवलपमेंट को-आॅपरेटिव फेडरेशन के चेयरमैन जीएल शर्मा बताते हैं, ‘दूध की बड़ी-बड़ी कंपनियों के दिल्ली-एनसीआर में पैर जमाने के बावजूद सरकारी को-आॅपरेटिव सोसायटी का विटा दूध अधिक लोगों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।’ पिछले एक वर्ष में दूध उत्पादन पांच फीसदी बढ़ा है। पहले प्रदेश की डेयरी विटा घाटे में थी। बिक्री बढ़ने पर 2017-18 में तकरीबन 38 करोड़ रुपये के मुनाफे में आ गई। दूध सोसायटियों की संख्या भी 10 से 12 फीसदी तक बढ़ी है। अभी प्रतिदिन दूध उत्पादन करीब छह लाख लीटर है। पशुपालकों को मवेशी की खरीद के लिए बैंक से ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराए जा रहे हैं। पशुपालाकों को प्रोत्साहित करने के लिए पशुओं के साथ उनका भी बीमा किया जा रहा है। उनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के लिए वजीफा दिया जा रहा है। बेटियों की शादी के लिए प्रदेश सरकार की स्कीम के इतर 11 हजार रुपये की कन्यादान राशि दी जा रही है।
सूबे के चर्चित किसान नेता सर छोटू राम के पोते और केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बिरेंदर सिंह कहते हैं, ‘चावल- गेहूं की खेती से हरियाणा के किसानों की तकदीर नहीं संवरने वाली। ऐसे किसान हमेशा कर्ज में डूबे रहेंगे। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को फूड प्रोसेसिंग से संबंधित उद्योग एवं व्यापार में उतारें।’ कुछ ऐसी ही मंशा के साथ पटौदी में राष्ट्रीय स्तर की फूलोंं की मंडी के निर्माण का खाका बना है। गन्नौर में फल-सब्जी टर्निमल बनेगा। बागवानी विश्वविद्यालय का निर्माण अपने अंतिम चरण में है। इसके अलावा हरियाणा के युवाओं को कृषि को कैरियर के तौर पर अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने को हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एग्री समिट आयोजित कराया जाता है। करीब दस महीने पहले इसका आयोजन सूरजकुंड में किया गया था जिसमें देश-दुनिया के प्रगतिशील किसान, कृषि वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, कृषि से जुड़े व्यापारी, कॉरपोरेट, उद्यमी जुटे थे। इस दौरान लेक्चर, कार्यशाला और प्रदर्शनी के माध्यम से बेहतर उत्पाद, मशीन, तकनीक के तौर तरीके किसानों को समझाए गए थे। प्रदेश सरकार के इन प्रयासों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ की पीठ थपथपा चुके हैं। हालांकि किसानों और विपक्षी दलों का एक वर्ग परंपरागत खेती को पेरी अर्बन एग्रीकल्चर के मुकाबले महत्व नहीं दिए जाने से खासा नाराज है।