आगामी लोकसभा-विधानसभा चुनाव में विरोधियों को पटखनी देने के लिए सभी सियासी दल अपना साजो-सामान व्यवस्थित करने में जुट गए हैं. भाजपा उत्साह से लबरेज है, तो कांग्रेसी खेमा कुछ मायूस नजर आ रहा है. और, पटनायक को अपने पैंतरों पर ज्यादा भरोसा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीती 15 जनवरी को बलांगीर के दौरे पर थे. पिछले चार महीनों में यह ओडिशा में उनका चौथा दौरा था और प्रधानमंत्री बनने के बाद दसवां. उनसे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने ओडिशा का इतनी बार दौरा नहीं किया. नरेंद्र मोदी का लगातार ओडिशा दौरा पूर्वोदय के विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को जताता है, साथ ही यह राज्य में ‘कमल’ की महक बढ़ाने की रणनीति का भी हिस्सा है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा ओडिशा में 120 से अधिक सीटों (विधानसभा में कुल सीटें 147) का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करने के बाद मोदी पूरी गंभीरता से जुट गए हैं. उल्लेखनीय है कि वर्र्तमान में राज्य विधानसभा में भाजपा के केवल दस विधायक हैं. जबकि लोकसभा चुनाव में 21 में से केवल सीट ही उसके खाते में गई थी.
भाजपा के हौसले बुलंद
मोदी सरकार जिस तरह भारत के संतुलित विकास के लिए पूर्वोदय का विकास अनिवार्य मानती है, उसी तरह अमित शाह भी पूर्वी राज्यों में भाजपा को विस्तार देने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. साल 2000 से 2009 तक गठबंधन में रहने के बाद बीजू जनता दल ने भाजपा को धता बता दिया था. बीजद ने जिस तरह भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाया था, उससे पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में खासा आक्रोश है. लेकिन, पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद भाजपा 2009 और 2014 के चुनाव में बीजद का रत्ती भर भी बाल बांका नहीं कर सकी. बीजद अपने सुप्रीमो नवीन पटनायक की छवि के सहारे दिनोंदिन ताकतवर होता गया. 2014 में पूरे देश में मोदी सुनामी का ओडिशा के मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ा. लेकिन, 2017 में राज्य में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली. राज्य की कुल 848 जिला परिषद सीटों में से 298 पर उसके प्रत्याशी विजयी हुए. 2012 में भाजपा को केवल 36 सीटें मिली थीं. दूसरी तरफ कांग्रेस की सीटें 128 से घटकर 60 रह गईं. इन नतीजों ने भाजपा में जबरदस्त उत्साह भर दिया और उसी के बल पर अमित शाह ने 2019 के आम चुनाव के लिए 120 विधानसभा सीटों का लक्ष्य घोषित कर दिया. हालांकि, पिछले साल फरवरी बीजेपुर में हुए उपचुनाव में बीजद ने भाजपा को हराकर अपनी ताकत फिर से दिखा दी. और, इन दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में कांग्रेस दूसरे स्थान से खिसक कर तीसरे स्थान पर चली गई है. अब आम चुनाव में तीन महीने से कम समय बचा है. यहां लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के भी चुनाव होने हैं. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओडिशा दौरे बढ़ गए हैं. वह अपनी जनसभाओं में केंद्र की जन-कल्याणकारी योजनाओं को गिनाकर अगली बार राज्य में भाजपा की सरकार लाने की अपील कर रहे हैं.
जोड़-तोड़ का खेल शुरू
लेकिन, बीजद भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद नवीन सरकार जोर-शोर से सक्रिय हो गई है. मुख्यमंत्री पटनायक नित नई लुभावनी योजनाओं की घोषणाएं कर रहे हैं. वह ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक कार्यक्रमों भाग लेने लगे हैं. अखबारों में विकास संबंधी घोषणाओं वाले विज्ञापनों की बाढ़-सी आ गई है. राज्य के सभी नगर-गांव मुख्यमंत्री के फोटो वाले होर्डिंग्स से पाट दिए गए हैं. जो मुख्यमंत्री आसानी से आम लोगों से मिलते नहीं थे, वह अब उनके साथ सेल्फी खिंचवा रहे हैं. साथ ही बीजद अपने पुराने आजमाए गए नुस्खे फिर इस्तेमाल करने शुरू कर दिए हैं यानी जहां अपना संगठन-उम्मीदवार कमजोर हो, वहां विपक्ष के ताकतवर ‘प्रार्थी’ को अपने खेमे में शामिल कर लो. साल 2009 और 2014 में बीजद ने कांग्रेस एवं भाजपा के कई नेताओं को दल में शामिल कर विजय श्री हासिल की. 2009 में उसने कांग्रेस के प्रदेश युवा अध्यक्ष रोहित पुजारी और 2014 में वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह को अपने खेमे में लाकर कांग्रेस को एक तगड़ा झटका दिया था. पिछले साल पटनायक ने सरकार के विरुद्ध मुखर ओडिय़ा दैनिक संवाद के मालिक-संपादक सौम्य रंजन पटनायक को दल में शामिल कर राज्यसभा भेज दिया. गौरतलब है कि सौम्य रंजन पटनायक कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक के छोटे भाई हैं.
विशेष राज्य का दर्जा मिले
बीजू जनता दल आगामी चुनाव में भी ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को मुद्दा बनाएगा. साथ ही वह किसानों के लिए धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग उठा रहा है. पटनायक सरकार धान का समर्थन मूल्य 2930 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर रही है. इसी सिलसिले में बीजद का एक प्रतिनिधि मंडल किसानों को लेकर दिल्ली गया था, जहां बीती आठ जनवरी को ताल कटोरा स्टेडियम में बीजद ने धरने का आयोजन किया, जिसमें किसानों के साथ मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, मंत्रि परिषद के सदस्यों, सांसदों एवं विधायकों ने हिस्सा लिया. बीजद का प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति से भी मिला था. दिल्ली में नवीन पटनायक ने कहा, अगर हमारे पास आर्थिक स्वायत्तता होती, तो हम केंद्र से गुहार नहीं लगाते, बल्कि खुद किसानों की मांग पूरी कर देते. मुख्यमंत्री ने इस मौके पर ‘कालिया’ नामक योजना की चर्चा की, जिसके तहत राज्य के किसानों को आर्थिक सहायता दी जाएगी.
इस बार फिर वही काम शुरू हो चुका है और झारसुगुड़ा से कांग्रेस के प्रभावशाली विधायक एवं कार्यकारी अध्यक्ष नब किशोर दास बीजद के पहले शिकार बने हैं. सुंदरगढ़ के कांग्रेस विधायक जोगेश सिंह ने पार्टी का साथ छोड़ बीजद के शरणागत होने का ऐलान कर दिया है. सालेपुर के विधायक प्रकाश बेहेरा भी उसी रास्ते पर हैं. कई अन्य लोगों के नाम की चर्चाएं चल रही हैं, जिनमें भाजपाई भी शामिल हैं. राउरकेला के भाजपा विधायक एवं होटल व्यवसायी दिलीप राय पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बिजय महापात्र ने भी भाजपा को बॉय कह दिया है. भाजपा ने अपने द्वार खोल तो रखे हैं, लेकिन अभी तक दीगर दलों के किसी बड़े नेता ने प्रवेश नहीं किया है. हां, एक आईएएस अधिकारी अपराजिता षाणंगी नौकरी छोडकऱ भाजपा में शामिल हुई हैं. चर्चा है कि कुछ अन्य पूर्व अधिकारी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं. भाजपा का संगठन पश्चिम ओडिशा में मजबूत है, लेकिन अन्य हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उसे कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है. ऐसा भी नहीं है कि बीजद इससे बचा हुआ है. एक समय नवीन पटनायक के अत्यंत करीबी रहे सांसद बिजयंत पंडा पार्टी और संसद से इस्तीफा दे चुके हैं. वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री दामोदर राउत ने अलग होकर नया दल बना लिया है. उन्होंने नवीन पटनायक के विरुद्ध लड़ाई का ऐलान कर दिया है. लेकिन, अभी तक का रिकॉॅर्ड रहा है कि जो भी नवीन पटनायक की नजरों से गिरा, उसका राजनीतिक करियर हमेशा के लिए खत्म हो गया. बीजद में रहते समय ज्यादा ताकतवर माने जाने वाले कई नेता आज पूरी तरह हाशिए पर चले गए हैं.
वजूद को जूझती कांग्रेस
बीजद और भाजपा के बीच चल रही लड़ाई में कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है. साल 2000 में राज्य की सत्ता गंवाने के बाद वह लगातार नीचे की ओर खिसक रही है. उसकी आंतरिक कलह थमने का नाम नहीं ले रही है. हाईकमान जिसे भी राज्य की कमान सौंपता है, कोई न कोई गुट उसके विरुद्ध मोर्चा खोल देता है. कांग्रेस ने 2014 में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में प्रसाद हरिचंदन को नियुक्त किया. दो साल बाद ही राज्य के अधिकांश विधायक उनके विरुद्ध खड़े हो गए. आखिरकार हाईकमान ने उक्त विधायकों की पसंद रहे निरंजन पटनायक को 19 अप्रैल 2018 को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. विडंबना यह है कि जिन विधायकों ने निरंजन को अध्यक्ष बनवाया, वे ही पार्टी छोड़ रहे हैं. देखना यह है कि राहुल गांधी का आगामी ओडिशा दौरा राज्य कांग्रेस में कितना उत्साह भर पाता है. राज्य की वर्तमान राजनीतिक गतिविधियों से स्पष्ट है कि सभी दल चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं. नवीन पटनायक सत्ता में पांचवीं बार आने के लिए पूरी ताकत से जुट गए हैं. चुनाव जीतने के लिए वह हर हथकंडा अपना सकते हैं. इतने सालों बाद भी उनकी व्यक्तिगत छवि बेदाग रहना किसी करिश्मे से कम नहीं है. यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. जिसका तोड़ विरोधियों के पास नहीं है. इसके साथ ही धन बल एक और ताकत है, जिसका मुकाबला करने के लिए भाजपा कड़ा परिश्रम कर रही है. धर्मेंद्र प्रधान और जुएल उरांव के नेतृत्व में भाजपा नवीन का तिलिस्म तोडऩे की कोशिश कर रही है. अमित शाह लगातार राज्य के दौरे करके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ रणनीति भी बना रहे हैं. केंद्र की योजनाओं, खासकर ‘उज्जवला’ को भाजपा अपना मुख्य हथियार बना रही है.
कांग्रेस भी उत्साह के साथ मैदान में उतरी थी, लेकिन रण में जाने से पहले ही उसके कई विधायकों द्वारा सत्तारूढ़ दल का दामन थाम लेने से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर खासा असर पड़ा है. कांग्रेस के लिए अपना दो नंबर का स्थान बचाए रखना ही बड़ी चुनौती होगी. अगर भाजपा ने मुख्य विपक्षी दल का स्थान छीन लिया, तो कांग्रेस के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं होगा. बहरहाल, तलवारें खिंच चुकी हैं. भाजपा और कांग्रेस की सेनाएं नवीन सेना का किस तरह मुकाबला करती हैं, उसे हरा पाती हैं या नहीं, यह चुनावी नतीजे ही बताएंगे.