निशा शर्मा।
हिमाचल के चुनावी नतीजे आए हुए चार दिन हो गए लेकिन बीजेपी की ओर से अभी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं की गई है। राज्य में बीजेपी को मामला जितना सुलझा हुआ लग रहा था। उतना ही मामला उलझता नजर आ रहा है। सीएम पद के दावेदार कहे जाने वाले प्रेम कुमार धूमल की हार ने नए लोगों के लिए रास्ता तो खोल दिया। लेकिन उस रास्ते को थोड़ा जोखिमभरा बना दिया। जिन धूमल को मोदी ऊंगली पकड़कर सीएम की कुर्सी तक लाए थे, वो आज बगावती सुर में उस कुर्सी के लिए किसी से भी कम्परोमाइज करने के मूड में नहीं हैं।
सूत्र बताते हैं कि चुनावी नतीजे आने के बाद से धूमल के लिए पार्टी की ओर से कोई फोन कॉल तक नहीं गया है। उन्हें दिल्ली के लिए औपचारिक न्यौता तक नहीं दिया गया। हालांकि पार्टी ने यह पहले ही संकेत दिया था कि वह प्रेम कुमार धूमल को सीएम के तौर पर नहीं देखती है। लेकिन धूमल की जिद्द और शक्ति प्रदर्शन ने पार्टी को उनका नाम सीएम के तौर पर जग जाहिर करने के लिए मजबूर किया। उस मजबूरी से कहिये या चुनावी नतीजों ने धूमल से बीजेपी का पीछा छुड़वा दिया।
उस सता का मोह त्यागना इतना आसान नहीं है जिस पर रहकर राज किया जाता है, सीएम पद की दावेदारी छोड़ना इतना आसान नहीं है ऐसा ही कुछ पूर्व मुख्यमंत्री के साथ हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री के लिए गुट तैयार किए गए हैं या कहिये हो गए हैं क्योंकि उनकी(प्रेम कुमार धूमल) चाहत से ही उन्हें (विधायकी) टिकट मिली थी। वो गुट नहीं चाहते कि धूमल के अलावा कोई सीएम बने। ऐसे गुट पूरी कोशिश में हैं कि पार्टी पर, केन्द्र पर प्रेशर बनाया जा सके जितना बनाया जा सकता है। अंत में बहुत कुछ ना सही लेकिन कुछ तो हाथ लगेगा ही।
वहीं दूसरी ओर शांता कुमार हैं, जिनकी बातें संकेत देती हैं कि नड्डा और धूमल दोनों में से कोई भी रेस में था ही नहीं। वह इस बात पर भी तंज कसते हैं कि गुटबाजी के जरिये सता हासिल नहीं की जा सकती। अगर वह अध्यक्ष होते तो उन विधायकों या कर्यकर्ताओं को निलंबित कर चुके होते जो गुटबाजी के जरिये मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को बदल देना चाहते हैं। उनकी बातों का सीधा संकेत है कि वह नहीं चाहते कि धूमल को दोबारा सीएम बनाया जाए। यह उनके व्यक्तिगत विचार भी हो सकतेे हैं क्योंकि धूमल ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्होंने शांता कुमार को सियासी दाव में पटकनी ही नहीं दी थी बल्कि उन्हें दरकिनार किया था।
अब इस रेस में जो नाम सबसे चर्चित है वह रह जाता है जयराम ठाकुर का। जिनके लिए पार्टी पहले ही सकारात्मक संकेत देती आ रही है। जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बड़े दो बड़े कारण हैं । पहला कारण वह 5वीं बार अपनी सीट से विजेता घोषित हुए हैं, दूसरा बड़ा कारण उम्र है, उम्र के लिहाज से उनकी उम्र 52 साल है। जो पार्टी की चार टर्म आसानी से निकाल सकती है। इस टर्म में 2019 पार्टी के लिए अहम है। पार्टी की रणनीति 2019 के चुनाव हैं, जिसके चलते वह उन चेहरों के साथ मैदान में उतरना चाहती है। जिससे जीत उसके पलड़े में ही आकर गिरे।
हालांकि इन दो बड़े कारणों के बावजूद जयराम ठाकुर का संघ से गहरा रिश्ता और एबीवीपी से नाता उनके सीएम तक पहुंचने के रास्ते को आसान बनाता नजर आता है। जयराम की छवि एक सज्जन व्यक्ति की है जो पार्टी के भविष्य और खुद उनके लिए बेहतर साबित हो सकती है।