नई दिल्ली। चुनाव से पहले बजट पेश करने को लेकर विपक्षी पार्टियों के विरोध के बाद चुनाव आयोग ने सरकार से राय मांगी है और कैबिनेट सचिव से सरकार का पक्ष देने को कहा है। जवाब 10 जनवरी तक देने को कहा है।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने चुनाव से पहले बजट पेश न किए जाने के संदर्भ में चुनाव आयोग से शिकायत की थी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने चुनाव आयोग से समय मांगा था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के अलावा अहमद पटेल और टीएमसी, डीएमके, आरएलडी और जेडीयू के वरिष्ठ नेता भी चुनाव आयोग पहुंचे थे।
विपक्ष का आरोप है कि सत्ता पक्ष इसके माध्यम से आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में फायदा ले सकता है। कांग्रेस चुनाव आयोग से मांग करेगी कि आचार संहिता के दौरान बजट पेश न हो बल्कि वोट ऑन अकाउंट पेश किया जाए। 2012 में यूपी चुनाव की घोषणा के समय नतीजे के बाद बजट पेश हुआ था।
केंद्र सरकार ये पहले ही साफ कर चुकी है कि बजट पेश करने के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा। सरकार के लिए यह भी जरूरी है कि 31 मार्च तक खर्चों से जुड़े बजट के कुछ हिस्सों को संसद से मंजूर करा ले, ताकि एक अप्रैल से अपने कर्मचारियों को वेतन देने के साथ तमाम दूसरे खर्चों के लिए पैसा उपलब्ध हो।
नियम यह भी कहता है कि टैक्स प्रस्तावों से जुड़ा फाइनेंस बिल हर हालत में पेश की गई तारीख से 75 दिनों के भीतर संसद से पारित करना होगा। सरकार के रुख से साफ लग रहा है कि वह विपक्ष की मांगों के हिसाब से बजट कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं करेगी।
मुमकिन है कि सरकार चुनाव में जा रहे पांच राज्यों के लिए बजट में कोई विशेष नीति का ऐलान नहीं करेगी। इस तरह से वह चुनाव आयोग के निर्देशों का पूरी तरह से पालन भी कर सकेगी। देश में और भी 24 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां देश की तीन चौथाई से ज्यादा आबादी रहती है और उनके लिए केंद्र की नीतियों को तो नहीं टाला जा सकता।