लंबी बहस और संशोधन प्रस्ताव के बाद ऐतिहासिक मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 लोकसभा में पारित हुआ तो उम्मीद बंधी कि यह राज्यसभा में भी पास हो जाएगा और कानून का रूप ले लेगा, लेकिन राज्यसभा में संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास इसे भेजने की मांग पर कांग्रेस के अड़े रहने से बिल लटक गया। तीन तलाक से जुड़े कई मुद्दों पर आॅल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर से अभिषेक रंजन सिंह की बातचीत।
लोकसभा में तीन तलाक से जुड़े मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 आसानी से पास हो गया, लेकिन कांग्रेस समेत कई दलों की आपत्तियों की वजह से यह बिल राज्य सभा में पास नहीं हो सका। आपके मुताबिक यह विरोध राजनीतिक है या स्वाभाविक?
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने संविधान और कुरान की रोशनी में तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया। अदालत ने इस बाबत केंद्र सरकार को एक कानून बनाने की सलाह दी और सरकार ने भी लोकसभा में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 पारित कराया। लोकसभा में बिल पास होने के बाद हमें लगा कि राज्यसभा में भी यह पास हो जाएगा और जल्द एक कानून प्रभावी हो जाएगा, लेकिन कांग्रेस इस विधेयक को संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग पर अड़ गई। नतीजतन यह बिल पास नहीं हो सका। जिस तरह लोकसभा में लंबी बहस के बाद यह विधेयक पारित हुआ उसी तरह राज्यसभा में भी बहस होनी चाहिए थी। लेकिन कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां इसकी हामी नहीं थीं। मुझे लगता है कांग्रेस इस मामले में वोट बैंक की राजनीति कर रही है, जैसा कि उसने शाहबानो प्रकरण में किया था। कांग्रेस का यह रवैया जहां एक तरफ संविधान विरोधी है, वहीं तीन तलाक की शिकार हो चुकी महिलाओं के लिए भी यह निराशाजनक है।
आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि तीन तलाक पर बनने वाला कोई कानून उसे मंजूर नहीं होगा। उनका कहना है कि इस बहाने भाजपा मुसलमानों को टारगेट करना चाहती है?
1972 में आॅल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड की स्थापना हुई। इनसे सवाल पूछिए कि साढ़े चार दशक में इन्होंने मुस्लिम औरतों के हक में कौन सा काम किया है। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उस वक्त कहां सो रहा था जब 1986 में शाहबानो को तलाक दे दिया गया था। उस वक्त भी आप चुप थे और आज तक चुप बैठे हैं। क्या इनके पास इस बात का कोई जबाव है कि दारूल कजा में कितनी मुस्लिम औरतों को न्याय मिलता है। यह जानते हुए कि तीन तलाक के नाम पर मुस्लिम औरतों की जिंदगी जहन्नुम बनी हुई है फिर भी आप खामोश हैं। कुरान में तीन तलाक का कहीं कोई जिक्र नहीं है। यह इंसानों के द्वारा बनाई गई ऐसी गंदी प्रथा है, जिसका नाजायज फायदा मौलवी उठाते हैं। लोकसभा में जब मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 पारित हो रहा था, उससे एक दिन पहले आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस संबंध में मीटिंग चल रही थी। मीटिंग के बाद उन्होंने कहा कि हम सरकार के फैसले के खिलाफ जाएंगे। मैं पूछती हूं कहां जाएंगे? सुप्रीम कोर्ट! लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया है। यह कहना गलत है कि तीन तलाक पर कानून बनाना शरियत पर हमला है। अगर ऐसा होता तो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों में इसे प्रतिबंधित नहीं किया जाता। पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबरान उस वक्त कहां रहते हैं जब मुस्लिम औरतों को तलाक दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तलाक देने का सिलसिला जारी है। अभी हाल ही में रामपुर, मुजफ्फरनगर और गोंडा में तीन महिलाओं को तीन तलाक दिया गया। मैं जब इन महिलाओं की आंखों में आंसू देखती हूं तो काफी दुख होता है।
तीन तलाक देने वालों के लिए तीन साल की सजा का प्रावधान है लेकिन कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठन इसके खिलाफ हैं। क्या इस मामले में सजा होनी चाहिए ?
तीन तलाक देने वालों को सजा मिलनी चाहिए मैं भी इससे सहमत हूं। क्योंकि यह एक सामाजिक बुराई है और इसने मुस्लिम समाज को अपनी चपेट में ले लिया है। आप गौर करें सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैर कानूनी बताया और इस पर रोक लगाई। लेकिन उसके बाद भी देश में तीन तलाक के दर्जनों मामले सामने आए। लोगों को अदालत के फैसले की परवाह नहीं है और वह इसलिए नहीं है क्योंकि सजा का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए मेरा मानना है कि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 में सजा का प्रावधान जरूरी है। हालांकि इसमें हमारी तरफ से कुछ जरूरी सुझाव भी हैं, जिसका जिक्र मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लॉ कमीशन को लिखे पत्र में भी किया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर भी मैंने अपनी बातें रखीं और उन्होंने मेरे सुझावों को पसंद भी किया। तीन तलाक पर मेरा एक सुझाव यह है कि मजिस्ट्रेट को चाहिए कि वह पति-पत्नी के बीच सुलह कराने की कोशिश करें, क्योंकि उन्हें एक मौका मिलना चाहिए। एक प्रॉपर काउंसिलिंग भी जरूरी है ताकि किसी भी सूरत में परिवार न टूटने पाए। तलाक देने का भी अपना एक तरीका है। शरियत के मुताबिक तलाक देने से पहले काजी को सूचित करना जरूरी है। आपसी रजामंदी से तलाक दिया जा सकता है, लेकिन फोन, इमेल और फैक्स करके तलाक देना गैर कानूनी है। ऐसा करने वालों को तीन साल क्या तीस साल की सजा मिलनी चाहिए।
लेकिन कई मुस्लिम तंजीमों का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा तीन तलाक कार्ड खेल रही है?
आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इसमें जरूरत से ज्यादा सियासत दिख रही है। लेकिन फिर उनके लिए दोहराना चाहूंगा कि बीते चालीस-पैंतालीस साल में पर्सनल लॉ बोर्ड ने आंसू बहा रही मुस्लिम महिलाओं के हक और अधिकारों के लिए कौन से क्रांतिकारी काम किए हैं। जमीअत-ए-उलेमा-ए-हिंद से जुड़े मौलाना महमूद मदनी जो कि राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं। साथ ही पर्सनल लॉ बोर्ड से भी इनका ताल्लुक रहा है। इन्होंने क्या किया मुस्लिम महिलाओं के लिए। कांग्रेस ने हमेशा वोटों की राजनीति की। मुसलमान वोट उनसे दूर न हो जाए इसलिए उसने कभी कोई गंभीरता नहीं दिखाई। शाहबानो मामले को अगर मरहूम राजीव गांधी ने वोटबैंक के चश्मे से न देखा होता तो तीन तलाक जैसी कुरीतियां उसी वक्त खत्म हो जातीं। आज भाजपा इस मामले में पहल कर रही है। चलो मान लेते हैं कि वह मुस्लिम महिलाओं को अपने पक्ष में करना चाहती है तो इसमें गलत क्या है? सही मकसद के लिए अगर कोई पार्टी समाज के किसी तबके को अपने साथ जोड़ना चाहती है तो इसमें राजनीति कहां है। अगर राजनीति है तो हमें खुश होना चाहिए कि यह सही राजनीति है। अगर मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पारित हो जाता है और यह कानून के रूप में प्रभावी हो जाता है तो निश्चित रूप से भाजपा को इसका श्रेय मिलेगा। साथ ही मुस्लिम महिलाओं का झुकाव भी भाजपा की तरफ बढ़ेगा।