दिल्ली
दिल्ली की राजनीति ने फिर करवट ली. भाजपा ने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराया और आम आदमी पार्टी की सारी संभावनाओं पर पानी फेर दिया. दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी और चुनाव प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन कांग्रेस की मजबूत स्थिति के कारण केजरीवाल को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. आंदोलन से उपजी इस पार्टी के केवल दो उम्मीदवार ही दूसरे स्थान पर रह पाए, जबकि पांच स्थानों पर कांग्रेस ने उन्हें तीसरे स्थान पर भेज दिया. दिल्ली में भाजपा को न केवल सातों सीटें मिलीं, बल्कि लोगों का भरपूर समर्थन भी मिला. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोगों ने मोदी के पक्ष में मतदान किया और यहां भाजपा का हर उम्मीदवार बड़े अंतर से विजयी हुआ. चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा चल रही थी. दोनों पार्टियों के नेताओं ने एक साथ चुनाव लडऩे के लिए कई बैठकें भी कीं. दोनों के बीच गठबंधन की संभावना से भाजपा के भीतर भी एक डर था और यही कारण है कि नामांकन की तिथि की घोषणा तक भाजपा ने अपने उम्मीदवारों के नाम नहीं खोले थे. नामांकन की समय सीमा खत्म होने से दो दिन पहले, जब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की संभावना खत्म होती दिखाई दी, तब भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की. यही नहीं, भाजपा ने दिल्ली में अपने दो जीते हुए सांसदों को उम्मीदवार नहीं बनाया और दोनों जगह चर्चित चेहरों को तवज्जो दी. पूर्वी दिल्ली से महेश गिरि की जगह क्रिकेटर गौतम गंभीर को, तो उत्तर पश्चिम दिल्ली से डॉ. उदित राज की जगह सूफी गायक हंसराज हंस को टिकट मिला. हालांकि, भाजपा को थोड़ा डर था, लेकिन चुनाव परिणाम देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया होता, तो भी दिल्ली की सभी सात सीटों पर भाजपा की जीत होती. यहां भाजपा को 56.6 प्रतिशत मत मिले हैं, जबकि कांग्रेस को 22.5 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 18.1 प्रतिशत. देखा जाए तो आम आदमी पार्टी के लिए यह परिणाम सबसे बड़ा झटका है, क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस की मजबूत स्थिति उसके लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है. दिल्ली में 6 महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और अगर यही स्थिति रही, तो केजरीवाल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ सकती है.