अनूप भटनागर
अभी केरल में अखिला के इस्लाम धर्म कबूल करने और मुस्लिम युवक से निकाह करने का मसला पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ कि उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले में एक हिंदू परिवार के धर्म परिवर्तन और राजस्थान के राजसमंद में कथित लव जिहाद के नाम पर एक मुस्लिम की नृशंस हत्या कर उसका शव जलाए जाने की सनसनीखेज घटना ने सबको चौंका दिया। सवाल उठता है कि इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही हैं और इन्हें रोकने तथा सामाजिक तानेबाने को सदभावपूर्ण बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? अगर कोई प्रेम की खातिर या विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करता है तो यह कैसे साबित किया जा सकता है कि प्रलोभन देकर, सिखा पढ़ाकर अथवा भय दिखाकर जबरन धर्मान्तरण कराया गया है? मगर इस तरह की घटनाओं के बीच विवाह के लिए धर्मान्तरण के संबंध में मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून, 1968 और हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून, 2006 की तर्ज पर कानून बनाने के बारे में उत्तराखंड सरकार को नैनीताल हाई कोर्ट का सुझाव बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने हालांकि अपने आदेश में मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के धर्म स्वतंत्रता कानूनों का जिक्र किया है। लेकिन वास्तव में इस समय धर्म स्वतंत्रता कानून इन दो राज्यों के अलावा गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और अरुणाचल प्रदेश में भी है। यह अलग बात है कि अरुणाचल प्रदेश में इसे लागू नहीं किया गया है। हाल के वर्षों में हिंदू युवतियों द्वारा धर्मान्तरण के बाद मुस्लिम युवकों से निकाह की घटनाओं को लव जिहाद का नाम दे दिया गया जिसकी वजह से कई स्थानों पर तनाव हुआ। सवाल यह है कि क्या ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए किसी कानून की आवश्यकता है? हिंदू युवतियों द्वारा धर्मान्तरण की घटनाओं पर इस तथ्य का जिक्र करना शायद अनुचित नहीं होगा कि हिंदू पतियों द्वारा पत्नी को तलाक दिए बगैर ही इस्लाम धर्म कबूलने और दूसरी शादी करने की भी घटनाएं सामने आती रहीं हैं।
ऐसी घटनाओं से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में महिलाओं के हितों की रक्षा और धर्म का दुरुपयोग रोकने के इरादे से धर्मान्तरण कानून बनाने की संभावना तलाशने के लिए एक समिति गठित करने पर विचार का भी सुझाव दिया था। कोर्ट का मत था कि इस कानून में यह प्रस्ताव भी किया जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है तो वह अपनी पहली पत्नी को विधिवत तलाक दिए बगैर दूसरी शादी नहीं कर सकेगा। यह प्रावधान प्रत्येक नागरिक पर लागू होना चाहिए। हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों से समय-समय पर धर्मान्तरण रोकने के लिए उचित कानून बनाने की आवाज उठती रहती है। संसद में इसके लिए विधेयक भी पेश किए गए लेकिन कोई भी कानून की शक्ल नहीं ले सका। संसद में पहली बार 1954 में भारतीय धर्मान्तरण (विनियमन एवं पंजीकरण) विधेयक, 1954 पेश किया गया लेकिन लोकसभा में बहुमत के अभाव में यह गिर गया। इसके बाद 1960 और 1979 में भी इसके असफल प्रयास हुए थे। हमारे संविधान का अनुच्छेद 25 (1) नागरिकों को अपने अंत:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार प्रदान करता है। परंतु इसके साथ ही अनुच्छेद 25(2) किसी ऐसे मौजूदा कानून के प्रवर्तन पर असर नहीं डालेगा और न ही राज्य को ऐसा कोई कानून बनाने से रोकेगा जो धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलापों को विनियमित या निर्बंधन करता हो।
ओडिशा में 1967 में बने ओडिशा धर्म स्वतंत्रता कानून और मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून, 1968 की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। मगर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एएन रे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 17 जनवरी, 1977 को इन कानूनों को वैध ठहराया था। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एमएच बेग, न्यायमूर्ति आरएस सरकारिया, न्यायमूर्ति पीएन सिंघल और न्यायमूर्ति जसवंत सिंह शामिल थे। सर्वोच्च अदालत ने अन्य फैसलों का जिक्र करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 25 और 26 के आलोक में निश्चित ही लोक व्यवस्था के हित में इन अनुच्छेद में दिए गए अधिकारों को प्रतिबंधित किया जा सकता है क्योंकि यदि कोई बात व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि समुदाय के जीवन को बाधित करती है तो इसे लोक व्यवस्था में गड़बड़ी ही माना जाएगा। यदि जबरन धर्मान्तरण की वजह से सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के प्रयास किए जाते हैं तो इससे लोक व्यवस्था में अशांति पैदा होने की आशंका होती है।
संविधान पीठ ने अपनी व्यवस्था में कहा था कि संविधान का अनुच्छेद सभी व्यक्तियों को लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के दायरे में धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है। परंतु यह अनुच्छेद किसी व्यक्ति को अपने धर्म में शामिल करने का अधिकार नहीं देता है बल्कि यह अपने ही धर्म के प्रचार का अधिकार देता है। अनुच्छेद 25 किसी एक धर्म के बारे में नहीं बल्कि सभी धर्मों को गारंटी प्रदान करता है। दोनों ही राज्यों के कानून जबरन धर्म परिवर्तन निषेध करते हैं और इसी के संदर्भ में कानून व्यवस्था बनाए रखने की बात है क्योंकि यदि जबरन धर्मान्तरण को निषेध नहीं किया जाता है तो इससे राज्यों में कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी। संविधान पीठ की व्यवस्था के अनुसार यह ध्यान रखना होगा कि अनुच्छेद 25(1) प्रत्येक नागरिक को और सिर्फ किसी एक विशेष धर्म के मानने वालों को अंत:करण की स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है और इस तरह यह किसी एक व्यक्ति के धर्म में दूसरे व्यक्ति के परिवर्तन का मौलिक अधिकार नहीं देता है। यदि एक व्यक्ति जानबूझकर किसी व्यक्ति को अपने धर्म में शामिल करता है तो इससे सभी नागरिकों को संविधान में प्रदत्त अंत:करण की स्वतंत्रता गारंटी पर अतिक्रमण होगा।
संविधान के प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के आलोक में एक बात तो साफ है कि राज्यों को जबरन धर्मान्तरण को रोकने के लिए कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश (जहां धर्मान्तरण की खबरें सबसे ज्यादा चर्चा में रहती हैं), राजस्थान, केरल और बिहार जैसे कई राज्यों ने इस दिशा में शायद ही कोई ठोस कदम उठाया है। शायद यही वजह है कि धर्मान्तरण के बारे में अधिकतर वे राज्य ही चर्चा में आते हैं जहां इन पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई कानून नहीं है। ऐसी स्थिति में इस तथ्य पर विचार करना आवश्यक है कि लव जिहाद या जबरन धर्मान्तरण जैसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकारें उचित कदम उठाने में क्यों हिचकिचाती हैं और क्यों इस तरह की घटनाओं के प्रति शुरू में आंखें फेर ली जाती हैं। जब समस्या गंभीर हो जाती है तो आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है।
हमारे देश में दो वयस्क, भले ही अलग-अलग धर्म और जाति के हों, यदि विवाह करना चाहते हैं तो वे विशेष विवाह कानून, 1954 के तहत ऐसा कर सकते हैं। यह विवाह अदालत में होता है और इसमें कोई पंडित, मौलवी, पादरी या ग्रंथी शामिल नहीं होता है। इस कानून के तहत किसी को धर्म बदलने की जरूरत नहीं होती है और विवाह के बाद दोनों का अपना-अपना धर्म बरकरार रहता है। साथ ही शादी के बाद पत्नी को कई कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। हां, यदि विवाह करने वाले हिंदू हैं तो उनमें नजदीकी रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह प्रतिबंधित है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगी कि विवाह के लिए धर्म परिवर्तन कराने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगे।