गुजरात और हिमाचल विधानसभा में फिर दिखेंगे दागी माननीय 

सुनील वर्मा
दागी सांसदों और विधायकों को लेकर सर्वोच्च अदालत कई बार अपनी सख्त टिप्पणी कर चुका है। लेकिन हर बार यही देखा गया कि राजनीतिक दल अपने दागी जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिए कुतर्क गढ़ते नजर आते हैं। सभी को याद होगा कि पिछले साल जब सर्वोच्च अदालत ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के जरिए दोषी सांसदों व विधायकों की सदस्यता समाप्त करने और जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाई तो राजनीतिक दलों ने जिस तरह की हैरतअंगेज दलील पेश की उससे देश हैरान रह गया।

गत दिनों सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों ने दागी नेताओं के मुकदमों को शीघ्र निपटाने पर अपनी सहमति जता दी है इसके लिए सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेज निपटारे के लिए 12 विशेष अदालतों का गठन और इसके लिए 7.80 करोड़ आबंटित करने पर सहमति भी दे दी है। हो सकता है इस कवायद के बाद राजनीति के आपराधी करण पर लगाम लग सके।

लेकिन सरकारी स्‍तर पर हो राजनीति में अपराधी करण को रोकने के लिए हो रही इन सारी कवायदों के बावजूद संसद और विधानसभाओं में दागी और आपराधिक चरित्र वाले माननीयों की तादाद कम होंने का नाम नहीं ले रही है। तमाम राजनीतिक पार्टियां राजनीति में शुचिता की बात भी कर रही है इसके बावजूद वे चुनावों में अपराधी छवि के उम्‍मीदवारों को टिकट देने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में संपन्‍न हुए विधानसभा में चुने हुए विधाकयों को ही बात करें तो गुजरात के नवनिर्वाचित 182 विधायकों में से 47 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जिनमें 33 के खिलाफ संगीन मामलें दर्ज है। लोकतांत्रिक सुधार के लिए काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने विधायकों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट जारी की है। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि 182 नए विधायकों में से 47 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी सार्वजनिक की है। जबकि 2012 के चुनाव में यह आंकड़ा 57 था और उनमें संगीन अपराधिक मामलों के आरोपी विधायकों की संख्‍या 24 थी। पार्टी के आधार पर देंखे तो बीजेपी के 99 विधायकों में से 18, कांग्रेस के 77 में से 25, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2 में 1राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का 1 और 3 निर्दलीयों में से 2 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें भी बीजेपी के 12, कांग्रेस के 17, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 1 और 2 निर्दलीय विधायकों पर हत्‍या, अपहरण और डकैती के संगीन अपराध के मामले दर्ज हैं।

इसी तरह हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी इस बार 68 में से 22 विधायक अपराधिक रिकार्ड वाले होंगे। इनमें गंभीर अपराध के आरोपी विधायकों की संख्‍या 8 है । जबकि 2012 की विधानसभा में 14 दागी चेहरे जीते थे और उनमें 5 पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे। अगर पार्टीवार अपराधिक रिकार्ड वाले उम्‍मीदवारों को विश्‍लेषण करें तो इस बार कांग्रेस के 21 विधायकों में से 2, भारतीय जनता पार्टी के 44 विधायकों में से 18,  सीपीआई का 1 और 2 निर्दलीय विधायकों पर दागी है।  कांग्रेस के 1 विधायकबीजेपी के  6 विधायक और सीपीआई (एम) के 1 विधायक के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है। अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जीतकर विधानसभा में पहुंचे विधायकों का रिकार्ड देखकर तो नहीं लगता कि राजनीतिक दल सियासत में शुचिता लाने के प्रति गंभीर है और सु्प्रीम कोर्ट की चिंताओं से सहमत है।

वैसे अगर चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 2014 में कुल 1581 सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे। इसमें लोकसभा के 184 और राज्यसभा के 44 सांसद शामिल थे। इनमें महाराष्ट्र के 160, उत्तर प्रदेश के 143, बिहार के 141 और पश्चिम बंगाल के 107 विधायकों पर मुकदमे लंबित थे। सभी राज्यों के आंकड़े जोड़ने के बाद कुल संख्या 1581 थी। यहां ध्यान देना होगा कि चुनाव दर चुनाव दागी जनप्रतिनिधियों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। उदाहरण के तौर पर 2009 के आमचुनाव में 158 माननीयों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की थी। जबकि 2014 में दागियों की संख्या बढ़ गई। 

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 एडीआर के संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म के फाउंडर सदस्‍य प्रोफेसर प्रो. जगदीप छोकर विधान पालिकाओं में दागी माननीयों की बढ़ती तादाद पर कहते है कि ‘राजनीतिक दलों को विश्वास हो गया है कि जो जितना बड़ा दागी है उसके चुनाव जीतने की उतनी ही बड़ी गारंटी है। इसीलिए पिछले कुछ दशक से दबंग और अपराधिक रिकार्ड वालों को चुनाव में टिकट देने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। हैरान करने वाली बात यह कि दागी चुनाव जीतने में सफल भी हो रहे हैं। लेकिन यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। लेकिन इसके लिए सिर्फ राजनीतिक दलों और उनके नियंताओं को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जनता भी इसके लिए बराबर की कसूरवार है। जब देश की जनता ही साफ-सुथरे प्रतिनिधियों को चुनने के बजाय जाति-पांति और मजहब के आधार पर बाहुबलियों और दागियों को चुनेगी तो स्वाभाविक रूप से राजनीतिक दल उन्हें टिकट देंगे ही।

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