विजय माथुर
वर्ष 2013 में परिवर्तन यात्रा निकाल कर सत्ता में आर्इं वसुंधरा राजे इस बार नए अंदाज में चुनाव में उतरने की तैयारी में हैं। सत्ता विरोधी रुझान से निपटने के लिए उन्होंने शनिवार 4 अगस्त से प्रदेश के सात संभागों की चालीस दिन की ‘सुराज गौरव यात्रा’ की शुरुआत की है। उनके लिए इस यात्रा के सुकून भरे पल तभी होंगे जब लोग उनकी सरकार की खामियां दरकिनार कर खूबियों के बखान पर रजामंद होते नजर आएंगे। हालांकि इस यात्रा को लेकर राजे का नजरिया इसलिए भी उत्साहवर्धक है कि वे संवाद कौशल में सर्वज्ञों के अमृत वचनों से पुलकित हैं कि सत्ता विरोधी रुझान को घोटकर पी जाना चाहिए। राजे के राजनीतिक मिजाज को भांपने वाले एक दिलचस्प बात कहते हैं कि नसीहतें लेने के मामले में सबसे ज्यादा जिद्दी क्षत्रप के रूप में चर्चित राजे की यात्रा की सार्थकता तभी है जब वे आत्मविश्वास और अहंकार के बीच तिर्यक रेखा को पढ़ने से गुरेज नहीं करें। हालांकि उनके ताजा साक्षात्कार में उनकी आवाज ऊर्जा और जज्बात से भरी नजर आती है कि, ‘उपलब्धियों की हमारी झोली में भामा शाह जैसी 167 योजनाएं हैं तो 60 लाख युवाओं को रोजगार देने की पूंजी भी, तो फिर जनता क्यों हमें दोबारा नहीं चुनेगी?’ राजनीतिक विश्लेषक सवाल उठाते हैं कि क्या यह तब भी संभव है जब चुनाव संगठन नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष वसुंधरा राजे की कमान में लड़ा जा रहा है?
इसकी अंतर्कथा भी बड़ी पेचीदा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पहले जयपुर में बैठकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों की मॉनीटरिंग करने वाले थे लेकिन अब इस योजना में तब्दीली कर दी गई है। तीनों राज्यों के चुनाव मॉनीटरिंग के लिए अमित शाह अब भोपाल में डेरा डालेंगे। भोपाल में वार रूम भी बना दिया गया है। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि यह बदलाव वसुंधरा राजे की अवांछनीय दुविधा की वजह से है। सुराज गौरव यात्रा में राजे के लिए मुश्किलों की बात करें तो लोगों को सरकार की उपलब्धियों से रिझाने के नाम पर वह ‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ नहीं बन सकेंगी क्योंकि उनकी सरकार के कामकाज को कठघरे में खड़ा कर चुका एक बड़ा मीडिया समूह आंखों देखी खबरें नापने के लिए समानांतर रूप से जनादेश यात्रा निकालने का मंसूबा बना चुका है जिसकी टैग लाइन है ‘आपको सब दिखे साफ, इसलिए दोनों दिशाओं पर नजर’। उधर राजे से कट्टर दुश्मनी पाले और पार्टी छोड़कर तीसरा मोर्चा बना चुके घनश्याम तिवाड़ी भी समानांतर यात्रा निकालने की फिराक में हैं। तिवाड़ी वसुंधरा की कमान में भाजपा की चुनावी जंग को अपने लिए सौभाग्यवर्द्धक मानते हैं कि वसुंधरा सरकार की योजनाओं के आंकड़े सिर्फ आकाशी हैं जबकि इनकी जमीनी हकीकत तो दो कौड़ी की है। तिवाड़ी कहते हैं, ‘राजे सरकार की योजनाओं में कितना झोल है, हम जनता को बताएंगे।’
जनता आपको क्यों चुने के जवाब में राजे का दावा है कि सरकारी योजनाओं का सौ फीसदी पैसा लोगों के खाते में पहुंचा तो क्यों लोग खुश नहीं होंगे। भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारती हुई वसुंधरा यह कहते नहीं अघातीं कि साढ़े चार साल पहले जो राजस्थान भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ था वो आज न सिर्फ विकसित हो चुका है बल्कि विकास के हर क्षेत्र में अंगदी पांव जमाए हुए है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट राजे के दावों को यह कहते हुए उधेड़ते हैं कि, ‘इस सरकार ने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार की परवरिश करने के अलावा और क्या किया है?’ विश्लेषक भी राजे सरकार के दावों की खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं कि नीतियों का इम्तेहान तो सामने है, सब कुछ साफ हो जाएगा। उनका कहना है कि अच्छा प्रशासन अपने आप में कोई ध्येय नहीं होता लेकिन अगर चुनाव में सफलता दिलवाने वाला हो तो किसी भी यात्रा की दरकार नहीं होती।
सुराज गौरव यात्रा के जरिये सत्ता विरोधी रुझान से निपटने की जुगत में जुटी राजे को कांग्रेस कई सुलगते सवालों से घेरने की फिराक में है। इनमें अहम मुद्दे बेटियों की सुरक्षा और भ्रष्टाचार हैं। इन मुद्दों का सत्य राजे के जनमत का दोहन करने में हजार मुश्किलें खड़ी कर देगा। सरकारी सेवाओं में रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामले जिस इफरात से उठते रहे हैं उसने तो राजनीतिक मकसदों का तिया पांचा कर दिया है। राजस्थान पर्यटन और टाइगर रिजर्व से संबंधित अहम फाइलें सचिवालय से एकाएक गायब हो जाएं तो क्या मतलब निकलेगा? गायब हुई फाइलों की संख्या 46 है और सभी होटलों की बिक्री से जुड़ी हुई हैं। विभागीय अफसरों की बेचैनी उनके चेहरों से साफ नजर आती है लेकिन कोई इसकी पुष्टि को तैयार नहीं है। वन, पर्यावरण और पर्यटन महकमे के मुख्य सचिव कुलदीप रांका इस मामले का जवाब देने तक से कतरा रहे हैं। इससे पहले भी 171 महत्वपूर्ण फाइलें गायब हो चुकी हैं।
राज्य में निजी क्षेत्र की ओर से चलाए जा रहे कौशल विकास से जुड़े चार सौ से ज्यादा केंद्र कागजों में दर्ज पाए गए। जांच के दौरान इनमें एक भी अस्तित्व में नहीं पाया गया। फौरी जरूरत तो इस बात की थी कि श्रम नियोजन कौशल उद्यमिता विकास महकमा इन लापता केंद्रों की मान्यता रद्द करने के लिए नेशनल काउंसिल आॅफ वोकेशनल ट्रेनिंग अथॉरिटी को लिखता लेकिन इसके उलट महकमा इस फर्जीवाड़े को दबाने पर ही तुल गया। सूत्रों का कहना है कि चुनावी धन वसूली के लिए मामला रफा-दफा किया जा रहा है। श्रम नियोजन व कौशल विकास मंत्री जसवंत सिंह यादव तो इस मामले में मुंह खोलने तक को तैयार नहीं कि क्यों पहले हकीकत खंगालने के लिए कमेटी बनाई, फिर फर्जीवाड़े को रफा-दफा करने के लिए कमेटी बना दी गई? इस मामले में प्राविधिक शिक्षा निदेशालय के अधिकारी एके आनंद भी मंत्री जी से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। भ्रष्टाचार के इस समंदर में हर रोज एक नया घड़ियाल सिर उठाता है लेकिन उसे कुचलने की बजाय पनपने का मौकादिया जा रहा है। अब जबकि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए सरकार की अनुमति लेना जरूरी कर दिया है तो इससे भ्रष्टाचार की परवरिश नहीं होगी तो क्या होगा। वहीं रिश्वत देने वाले को भी कानूनी दायरे में ले लिया गया है तो कौन भ्रष्टाचारी को फंसाने के लिए अपनी जान फंसाएगा?
सबसे दिलचस्प है मॉब लिंचिंग की अनदेखी करने का सरकार का फैसला। जब भीड़तंत्र की हिंसा के 450 मामले वापस ले लिए गए और 307 वापस लेने की तैयारी है तो कैसे रुकेगी मॉब लिंचिंग? विश्लेषक कहते हैं कि इसमें तो राजनीतिक लाभ के लिए जाति समाज का दबाव साफ झलकता है। हालांकि गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया इस बात से इनकार करते हैं कि मॉब लिंचिंग को लेकर नया कानून बनाने का अभी कोई प्रस्ताव है। बालिका सुरक्षा को लेकर वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीचंद पंत के शब्द तो बुरी तरह विचलित करते हैं कि, ‘तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म…! दरिंदगी की तो यह हद है। ऐसी घटनाओं से दिमाग की नसें चटखने लगती हैं। हम सब स्तब्ध और सन्न हैं। इसे लेकर अगर कोई निष्फिक्र है तो वो सरकार है जिसे सिर्फ चुनाव जीतना है। सड़कों पर मटरगश्ती करते आवारा पशु पिछले साढ़े चार साल में दो सौ से अधिक लोगों की जान ले चुके हैं और सैकड़ों अस्पतालों के रहमोकरम पर हैं। सुराज गौरव यात्रा को शहरों के काऊ सफारी क्या मुंह नहीं चिढ़ाएंगे?’
वसुंधरा राजे अगर कहीं छलांग मारती नजर आती हैं तो वो है सोशल मीडिया। टिवट्र पर उनके फालोअर्स की संख्या 34 लाख है तो फेसबुक पर 92 लाख से ज्यादा। चुनावी रणनीतिकार कहते हैं कि सोशल मीडिया पर चल रहे घमासान में वसुंधरा राजे सरकार की हकीकत कैसे देख पाएंगी? फिलहाल राजे के लिए कोई राहत की बात है तो वो प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर खींचतान है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने यह कहते हुए पार्टी के अपने विरोधियों में चिंगारी भड़काने का काम किया कि, ‘आजादी के बाद पहली बार जब कांगे्रस हाशिये पर थी और पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई थी, उस कठिन दौर में राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश की जिम्मेदारी मुझे सौंपी। हालांकि प्रदेश में कई बड़े नेता थे लेकिन उन्होंने मुझ पर विश्वास किया। मेरा लक्ष्य अर्जुन की तरह साफ है, चाहे अब रास्ते में कोई भी चुनौती क्यों न आए।’