पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र
वासंतिक और शारदीय नवरात्र के अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र होते हैं जो आज से (13-21 जुलाई) शुरू हो गए हैं। इनमें महासरस्वती की पूजा-अर्चना को प्रमुखता दी जाती है। गुप्त और जाग्रत दोनों ही नवरात्र मौसम के सन्धिकाल में आते हैं। यह अध्यात्म की दुनिया में प्रवेश करने का खास मौका होता है। इनमें नौ देवियों के बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है, जो इस प्रकार हैं-
- काली: दस महाविद्याओं में प्रथम हैं। कलियुग में इनकी पूजा अर्चना से शीघ्र फल मिलता है।
- तारा: सर्वदा मोक्ष देने वाली और तारने वाली को तारा का नाम दिया गया है।
- छिन्नमस्ता: मां छिन्नमस्ता का स्वरूप गोपनीय है। इनका सर कटा हुआ है। इनके बंध से रक्त की तीन धाराएं निकल रही हैं। दो धाराएं उनकी सहस्तरीयां और एक धारा स्वयं देवी पान कर रही हैं।
- त्रिपुर भैरवी: आगम ग्रंथों के अनुसार त्रिपुर भैरवी एकाक्षर रूप है। शत्रु संहार एवं तीव्र तंत्र बाधा निवारण के लिए भगवती त्रिपुर भैरवी महाविद्या साधना बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- धूमावती: इनकी उपासना से विपत्ति नाश, रोग निवारण व युद्ध में विजय प्राप्त होती है।
- बगलामुखी: शत्रु बाधा को पूर्णतः समाप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण साधना है।
- षोडशी महाविद्या: शक्ति की सबसे मनोहर सिद्ध देवी हैं। इनके ललिता, राज-राजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी आदि अनेक नाम हैं। ये साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।
- भुवनेश्वरी: मां भुवनेश्वरी की साधना से मुख्य रूप से वशीकरण, वाक सिद्धि, सुख, लाभ एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- मातंगी: इस नौवीं महा विद्या की साधना से सुखी, गृहस्थ जीवन, आकर्षक और ओजपूर्ण वाणी और गुणवान पति या पत्नी की प्राप्ति होती है।
- कमला: मां कमला की साधना से दरिद्रता का नाश होता है और आय के स्रोत बढ़ते हैं। जीवन ‘सुखमय होता है। यह दुर्गा का सर्व सौभाग्य रूप है। जहां कमला हैं वहां विष्णु हैं।
ऐसे करें आराधना
गुप्त नवरात्र में सात, पांच, तीन या एक दिन व्रत अवश्य करें। सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें। कलश की स्थापना करें। मिट्टी के ऊपर पीतल, तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर रखें। कलश में एक सिक्का डालें और उसके चारों ओर मौली बांधें। फूल माला चढ़ाएं। कलश को ढक कर आम के कम से कम पांच पत्ते रखें। लाल कपड़े में नारियल लपेटकर कलश के ऊपर रख दें।
इसके बाद कलश पर सुपारी, साबुत चावल रखें। घर के मंदिर में अखंड ज्योति जलाएं। सुबह-शाम मां अंबिका की पूजा-अर्चना करें। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन कर नवरात्र व्रत का समापन करें। घर के मंदिर में संभव हो तो गाय के घी का दीपक जलाएं। मिट्टी में जौं डालें और गंगाजल मिश्रित जल का छिड़काव करें। फिर मां दुर्गा का ध्यान करें। लाल या सफेद ऊनी आसन पर बैठकर जाप करें। व्रत करने वाले मां को लाल फूल चढ़ाएं। शाकाहारी रहें और नारी का सम्मान करें।
नौ दिन देवी भागवत कथा और शुरुआत में एक दिवसीय गणेश कथा कराना लाभकारी रहता है। गणेश जी का मोदक, जामुन, बेल आदि के साथ सर्वप्रथम आह्वान अवश्य कर लें। साथ ही इन नवरात्र में हमें अपनी कुलदेवी या कुलदेवता की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए।