यूपीएससी और आईपीएस
पंजाब में पुलिस महानिदेशक के रूप में दिनकर गुप्ता की नियुक्ति तब हुई, जब संघ लोक सेवा आयोग ने इस पद पर नियुक्ति के लिए पंजाब सरकार के तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक सूची बनाकर भेजी. अन्य दो अधिकारी डीजीपी (प्रशासन) एमके तिवारी और डीजीपी (प्रोविजनिंग) वीके भावरा 1987 बैच के हैं और इन सब में गुप्ता सबसे वरिष्ठ थे. यह पहली बार है कि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ऐसी शॉर्ट लिस्टेड लिस्ट बनाई गई, जिसमें कहा गया कि यूपीएससी द्वारा सूचीबद्ध अधिकारियों की सूची में से ही राज्य को अपने पुलिस प्रमुखों का चयन करना होगा. ऐसा राज्यों में शीर्ष पुलिस पद पर नियुक्ति में राजनीतिक प्रभाव कम करने के लिए किया गया. निर्देशों के अनुसार, राज्यों को वर्तमान डीजीपी की सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले यूपीएससी को इसकी सूचना देनी होगी. इसके अलावा चुने गए डीजीपी का कार्यकाल दो साल से कम नहीं होना चाहिए. इससे यह सुनिश्चित करना है कि सरकार में बदलाव के साथ अधिकारियों में फेरबदल न हो. पंजाब सरकार ने कुछ अन्य राज्यों के साथ मिलकर खुद ही डीजीपी नियुक्त करने के लिए एक याचिका दायर की थी, जो खारिज कर दी गई थी. दिलचस्प बात यह है कि 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी मोहम्मद मुस्तफा का दावा है कि मानदंड पर खरा उतरने के बावजूद उन्हें पंजाब पुलिस प्रमुख पद के लिए नजरअंदाज किया गया.
सिर्फ बाबू क्यों ?
सूचना आयोग के साथ-साथ राज्य सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों के पद ज्यादातर बाबुओं से भरने की सरकारी प्रवृत्ति पर सवाल उठाए हैं. अदालत ने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों के लिए सूचना आयुक्तों के चयन में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया जाना चाहिए. यह पद नौकरशाहों तक सीमित नहीं होना चाहिए. मौजूदा चयन प्रक्रिया में सरकार का पूर्वाग्रह दिखता है. अदालत ने राज्यों से कहा है कि वे केंद्र द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया अपनाएं. इसके तहत वे वेबसाइट पर सर्च कमेटी के सदस्यों, आवेदकों एवं शॉर्ट लिस्टेड उम्मीदवारों के नाम और चयन प्रक्रिया के लिए निर्धारित मानदंड भी बताएं. अदालत ने केंद्र और आठ राज्यों- पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, आंध्र प्रदेश, केरल एवं कर्नाटक को छह महीने की अवधि में, बिना किसी देरी के रिक्त पद भरने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने यह भी कहा कि रिक्तियां भरने की प्रक्रिया उस तिथि से एक-दो महीने पहले शुरू की जानी चाहिए, जिस दिन पद रिक्त होने की संभावना हो, ताकि पद रिक्त होने और उसे भरने के बीच ज्यादा समय न लगे. अदालत ने कहा कि सर्च कमेटी के लिए उचित होगा कि वह उम्मीदवारों को शॉर्ट लिस्ट करने वाले मापदंड सार्वजनिक बनाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शॉर्ट लिस्टिंग तर्कसंगत मानदंडों के आधार पर की गई है.
सेना बनाम मंत्रालय
विदेश में रक्षा अताशी भेजने में देरी सशस्त्र बलों और रक्षा मंत्रालय के बीच खराब संबंधों का एक और संकेत है. सूत्रों के अनुसार, वाशिंगटन डीसी और ओमान में रक्षा अताशी के कई पद विवाद के कारण रिक्त पड़े हैं. सरकार ने मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव को पैनल में शामिल करके उसकी संरचना बदलने का फैसला किया है. अब तक रक्षा अताशी का चयन पूरी तरह रक्षा सेवाओं के दायरे में था. इसलिए यह नवीनतम आदेश रक्षा सेवाओं द्वारा सिविल नौकरशाही द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, सरकार जोर दे रही है कि चयन पैनल में बदलाव की सिफारिश पूर्व डिप्टी एनएसए अरविंद गुप्ता की अध्यक्षता वाली समिति ने की थी. सूत्रों का कहना है कि तीनों सेवाओं के प्रमुख अब मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करने की योजना बना रहे हैं, ताकि जल्द से जल्द यह मुद्दा सुलझाया जा सके.