गंदी सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित कदम है यह

राजिंदर सच्चर दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस, यूनाइटेड नेशंस सब कमीशन ह्यूमन राइट्स प्रोमोशन एंड प्रोटेक्शन के सदस्य भी रहे हैं। मुस्लिमों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का आंकलन करती सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी इन्हीं के नतृत्व में बनी थी। उनसे संध्या द्विवेदी की बातचीत के प्रमुख अंश।

समान नागरिक संहिता को लेकर हंगामा मचा है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के बीच से विरोध के स्वर तेज हैं, क्या वजह है?
जब संविधान बन रहा था तो देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने समान नागरिक संहिता का विरोध किया था। उनका तर्क था कि यह देश धर्मनिरपेक्ष है। इसलिए सभी को धार्मिक स्वतंत्रता है। हमारा संविधान भी यही कहता है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पड़ी है। आपने आज तक उसके बारे में कोई कदम नहीं बढ़ाया। मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति तो पहले सुधारिए। कमेटी की रिपोर्ट में इक्वल अपार्च्युनिटी कमीशन स्थापित करने की बात कही गई थी। मगर उस पर तो किसी का ध्यान नहीं गया।

समर्थकों का तर्क है कि संविधान में ही अनुच्छेद-44 हमें इस तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है। अगर राजेंद्र प्रसाद के विरोध को नहीं भूला जा सकता तो फिर बाबा भीमराव आंबेडकर के समर्थन को भी कैसे भूल सकते हैं?
देखिए जब भाजपा आती है तो उसे कुछ ऐसे एजेंडे उठाने होते हैं जिससे हंगामा मचे। हिंदू बहुसंख्यकों के वोट बटोर सके। मैं पूछता हूं भारत के सारे हिंदुओं में यूनिफार्मिटी है क्या? महिलाओं कि स्थिति देखिए! दलितों की स्थिति देखिए! हिंदू कोड बिल आने के बाद क्या सब के साथ न्याय हो रहा है? सबकुछ साफ है? यह गंदी सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित कदम है। चुनाव आने वाले हैं, तो कुछ तो हंगामा होना ही चाहिए न!

आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस समेत कई देश हैं जहां मुस्लिम व दूसरे समुदाय के लोग भी रहते हैं और वहां यूनिफार्म सिविल कोड लागू है। मुस्लिम समुदाय उसका पालन करता है। फिर भारत में क्या समस्या है?
क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष है। उसके संविधान ने सभी धर्मांे के लोगों को समानता का अधिकार दिया है। हम दूसरे देशों की बात क्यों करें? भारत उनसे अलग है।

दो साल हो गए भाजपा को सत्ता में आए। आपको लगता है कि मुसलमानों के लिए कुछ किया गया है?
इनकी मंशा कुछ करने की नहीं बल्कि बांटने की है। कभी गाय के नाम पर तो कभी दूसरे मसलों पर। आपको पता है गाय के मांस का सबसे ज्यादा व्यापार हिंदू करते हैं। 3.2 बिलियन डॉलर का व्यापार हिंदू करते हैं। और फिर ये हिंदूवादी संगठन गाय के मांस के नाम पर दंगा करते हैं, हिंसा करते हैं।

समान नागरिक संहिता के समर्थकों का दावा है कि यह जेंडर जस्टिस की तरफ बढ़ाया गया सबसे बड़ा कदम साबित होगा?
किस यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करते हैं ये लोग। क्या हिदुओं में यह है। आप दक्षिण में जाइए वहां मामा भांजी शादी करते हैं। उत्तर में भी कुछ जगहों पर चचेरे भाई बहन में शादी होती है। तो कुल मिलाकर हम यूनिफॉर्म नहीं हो सकते। अलग-अलग परंपराएं हैं। पूरा हिंदू समाज तो एक परंपरा से बंधा नहीं है और आप चले हैं अलग अलग धर्म के लोगों को यूनिफॉर्म करने। और किस जेंडर जस्टिस की बात कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में बेटी को मां बाप की संपत्ति में शुरुआत से ही हक दिया गया है। एक अनुपात दो में बेटी बेटा के बीच संपत्ति का बंटवारा मुस्लिमों में जायज माना जाता है। और इसके लिए हिंदू महिलाओं को 1956 तक इंतजार करना पड़ा, जब हिंदू उत्तराधिकार एक्ट 1956 बना। हां, कुछ खामियां हो सकती हैं तो इन्हें इसी समुदाय के लोगों से चर्चा करके सुधारिए, न कि सबको यूनिफॉर्म करने की राजनीति करिए।

विधि आयोग ने सभी धर्मांे के लोगों को इस पर चर्चा के लिए बुलाया है। शायद इसीलिए कि हर धर्म की अच्छी बातें इसमें समाहित हो सकें, तो आपका एतराज शायद खत्म हो।
प्रारूप सामने आने के बाद ही पता चलेगा कि इसमें क्या करने की मंशा है, बराबरी और इंसाफ की या कुछ और करने की!

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