नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरिविंद केजरीवाल यह दावा करते रहे हैं कि उन्हें काम नहीं करने दिया जाता, जबकि प्रतिदावे में कहा जाता रहा है कि वह काम नहीं करना चाहते और अनावश्यक रूप से लड़ते रहते हैं। इस पर केजरीवाल कहते रहे हैं कि अगर वह नहीं लड़ते तो तमाम मोहल्ला क्लीनिक नहीं खुल पाते। किसकी बात सही है और किसकी गलत, यह तय भी नहीं हो पाया था कि दिल्ली के नए एलजी अनिल बैजल ने आते ही दो स्प्ताह में केजरीवाल सरकार के साथ एक नई जंग शुरू कर दी है। उनका टकराव भी दिखना शुरू हो गया है।
एलजी ने डीटीसी किराया घटाने के लिए किए गए केजरीवाल सरकार के फैसले की फाइल को लौटा दिया है। फाइल वापस करते हुए एलजी ने कहा है कि 2009 के बाद से डीटीसी के किराये पहले ही नहीं बढ़ाए गए हैं इसलिए इस फैसले पर पुनर्विचार कीजिए। जबकि केजरीवाल सरकार ने ठंड के मौसम में प्रदूषण कम करने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए एक माह के ट्रायल स्वरूप डीटीसी बसों का किराया नॉन एसी बस के लिए ₹ 5, 10, 15 की जगह सिर्फ 5 रुपये और एसी बस के लिए ₹ 10, 15, 20, 25 की जगह केवल 10 रुपये करने का प्रस्ताव एलजी को भेजा था।
असल में डीटीसी की आर्थिक हालत पहले से ही बहुत खराब है, जो पिछले 5 साल से भारी घाटे में है। साल दर साल घाटा देखें तो 2011-12- 2431 करोड़, 2012- 13- 2914 करोड़, 2013-14- 1363 करोड़, 2014-15- 2917 करोड़, 2015-16-3506 करोड़। केजरीवाल सरकार के फैसले से डीटीसी पर करीब 50 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता। दिल्ली सरकार फिलहाल नए एलजी से टकराव नहीं चाहती, इसलिए इस पर कुछ भी बोलने से बच रही है।
पहले भी नजीब जंग के साथ दिल्ली सरकार के मतभेद रहे हैं। बात इतनी बढ़ गई थी कि अधिकारों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची थी। इस बीच दिसंबर में जंग ने अप्रत्याशित ढंग से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे के बाद हालांकि आप और खुद जंग की तरफ से बेहद सौम्यता और शिष्टता का परिचय दिया गया, लेकिन आप के वरिष्ठ नेता आशुतोष ने ‘लोकतंत्र के हत्यारे जैसा नजीब जंग का बर्ताव’ शीर्षक से लिखे लेख में अपनी असहमतियां उजागर की थीं।
बैजल ने प्रस्ताव वापस लौटाने पर ये तर्क दिए हैं-वित्त मंत्रालय से प्रस्ताव को लेकर कोई चर्चा नहीं की गई। पहले ही से घाटे में चल रही डीटीसी की मौजूदा हालत पर भी ध्यान देना चाहिए था। वित्त मंत्रालय से भी प्रस्ताव पर उनकी प्रतिक्रिया ली जाएगी। दिल्ली सरकार पूरे प्रस्ताव पर फिर से विचार करे।
सूत्रों का कहना है कि सरकार पॉल्यूशन घटाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के मकसद से डीटीसी का किराया घटाने का फैसला लिया था। डीटीसी के बेड़े में फिलहाल करीब 4000 बसें हैं और डीटीसी में रोजाना करीब 35 लाख लोग सफर करते हैं।