नई दिल्ली।
क्या अब प्रत्याशी एक से अधिक सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकेगा, क्या चुनावी परीक्षा पास करने के लिए किसी नेता के लिए सप्लीमेंट्री परीक्षा का विकल्प समाप्त हो जाएगा ? चुनाव आयोग के हलफनामे से तो यही लगता है।
उसने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर एक प्रत्याशी के एक सीट पर ही चुनाव लड़ने की याचिका का समर्थन किया तो केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है।
चुनाव आयोग ने कहा है कि एक उम्मीदवार जब दो जगहों से चुनाव जीतता है तो उसे एक सीट से इस्तीफा देना पड़ता है। ऐसे में इस सीट पर दोबारा चुनाव होते हैं, जिससे अतिरिक्त खर्च होता है।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें एक उम्मीदवार को एक ही सीट पर चुनाव लड़ने की अपील की गई है। इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई शुरू हुई। भाजपा नेता की इस अपील का समर्थन करते हुए चुनाव आयोग ने हलफनामा दायर किया है।
सुप्रीम कोर्ट जुलाई के पहले हफ्ते में इस मामले में सुनवाई करेगा। याचिका के तहत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को चुनौती दी गई है। यह मांग भी की गई है कि संसद और विधानसभा समेत सभी स्तरों पर एक उम्मीदवार के दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश पंडित के मुताबिक, किसी बड़े नेता के मामले में ऐसा होता आया है। जब किसी दिग्गज नेता की प्रतिष्ठा दांव पर होती है तो उसे दो सीटों पर एक साथ चुनाव मैदान में उतार दिया जाता है। इससे उसके सीन से बाहर होने की आशंका कम हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम बड़े नेता एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ते आए हैं। हालांकि वे दोनों सीटों पर चुनाव जीतते भी रहे हैं।
यदि एक प्रत्याशी एक सीट की व्यवस्था कर दी गई तो किसी दिग्गज नेता के लिए अपनी प्रतिष्ठा बचाने का विकल्प नहीं रह जाएगा और उससे देश का धन अनावश्यक रूप से बर्बाद नहीं होगा।