मृत्युंजय कुमार/संपादक, ओपिनियन पोस्ट।
शनिवार 18 मार्च को दोपहर बाद जब योगी आदित्यनाथ दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचे तो वहां उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओमप्रकाश माथुर, प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल, केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र, प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार केशव प्रसाद मौर्य मौजूद थे। ये लोग रूटीन फ्लाइट से लखनऊ जाने की तैयारी में थे। योगी ने सबको अपने साथ चार्टर्ड प्लेन से ही चलने को कहा। शाम करीब चार बजे जब ये लोग लखनऊ एयरपोर्ट पर पहुंचे तब तक इनमें से किसी को अंदाजा नहीं था कि पार्टी नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था। बाहर केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों की भीड़ मौर्य का स्वागत भावी मुख्यमंत्री की तरह कर रही थी। योगी अपने गिने चुने समर्थकों के साथ एक गाड़ी में चुपचाप लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाउस पहुंच गए। बाकी नेता पार्टी कार्यालय। वहां पहुंचने पर केंद्रीय नेतृत्व के साथ आए चारों नेताओं को निर्देश मिला कि योगी को विधायक दल की बैठक में नेता चुना जाना है। इसके बाद भाजपा और लखनऊ का माहौल ही बदल गया। जो समर्थक केशव मौर्य और मनोज सिन्हा के लिए लखनऊ पहुंचे थे, वे अपने गुलदस्तों के साथ वीवीआईपी गेस्ट हाउस पहुंच गए। इसके बाद की कहानी सबको पता है। लखनऊ ही नहीं, पूरा यूपी योगीमय हो चुका था। सकते में पड़े विपक्ष ने आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि योगी के बहाने संघ और मोदी हिंदुत्व का एजेंडा चलाएंगे। योगी राज में शासन प्रशासन की दिशा क्या होगी, इसे लेकर आशंकाएं जताई जाने लगीं। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का क्या होगा। योगी की पूर्व स्थापित छवि के अनुरूप ऐसे न जाने कितने सवाल उठने लगे।
स्थापित छवि
दरअसल योगी की यह पूर्व स्थापित छवि कुछ बुद्धिजीवियों, संगठनों द्वारा गढ़ी गई थी, जो योगी को एक खांचे में प्रस्तुत करते हुए यह समझने की कभी कोशिश नहीं करते थे कि हार्ड हिंदुत्व की राजनीति के अधिकतर आईकॉन चुनाव मैदान में ढह चुके थे या ढहने की स्थिति में थे, तो योगी कैसे लगातार एक ही सीट से न सिर्फ जीतते जा रहे थे बल्कि प्रदेश में अपने प्रभाव क्षेत्र का भी विस्तार कर रहे थे। यह सिर्फ आक्रामक हिंदुत्व के कारण नहीं हो रहा था। बल्कि इसके पीछे सकारात्मक सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता भी थी। इसे स्थानीय मीडिया भी ठीक से तवज्जो नहीं दे रहा था तो दिल्ली और लखनऊ की मीडिया का ध्यान उस ओर जाना कैसे संभव होता। गोरखनाथ मंदिर से जुड़े अस्पताल, स्कूल और कालेजों की शृंखला बड़ी संख्या में आसपास के जिलों के लोगों को भी प्रभावित कर रही थी। इसके साथ कुशीनगर, महाराजगंज जिलों में भुखमरी के शिकार होने वाले मुसहर समुदाय और आसपास के जंगलों में मताधिकार और सरकारी सुविधाओं से वंचित वनटांगिया समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने जो प्रयास किए, वह उनकी स्थापित छवि से उलट थे, संभवत: इसीलिए किसी ने इससे नोटिस नहीं किया या नोटिस नहीं करना चाहा। प्रचंड गरमी के समय जब अधिकतर सांसद विधायक देश विदेश के पहाड़ी इलाकों में ठंडक तलाश रहे होते थे, तब योगी सिर पर गमछा रख कर अग्निपीड़ित किसानों के घर घूम रहे होते थे। इंसेफेलाइटिस यूपी और बिहार के कई जिलों की बीमारी है। इसे लेकर अधिकतर जनप्रतिनिधि औपचारिक दिखावा भी करने का कष्ट नहीं करते थे तो योगी लगातार इस पर आंदोलन चलाकर शासन और सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश करते रहते। एम्स और फर्टिलाइजर के वादे को तो गोरखपुर के लोगों ने स्वप्न ही मान लिया था पर उन्होंने प्रधानमंत्री को सहमत कर एम्स को बनारस से गोरखपुर कराने में सफलता हासिल कर ली थी। सहजनवां सीट से कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ चुके विश्वविजय बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने कभी भी अपने को मुद्दों के लिए पार्टी और क्षेत्र के बंधन में बांधकर नहीं रखा। एक बार हम लोग आमी नदी के प्रदूषण को लेकर कमिश्नर के यहां घेरा डालो डेरा डालो आंदोलन कर रहे थे तो योगी जी ने अपने यहां से आंदोलनकारियों के लिए खाने की सामग्री भिजवा दी थी और आंदोलन में शामिल होकर समर्थन भी दिया था। उनके समर्थक अकसर महंथ अवैद्यनाथ की एक पहल का जिक्र करते हैं, जिसे उन्होंने बनारस के डोमराजा के यहां साधुओं के साथ भोजन करके शुरू किया था। योगी ने सहभोज की इस पहल को वंचित या दलित जातियों से समरसता बढ़ाने के लिए खूब बढ़ावा दिया। इसके पीछे नाथपंथ की वह मूल विचारधारा है जो सनातनी कर्मकांड की जटिलता के समानांतर फूली और फली थी। इस विचारधारा से नेपाल राजपरिवार जुड़ा था तो पिछड़ी और दलित जातियां भी। मुसलिमों को भी इस विचारधारा से दुराव नहीं था। जिस लोकसभा क्षेत्र से योगी चुनाव लड़ते हैं, उस क्षेत्र में न सिर्फ राजपूत बिरादरी के लोग बेहद कम संख्या में हैं, बल्कि पूरा सवर्ण समुदाय अपने बूते चुनाव जिताने की स्थिति में नहीं है। फिर भी योगी वहां लगातार जीत का अंतर बढ़ाते जा रहे थे तो इसका कारण था वहां की पिछड़ी और दलित जातियों का उनके साथ होना।
भौंचक रह गए भाजपाई
योगी को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले की घोषणा जरूर आखिरी समय में हुई पर यह अचानक नहीं था। बिहार चुनाव में हार के बाद से ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रस्तुत करने को लेकर चर्चा चल रही थी। उस चर्चा के दौरान योगी आदित्यनाथ का नाम प्रमुखता से आता था। भाजपा नेतृत्व ने करीब एक वर्ष पूर्व ही इसे लेकर मन बना लिया था। फरवरी 2016 में ओपिनियन पोस्ट में ‘योगी पर दांव’ कवर स्टोरी में योगी को उत्तर प्रदेश में भाजपा का सीएम फेस बनाए जाने की बात कही गई थी। बाद में विधानसभा चुनाव में इस रणनीति के साथ भाजपा उतरी कि मोदी ही मुख्य चेहरा होंगे और सीएम चुनाव के बाद तय किया जाएगा। चुनाव प्रचार के दौरान योगी अमित शाह के सबसे पसंदीदा प्रचारक के तौर पर उभरे। इनकी शुरुआती सभाओं में जनता के रेस्पांस को देखते हुए सभाओं की संख्या बढ़ा दी गई। पांचवें चरण के दौरान अमित शाह ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में अगले मुख्यमंत्री के लिए जो योग्यताएं बताई थीं, उसमें सिर्फ योगी फिट बैठ रहे थे। उस बातचीत में उन्होंने योगी की तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इससे यह साफ लग रहा था कि अमित शाह की पसंद में योगी सबसे ऊपर हैं। चुनाव में बहुमत मिलने के बाद जो नाम मुख्यमंत्री पद के लिए जा रहे थे, उसमें राजनाथ सिंह, मनोज सिन्हा, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ प्रमुख थे। इसके अलावा कई और नाम मसलन दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ सात बार के विधायक सुरेश खन्ना, सतीश महाना के नाम जुड़ गए। सभी नामों के साथ अपने अपने तर्क थे। लेकिन 16-17 मार्च को घटनाक्रम तेजी से बदला और दावेदार स्पष्ट होते गए। राजनाथ सिंह ने स्पष्ट मना कर दिया। केशव मौर्य के बारे में अमित शाह ने कह दिया कि ये सीएम चुनने वालों में शामिल हैं। इसके बाद उनका बीपी भी बढ़ गया और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। हालांकि बाद में मौर्य ने यह कहकर दावेदारी बनाए रखी कि अन्य नामों के साथ उन्होंने अपना नाम भी नेतृत्व के सामने रखा है। इसके बाद मनोज सिन्हा सबसे कन्फर्म नाम बताए जाने लगे। मनोज सिन्हा के गृहक्षेत्र में मिठाइयां बंटने लगीं, उन्हें गार्ड आॅफ आॅनर देने की तैयारी हो गई। वह मीडिया से मुस्कान के साथ अपने सीएम की रेस में होने का खंडन कर रहे थे पर काशी में मंदिरों का दर्शन, पूजन और सोशल मीडिया की सरगर्मी में सिन्हा सीएम माने जा चुके थे। शनिवार को कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने भी आॅफ द रिकार्ड सिन्हा के सीएम बनाए जाने की पुष्टि की। लेकिन दोपहर करीब दो बजे मुरझाई हुई भंगिमा के साथ मनोज सिन्हा की बाइट चैनलों पर चली कि मैं कभी भी सीएम पद की रेस में नहीं था। मीडिया का एक वर्ग पता नहीं क्यों ऐसी खबरें दिखा रहा है। यानी भाजपा नेतृत्व के स्तर पर जो भी चल रहा था, उसमें तीन चार लोगों के अलावा कोई और शामिल नहीं लग रहा था, इसलिए लोग चर्चा के आधार पर अपनी अपनी अटकलें लगा रहे थे। कहा जाता है कि बृहस्पतिवार को अमित शाह ने मौर्य, कलराज मिश्र, योगी सहित यूपी के कई दावेदार नेताओं से मुलाकात की थी। संभवत: उसमें योगी आदित्यनाथ के लिए स्पष्ट संकेत नहीं थे। सूत्रों का कहना है कि उस बातचीत में योगी अपने सामने रखे गए फार्मूले से सहमत नहीं थे, क्योंकि अमित शाह के घर से बाहर निकलते समय उनके चेहरे पर स्वाभाविक भाव नहीं थे। संभवत: उनके सामने यूपी सीएम की जगह कोई दूसरा प्रस्ताव रखा गया था। अगले दिन योगी एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद दोपहर बाद की फ्लाइट से गोरखपुर लौट गए। कहा जा रहा है कि उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कोयंबटूर में संघ नेतृत्व से बात हुई और मौजूदा विकल्पों में संघ ने करीब करीब तय हो चुके मनोज सिन्हा की जगह योगी के नाम पर मुहर लगाई। शुक्रवार को ही शाम पार्टी नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को अगले दिन सुबह दिल्ली बुलाया। क्योंकि गोरखपुर के पत्रकारों का कहना है कि एक चार्टर्ड फ्लाइट सुबह छह बजे ही योगी को रिसीव करने गोरखपुर एयरपोर्ट पहुंच गई थी। ऐसा तभी संभव था जब रात में योगी आदित्यनाथ की पार्टी नेतृत्व से बात हो गई हो। उधर, दिल्ली में अमित शाह के घर के बाहर खड़े पत्रकारों का कहना है कि शनिवार को योगी राष्ट्रीय अध्यक्ष के घर नहीं पहुंचे। संभवत: गोपनीयता बनाए रखने के लिए कहीं और बैठक रखी गई और अमित शाह खुद वहां पहुंचे और योगी को पार्टी नेतृत्व के फैसले से अवगत कराया। महाराष्ट्र के एक केंद्रीय मंत्री के करीबियों का दावा है कि यह बैठक उनके दिल्ली स्थित आवास पर हुई। उसके बाद योगी लखनऊ के लिए रवाना हुए।
शासन की दिशा
विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बाद योगी ने विरोधियों की आशंकाओं को अपने अंदाज में दूर करना शुरू कर दिया। उन्होंने शाम छह बजे के बाद प्रदेश भर से आए कार्यकर्ताओं से मिलते हुए अफसरों को निर्देश देने शुरू कर दिए। कठोर दिनचर्या के आदी योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को ही रात में 11.30 बजे चीफ सेके्रटरी राहुल भटनागर और डीजीपी के साथ बैठक की और जीत के जश्न में हुड़दंग रोकने को कहा। अगले दिन शपथ ग्रहण के बाद लोकभवन में पहली प्रेस कांफ्रेंस में योगी ने साफ कर दिया कि सरकार का एजेंडा सबके साथ सबका विकास का है। उन्होंने साफ कहा कि किसी से भी भेदभाव नहीं किया जाएगा। भ्रष्टाचारियों को किसी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। हालांकि वहां मौजूद यूपी सरकार के एक बड़े अधिकारी इस बात के लिए परेशान दिखे कि कहीं कोई उनके मामलों को लेकर सवाल न उठा दे। इस पहली प्रेस कांफ्रेंस का निहितार्थ निकाला जाए तो इसका मतलब यह था कि वह अब सरकार में हैं और सभी समुदाय के लोग उनकी जिम्मेदारी हैं। उनके जिन बयानों को मुसलिम विरोध के तौर पर देखा जाता रहा है, वह अब पीछे की बात रह गई है और गवर्नंेस मुख्य एजेंडा रह गया है। भाजपा के डुमरियागंज के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि पूरे चुनाव के दौरान योगी कहीं भी सीधे मुसलिम समुदाय के खिलाफ नहीं बोले हैं। वह सिर्फ तुष्टीकरण के, भेदभाव के खिलाफ बोले हैं। किसी वर्ग के साथ भेदभाव की बात उठाना दूसरे वर्ग का विरोध करना नहीं है। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी किसी खास वर्ग नहीं, बल्कि पूरी जनता को साथ लेकर चलने का इरादा रखते हैं। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हरीश श्रीवास्तव कहते हैं कि योगी अगर दंगामुक्त उत्तर प्रदेश, अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त उत्तर प्रदेश की बात करते हैं तो यह किसी एक वर्ग के लिए नहीं है। यही सबका साथ सबका विकास है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में योगी आदित्यनाथ नई जिम्मेदारी को लेकर काफी सजग दिखे। उन्होंने भाजपा के संकल्प पत्र को अपनी प्राथमिकता बताते हुए कहा, ‘भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के सबका साथ सबका विकास करेगी। सत्ता हमारे लिए सुविधा नहीं, जनता की सेवा का मिशन है।’ उन्होंने कहा, ‘सरकारी सिस्टम को चुस्त दुरुस्त किया जाएगा और आम जन के अनुकूल बनाया जाएगा।’
सरकारी तंत्र पर हनक
उत्तर प्रदेश के सरकारी तंत्र पर योगी की हनक पहले दिन से ही दिखने लगी। अगले दिन रविवार को सुबह छह बजे शपथ ग्रहण स्थल का निरीक्षण करने जाना देर तक सोनेवाले अधिकारियों को परेशान कर गया। वे अब योगी के मिजाज और दिनचर्या के अनुकूल खुद को तैयार करने में लगे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि सुबह तीन बजे जागने वाले और 11 बजे सोने वाले नए मुख्यमंत्री को हैंडल कैसे किया जाए। बताया जा रहा है कि नए सीएम आवास में इस संन्यासी राजनेता ने अपने सोने के लिए आरामदेह बेड की जगह तख्त और बिना एसी वाला कमरा चुना है। बिजली विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि योगी ने पहली ही बैठक में नौ सूत्री एजेंडा दे दिया। एमडी से लेकर सभी आला अधिकारी परेशान हैं। रविवार होने के बावजूद सभी इस एजेंडे के काम पर लगे रहे। इस एजेंडे में सबसे ज्यादा जोर आम उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण पर दिया गया है और रोज के निस्तारण की रिपोर्ट मांगी गई। कम निस्तारण वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई। सरकारी दफ्तरों में पान तंबाकू पर रोक, थानों में औचक निरीक्षण, मंत्री और अधिकारियों को संपत्ति का ब्योरा देने का आदेश सरकारी सिस्टम को आगे आनेवाले दिनों का संकेत दे रहे हैं। सभी अधिकारियों को भाजपा का घोषणापत्र जिसे संकल्प पत्र कहा जा रहा है, दे दिया गया है ताकि वे उसे पूरा करने की कार्ययोजना प्रस्तुत कर सकें। भाजपा के प्रदेश मंत्री कामेश्वर सिंह कहते हैं कि पिछली सरकारों की सुस्त कार्यशैली के आदी अफसरों को योगी की शैली नई लग रही होगी पर यह उनका रूटीन है। उनकी मानें तो यह स्पीड कोई एक दिन के लिए नहीं है बल्कि योगी पूरे कार्यकाल में ऐसे ही सक्रिय रहेंगे। माना जा रहा है कि पिछली सरकार में पावरफुल रहे अफसर नवनीत सहगल, नोएडा के चेयरमैन रमा रमन, लखनऊ अथॉरिटी के चेयरमैन सतेंद्र सिंह यादव जैसे अफसरों पर गाज गिरेगी। बिजली घोटाले के आरोपों से घिरे तीन बार सेवा विस्तार पा चुके यूपीपीसीएल के एमडी एपी मिश्रा से इस्तीफा ले लिया गया। एक्सप्रेस-वे निर्माण और अन्य विभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों की सूची बन रही है, जिस पर जल्द ही जांच के आदेश दिए जा सकते हैं। काफी लोगों का मानना है कि शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की विनम्र उपस्थिति इन संभावित जांचों की धार कम करने के लिए थी।
भाजपा की स्थिति
योगी के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा के कुछ नेता जरूर परेशान हैं पर जमीनी स्तर के कार्यकर्ता बेहद उत्साहित दिख रहे हैं। क्योंकि योगी भले ही विकास की बात, सबके साथ की बात कर रहे हैं पर उनके व्यक्तित्व से हिंदुत्व की ध्वनि बहुत स्पष्ट आती है। इससे संघ का 80 बनाम 20 फीसदी की राजनीति का रास्ता तैयार होता है। संघ के एक पदाधिकारी का मानना है कि योगी के उभार से जातियों में विभाजन रुकेगा और वे हिंदुत्व की छतरी के नीचे लामबंद होंगी। उनकी मानें तो इसका असर दूसरे राज्यों की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर भी पड़ेगा। खासकर केरल जैसे राज्य में जहां संघ कार्यकर्ता अकसर हिंसा के शिकार हो रहे हैं। इसे महागठबंधन बनाने की सुगबुगाहट के बीच विपक्षी पार्टियां भी समझने में लगी हैं। उन्हें लगता है कि अगर मोदी योगी की जोड़ी पार्टियों के कोर वोट को इस चुनाव की तरह भाजपा के वोट बैंक में बदल देती है तो महागठबंधन के पास सिर्फ मुसलिम वोट रह जाएंगे। जो पहले ही इस चुनाव में अपना वीटो पावर निरर्थक साबित कर चुके हैं। जैसा दावा है कि तीन तलाक के जरिये इस आधार वोट बैंक में भी सेंध लग गई है। ऐसे में उन्हें भाजपा के मुकाबले के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भी योगी से एक तुलना शुरू होगी। इससे उनकी कार्यशैली में भी परिवर्तन दिख सकता है। भविष्य की राजनीति के लिहाज से इन मुख्यमंत्रियों में से कम उम्र के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और योगी आदित्यनाथ में भाजपा को भविष्य नजर आ रहा है। शुरुआती दौर में तो भाजपा संगठन और मंत्रियों के साथ योगी का अच्छा तालमेल दिखा है। शपथ ग्रहण के दिन भी वह पार्टी दफ्तर पहुंचे और कार्यकर्ताओं, नेताओं से बात की। सरकार की पहली प्रेस कांफ्रेंस में भी श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ सिंह ने सरकार और संगठन में तालमेल की बात दोहराई। दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री के रूप में सरकार में शामिल करना इसी दिशा में कदम है। लेकिन उत्तर प्रदेश भाजपा में प्रभावी अलग अलग नेताओं जैसे राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र और अभी के अध्यक्ष केशव मौर्य जैसे नेताओं के हितों से वह कैसे सामंजस्य बिठाएंगे यह देखना होगा। इस मंत्रिमंडल में एक भी योगी के पहले से करीबी विधायक का नाम नहीं है। कई ऐसे नाम हैं जो पूर्व में योगी के घोर विरोधी भी रहे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को सुचारु रूप से चलाने के लिए शीर्ष नेतृत्व के वीटो के जरूरत पड़ती रहेगी। हालांकि एक भाजपा नेता का कहना है कि जिस तरीके से मुख्यमंत्री बनाने के लिए शीर्ष नेतृत्व योगी के साथ खड़ा हुआ है उसके बाद किसी अन्य मंत्री या नेता के लिए उनकी राह में मुश्किलें खड़ी करना आसान नहीं होगा। उन्हें हर हाल में योगी की स्पीड के साथ कदमताल करना पड़ेगा।
चार चुनौतियां
योगी आदित्यनाथ को लेकर संघ का पहले जो भी रुख रहा हो पर फैसले के बाद उसके पदाधिकारियों में संगठन के कोर मुद्दों को लेकर उत्साह दिख रहा है। केंद्र में मोदी और यूपी में योगी के रहते हुए राम मंदिर जैसे मसले का हल निकाला जा सकता है। हाल में कोर्ट की टिप्पणी के बाद योगी की मदद से ये प्रयास तेज हो सकते हैं। खुद भाजपा सांसद के तौर पर योगी आदित्यनाथ इस मसले को जोर शोर से उठाते रहे हैं। चुनाव प्रचार में भी योगी ने यूपी में सरकार बनने पर इसकी राह में आनेवाली बाधाओं को दूर करने की बात कही थी। अयोध्या मसले से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंथ अवैद्यनाथ और उनके गुरु महंथ दिग्विजय नाथ भी सक्रिय तौर पर जुड़े हुए थे। बताया जाता है कि परिसर में राम जानकी की मूर्तियां महंथ दिग्विजयनाथ के समय में ही रखी गई थीं और राजीव गांधी के समय जन्मभूमि का ताला महंथ अवैद्यनाथ के हाथों से खुलवाया गया था। इसलिए संतों को और संघ को योगी आदित्यनाथ से उम्मीद है।
दूसरी चुनौती है कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर अंकुश की। चुनाव में योगी की अगुवाई में यह मुद्दा जोर शोर से उठाया गया था और जनता इस पर रेस्पांस भी कर रही थी। जनता में योगी की ईमानदार छवि है पर शायद अन्य भाजपा नेता या मंत्री इस पर खरे न उतरें। कुछ लोग इस बात का भी डर जता रहे हैं कि अगर गलत किस्म के लोगों ने योगी को घेर लिया तो उनकी ईमानदारी का असर सरकारी सिस्टम पर ज्यादा नहीं पड़ेगा। ट्रांसफर पोस्टिंग, ठेकेदारी, खनन, नकल माफिया, कमीशनखोरी जैसी राजनीतिक और ब्यूरोक्रेसी की चुनौतियों से पार पाना जरूरी होगा। सकारात्मक पक्ष यह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र में गोरक्षपीठ की सक्रियता के कारण, विपक्षी सांसद के तौर पर वर्षों से संघर्ष के कारण इन मसलों की छोटी छोटी कमजोरियों से भी योगी परिचित हैं, इसलिए ब्यूरोके्रसी को टाइट करने में इन्हें दिक्कत नहीं होगी।
तीसरी चुनौती है कट्टरपंथी तत्वों पर अंकुश की। अतिवादी समर्थकों के उत्साह के कारण समुदाय विशेष और क्षेत्र विशेष में भय का माहौल न बने, इसकी जरूरत है। इसके लिए मुख्यमंत्री की ओर से, प्रशासन की ओर से लगातार मैसेज दिए जाने की जरूरत है। हालांकि पहले दिन से ही सीएम ने इस पर कदम उठाना शुरू कर दिया है।
चौथी चुनौती विकास की गति बढ़ाने की है। केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण विकास को लेकर जनता की उम्मीदें अधिक हैं। संकल्पपत्र के अनुसार कर्ज माफी और अन्य लोकलुभावन वादों को पूरा करने के बाद अतिरिक्त विकास के लिए धन की व्यवस्था करना आसान नहीं है। क्योंकि केंद्र सरकार ने भी कर्ज माफी के लिए मदद देने से इनकार कर राज्य के स्तर पर ही इसकी व्यवस्था करने को कहा है। अगर योगी आनेवाले समय में इन चुनौतियों को पूरा करते हैं तो भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद मोदी के करीब पहुंच जाएगा। (यह स्टोरी 1-15 अप्रैल के ओपिनियन पोस्ट में प्रकाशित हुई है)