मनोहर नायक। एक बड़े अंग्रेजी अखबार के खेल संपादक ने एक बार मुझे बताया था कि उनके यहां क्रिकेट के साथ फुटबॉल पर भरपूर कवरेज इसलिए है कि एक सर्वे से पता चला था कि युवा पीढ़ी की दिलचस्पी फुटबॉल में है और यह लगातार बढ़ रही है। अगर हिंदी अखबारों को अपवाद मानें जो वर्ल्ड कप पर ही फुटबॉल को तवज्जो देते हैं तो यह सामने आया है कि फुटबॉल का कवरेज बढ़ता जा रहा है। वर्ल्ड कप, यूरो, कोपा, चैम्पियन लीग से लेकर कई देशों की लीगों की व्यापक रिपोर्टिंग होती है। टीवी चैनल भी इसमें पीछे नहीं रहते। पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा में फुटबॉल लोकप्रिय है। डूरंड कप, फेडरेशन कप, कैलकटा लीग और इंडियन लीग आदि के साथ देश में मोहन बागान, मोम्मडन स्पोर्टिंग, ईस्ट बंगाल, सलगांवकर क्लब आदि क्लबों का नाम रहा है। अब यह सिलसिला काफी आगे बढ़ गया है।
टीवी की वजह से अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल हमारे ड्राइंग रूम में पहुंच गया है। इंडियन सॉकर लीग शुरू हो गया है जो आईपीएल जैसी भड़काऊ और सनसनीखेज तो नहीं है लेकिन कुछेक नामी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इसमें खेलने लगे हैं। देश में निस्संदेह क्रिकेट से अभी फुटबॉल पीछे है लेकिन उसका जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा है। क्रिकेट खिलाड़ियों के फुर्सत में फुटबॉल खेलने की तस्वीरें अकसर अखबारों में छपती रहती हैं। पेले, मैराडोना, रोनाल्डिन्हो, मैसी के भारत आने पर जोशोखरोश से उनका स्वागत होता है। फुटबॉल प्रेमियों के पसंदीदा खिलाड़ियों में दुनिया भर के नामी खिलाड़ी होते हैं। सबके अपने पसंदीदा क्लब भी हैं। बार्सिलोना, रियल मैड्रिड, मैनचेस्टर सिटी, बेयरन म्युनिख, चेलसी आदि। टाटा मोटर्स के ब्रांड एम्बेस्डर लियोन मैसी हैं और टाटा की नई कार का नाम टियागो है जो मैसी के बेटे का नाम है।
फुटबॉल एक जादू है, रोमांच है, एक उत्तेजना है। लगभग दस महीने चलने वाले सीजन के मैच लोग देर रात जागकर देखते हैं और विश्व कप जैसे ऊर्जा, मस्ती और सनसनी से भरपूर आयोजनों का इंतजार करते हैं। दस जून से फ्रांस में यूरो कप शुरू होने जा रहा है।
अमेरिकी कोपा कप का यह सौंवा साल है। 2016 कोपा अमेरिका सेनटेनेरियो में दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका की 16 टीमों ने भाग लिया। उत्तरी अमेरिका की टीमें हैं अमेरिका, मैक्सिको, जमैका, हैती, कोस्टारिका और पनामा। दक्षिण अमेरिकी टीमें हैं ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलम्बिया, उरुग्वे, पेरुग्वे, बोलिविया, इक्वाडोर, चिली, वेनेजुएला और पेरू। दर्शकों और वैश्विक टेलीविजन की रसाई के बरक्स यह सौंवा आयोजन पिछले साल 2015 के कोपा से आकार, फैलाव और पहुंच में करीब दोगुना है। पहली बार यह आयोजन लैटिन अमेरिका से बाहर हो रहा है। यह दुनिया का सबसे पुराना अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट है। अब तक सबसे ज्यादा नौ बार अर्जेंटीना इसकी मेजबानी कर चुका है। उरुग्वे पंद्रह बार इसे जीत कर शीर्ष पर है। इस बार भी अर्जेंटीना, ब्राजील के साथ उरुग्वे भी इसे जीतने की होड़ में है।
उरुग्वे के अद्वितीय लेखक, पत्रकार, इतिहासकार एदुआर्दो गालेआनो कहते हैं, ‘फुटबॉल का इतिहास खूबसूरती से फर्ज का एक उदास सफरनामा है।’ दरअसल फुटबॉल के दीवाने गालेआनो इस खेल में आए बदलावों से दुखी थे-‘जब यह खेल एक उद्योग बन गया तो उसने इस खेल की खुशी में लिखने वाली खूबसूरती को उसकी जड़ों से उखाड़ दिया। खेल एक तमाशा हो गया है जिसमें कुछ नायक हैं और अनेक तमाशबीन। फुटबॉल अब देखने के लिए बन गया है और यह तमाशा दुनिया का सबसे मुनाफादेह कारोबार बन गया है जिसका ताना-बाना खेल को मुमकिन बनाने के लिए नहीं बल्कि इसमें रुकावट पैदा करने के लिए बना है। पेशेवर खेल की तकनीकी नौकरशाही ने बिजली जैसी तेजी और क्रूर ताकत को फुटबॉल पर थोपने में कामयाबी हासिल की है। यह फुटबॉल खुशियों को नकारता है, कल्पनाओं की हत्या करता है और जुर्रत करने वालों को गैरकानूनी ठहराता है।’
फिर भी इसे वे गनीमत मानते हैं कि, ह्यखुशकिस्मती से मैदान पर अब भी आप कुछ गुस्ताख बदमाशों को देख सकते हैं, भले ही वे काफी अंतराल में ही दिखें जो रोमांच के आनंद की खातिर वंचित स्वतंत्रता को गले लगाने के दुस्साहस से भरा हुए स्क्रिप्ट को दरकिनार कर पूरी विपक्षी टीम, रेफरी और स्टैंडों में खड़ी भारी भीड़ को छकाने की भयंकर भूल कर बैठते हैं। एदुआर्दो ने मेमोरी आॅफ फायर, अपसाइड डाउन, मिरर्स, द बुक आॅफ एम्ब्रेस, चिल्ड्रन आॅफ डेज्स: अ कलेंडर आॅफ ह्यूमन हिस्ट्री, ओपन वीन्स आॅफ लैटिन अमेरिका आदि पुस्तकें लिखीं हैं।
एदुआर्दो ने इन विख्यात किताबों के अलावा फुटबॉल के प्रति अपने अद्भूत प्रेम का इजहार ‘सॉकर इन सन एंड शेडो’ पुस्तक में किया है। इस किताब को खेल पर सर्वश्रेष्ठ पुस्तक कहने पर विवाद हो सकता है पर फुटबॉल पर यह निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। फुटबॉल पर उनकी कुछेक दिलचस्प टिप्पणियों से पहले थोड़ी बातें इस अनोखे लेखक के बारे में करना भी जरूरी है। गरीब, उपेक्षित उरुग्वे के निवासी गालेआनो संघर्षशील, जनसंघर्षों से जुड़े अपने देश समेत अन्य मुल्कों से भी निष्कासित रहे। 1973 में तख्ता पलट होने पर पहले अर्जेंटीना और फिर स्पेन में रहे। 1985 में मुल्क लौटे। एदुआर्दो क्यूबा की क्रांति से प्रभावित 1960 की बूम जनरेशन की उपज थे। वे मार्खेस जैसे लेखकों की कोटि के रचनाकार थे लेकिन उन्हें दुर्भाग्यवश भारत जैसे कई देशों में वैसी प्रतिष्ठा नहीं मिली। पिछले साल जब उनकी मृत्यु हुई तो इसका असर हमें उनकी मृत्यु की खबर में देखने को मिला। ज्यादातर अखबारों में वह नहीं थी। जहां थी भी वहां खेल के पन्ने पर। ऐसा उनकी फुटबॉल वाली किताब की प्रसिद्धि के कारण हुआ। बाद में तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख-टिप्पणियां छपीं।
उनकी सबसे मशहूर पुस्तक 1971 में प्रकाशित लास आबिएर्तास दे अमेरिका लातीना यानी लातिन अमेरिका के रिसते जख्म थी। अंग्रेजी में यह ओपन वीन्स आॅफ लैटिन अमेरिका : फाइव सेंचुरीज आॅफ द पिलेज आॅफ ए कांटिनेंट नाम से आई। इस पर चिली, अर्जेंटीना, उरुग्वे में पाबंदी लगी लेकिन फिर भी दुनिया भर में खूब बिकी। 2006 में एक शिखर सम्मेलन में वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज ने एकाएक इसकी एक प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के हाथों में थमा दी। उसके बाद इसकी लोकप्रियता और बिक्री में तेज उछाल आया। इस किताब में वे तर्क करते हैं कि हमारी हार दूसरों की जीत में निहित थी। हमारी संपदा ने दूसरों को उन्नत करते हुए हमारे लिए हमेशा गरीबी पैदा की। वे मानते थे कि सैनिक और आर्थिक स्वार्थ दुनिया को नष्ट कर रहे हैं। गरीबों को नष्ट करते हुए अमीरों के पास दौलत इकट्ठी हो रही है। दुनिया को सैनिक अर्थव्यवस्था और सैन्य संस्कृति से संगठित किया जा रहा है। ओपन वीन्स के बारे में उपन्यासकार इसाबेल अल्येंदे की यह टिप्पणी गौरतलब है- 1973 में सैनिक शासन के बाद चिली से भागते वक्त मैं अपने झोले में अपने बागीचे की मिरी, कुछ पारिवारिक चित्रों और कपड़ों के साथ यह किताब ले गई। यह किताब अकसर कार्यकर्ताओं, लेखकों, पत्रकारों के थैले में रहती थी।
अपनी पुस्तक मेमोरियो देल फ्यूगो में वे व्यवस्था को एक जगह ऐसे बखान करते हैं कि वह कम्प्यूटर प्रोग्राम जो बैंकर को सचेत करता है, बैंकर जो राजदूत को सचेत करता है, राजदूत जो फौजी जनरल के साथ खाना खाता है, फौजी जनरल जो राष्ट्रपति को मिलने के लिए बुलाता है, राष्ट्रपति जो मंत्री पर रौब दिखाता है, मंत्री जो महानिदेशक को धमकी देता है, महानिदेशक जो प्रबंधक को जलील करता है, प्रबंधक जो अफसर पर चीखता है, अफसर जो कर्मचारियों की तौहीन करते हैं, कर्मचारी जो मजदूरों को फटकारते हैं, मजदूर जो अपनी बीवियों से बदसलूकी करते हैं, बीवियां जो बच्चों को पीटती हैं, बच्चे जो कुत्तों को लात मारते हैं। हॉलीवुड के लिए उनका कहना है- हकीकत फिल्मों की नकल करती है। हर चीज उड़ रही है। बच्चे मैकडोनॉल्ड के हैपी मील में अटलांटिस से मिसाइल हासिल करते हैं। केचअप और खून में फर्क करना मुश्किल से मुश्किलतर होता जा रहा है। वार्डरोब पर लिखा- सबसे ज्यादा प्रचारित तस्वीरों में से एक में बेखौफ ओसामा बिन लादेन एक पगड़ी दिखाता था लेकिन उसने संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्मित यूएस आर्मी जैकेट और टाइमेक्स घड़ी पहन रखी थी।
लगातार जनता के साथ लड़ने, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ लिखने वाले एदुआर्दो अच्छी फुटबॉल के भिखारी थे। सॉकर इन सन एंड शेडो में वे आत्मस्वीकृति में लिखते हैं- सालों बीत गए और अंतत: अपने को स्वीकार करना मैंने सीख लिया। मैं जान गया कि अंतत: मैं कौन हूं। अच्छी फुटबॉल का एक भिखारी! मैं दुनिया भर में, स्टेडियमों में हाथ फैलाए जाता हूं और कहता हूं- भगवान के लिए एक सुंदर मूव! और जब बढ़िया फुटबॉल होती है चमत्कार के लिए मैं धन्यवाद देता हूं। मैं इसकी खाक परवाह नहीं करता कि कौन सी टीम या देश यह कारनामा कर रहा है। फैन के बारे में वे लिखते हैं- सप्ताह में एक बार फैन घर से भाग कर स्टेडियम पहुंच जाता है। हल्ला मचाने वालों के शोर से हवा भरी रहती है। ड्रम्स, पटाखे और बैनर से शहर ओझल हो जाता है, दिनचर्या भुला दी जाती है। मंदिर भर बचा रहता है। फैन चाहें तो सब टीवी पर देख लें पर वह इस पवित्र जगह की तीर्थयात्रा करना पसंद करता है जहां वह अपने देवताओं को उस दिन के राक्षसों के साथ साक्षात युद्ध करते देख सकता है। फैन निश्चित तौर पर जानता है, रेफरी धूर्त और प्रतिद्वंद्वी बेईमान।
खिलाड़ी के बारे में उनके उद्गार हैं- एक ओर स्वर्गिक वैभव उसका इंतजार करता है तो दूसरी तरफ रसातल का उजाड़। पड़ोसी उससे ईष्या करते हैं। स्त्रियां उसके लिए आहें भरती हैं। बच्चे उस जैसा होना चाहते हैं। पहले वह मजे के लिए धूल और गर्द में खेलता था अब वह फर्ज के लिए स्टेडियमों में खेलता है जहां उसके पास जीतने और जीतने के सिवा कोई विकल्प नहीं। व्यापारी उसे खरीदते हैं, बेचते हैं, उधार देते हैं। शोहरत और पैसे के लिए वह यह होने देता है। उसे सैनिक अनुशासन में रखा जाता है। फुटबॉल का खिलाड़ी तीस साल में बूढ़ा हो जाता है। लोग कहने लगते हैं- गोलकीपर के हाथ बांध दो तब भी वह गोल नहीं कर सकता।
एक अध्याय है ब्लैक। 1916 के पहले साउथ अमेरिकन चैम्पियनशिप में उरुग्वे ने चिली को 4-0 से हरा दिया। दूसरे दिन चिली के प्रतिनिधिमंडल ने दबाव डाला कि मैच को खारिज किया जाए क्योंकि उरुग्वे की टीम में दो अफ्रीकन थे। ये दोनों थे इसाबेलिनो ग्राडिन और जुआन डेलगाडो। चार में से दो गोल ग्राडिन ने किए थे। ग्राडिन माटेंवीडियो में जन्मा था। उसके परदादा गुलाम थे। यह वह व्यक्ति था जो हैरतअंगेज तेजी से आने वाली बॉल पर इस आसानी से प्रभुत्व जमा लेता था कि लगता था जैसे वह चल रहा हो। उसका यह कारनामा लोगों को सीटों से खड़ा होने पर मजबूर कर देता था। वह एक क्षण रुके बिना विपक्षी दल को छकाते हुए गोल दाग देता था। जुआन डेलगाडो के भी परदादा गुलाम थे। वह फ्लोरिडा शहर में पैदा हुआ जो उरुग्वे के देहात में है। डेलगाडो मेलों में झाडू के साथ नाच दिखाता था और मैदान में बॉल के साथ। वह खेलते समय बोलता था। उसे प्रतिद्वंद्विंयों को चिढ़ाने में मजा आता था। जब वह बॉल को ऊंची किक मारता था तो विपक्षी खिलाड़ियों से कहता मेरे लिए अंगूरों का वह गुच्छा ले आओ। और जब गोल दागने के लिए शॉट मारता तो गोलकीपर से कहता, इसके लिए कूदो, रेत मुलायम है। उरुग्वे दुनिया का पहला देश था जिसकी राष्ट्रीय टीम में काले खिलाड़ी थे।
फुटबॉल पर कई फिल्में भी बनी। द डेम्न्ड यूनाइटेड, आॅफ साइड, एस्केप टू विक्टरी, बेन्ड इट लाइक बैखम आदि। पांच मई को रिलीज हुई फिल्म पेले : बर्थ आॅफ ए लीजेंड का इस समय लोग लुत्फ उठा रहे हैं। पेले के बारे में गालेआनो कहते हैं- सैकड़ों गीत उस पर हैं। सत्रह साल की उम्र में वह दुनिया का चैम्पियन और फुटबॉल का राजा था। उसके बीस साल के होने के पहले ब्राजील की सरकार ने उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया जिसे निर्यात नहीं किया जा सकता। ब्राजील की टीम के साथ उसने तीन वर्ल्ड कप जीते और अपने क्लब संतोज के लिए दो चैम्पियनशिप। अपने हजारवें गोल के बाद भी उसने गिनती जारी रखी। 80 देशों में उसने 1300 मैच खेले और लगभग 1300 ही गोल किए। एक बार उसने युद्ध रुकवा दिया। नाइजीरिया और बिआफ्रा ने उसे खेलते देखने के लिए युद्ध रोक दिया।
उसे खेलते देखने के लिए युद्धविराम से ज्यादा भी कुछ किया जा सकता है। पेले जब तूफानी गति से दौड़ता है तो वह अपने प्रतिद्वंद्विंयों को ऐसे काटते चलता है जैसे एक गर्म चाकू मक्खन को। जब वह रुकता है तो विपक्षी खिलाड़ी उसके कढ़ाई करते पैरों की भूलभूलैया में खो जाते थे। जब वह कूदता था तब हवा में ऐसे चढ़ जाता था जैसे वह कोई सीढ़ी हो। जब वह फ्री किक लेता था तो किक रोकने के लिए दीवार बने विपक्षी खिलाड़ी अपना मुंह गोलपोस्ट की तरफ चाहते थे ताकि वे गोल देखने से वंचित ना रह जाएं।
वह दूरदराज के एक गरीब घर में पैदा हुआ और सत्ता और संपदा के उस शिखर तक पहुंचा जहां कालों को पहुंचने की इजाजत नहीं है। फील्ड से बाहर होने पर वह अपने समय का एक मिनट भी नहीं देता और एक सिक्का भी उसकी जेब में नहीं गिरता। लेकिन हममें से जिन्होंने उसे खेलते हुए देखा है उन्हें असाधारण सौंदर्य का दान मिला है। अमरता के योग्य वे क्षण हमें यह विश्वास दिलाते थे कि अमरता होती है।