28 नवंबर 2016 को पश्चिम ओडिशा के वकीलों ने दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया, जिसमें केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव, धर्मेंद्र प्रधान, बीजद सांसद ए यू सिंहदेव भी शामिल हुए थे. 10 नवंबर 2017 को वकील कटक में हाईकोर्ट के निकट धरने पर बैठे. वकीलों के 15 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री पटनायक से मुलाकात कर उन्हें स्थिति से अवगत कराया, इस पर उन्होंने पांच सितंबर 2018 को केंद्रीय विधि व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर उनसे पश्चिम और दक्षिण ओडिशा में स्थायी बेंच स्थापित करने के लिए कार्यवाही का अनुरोध किया.
पश्चिम ओडिशा के दस और दक्षिण ओडिशा के कुछ जिलों के न्यायालयों में महीने में तीन दिन काम बंद आंदोलन चल रहा है. हर महीने के आखिरी तीन दिनों के दौरान स्थानीय अधिवक्ता अदालती कामकाज ठप रखते हैं. वजह यह है कि पश्चिम व दक्षिण ओडिशा में उच्च न्यायालय की स्थायी बेंच की स्थापना संबंधी उनकी मांग पर कोई कान धरने को तैयार नहीं है. पश्चिम ओडिशा में तो पिछले छह दशकों के दौरान यह आंदोलन किसी न किसी रूप में सिर उठाता रहा है. न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं, जनप्रतिनिधियों के आश्वासन मिले, कई मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार को पत्र भी लिखे, लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात वाला रहा. स्थानीय अधिवक्ताओं के साथ साथ आम आदमी भी खुद को ठगा सा महसूस करता है. वकील संगठनों का कहना है कि स्थायी बेंच स्थापना की मांग पूरी तरह जायज और तर्कसंगत है. उच्च न्यायालय में लाखों मुकदमे लंबित पड़े हैं, जिनमें ज्यादातर पश्चिम व दक्षिण ओडिशा के जिलों से संबंधित हैं. इन क्षेत्रों के लोगों को न्याय पाने की आशा में कटक जाना पड़ता है. न्याय को आम लोगों के नजदीक लाने के लिए यह जरूरी है कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्थायी बेंच स्थापित की जाए. पश्चिम ओडिशा में यह मांग बहुत पुरानी है और जसवंत सिंह आयोग के मापदंडों पर खरी भी उतरती है.
पश्चिम ओडिशा के प्राण केंद्र संबलपुर में पिछले पांच सितंबर से वकील सडक़ पर हैं. उन्होंने सभी न्यायिक व राजस्व कार्यालयों का कामकाज रोक दिया है. संबलपुर डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन ने आंदोलन का समर्थन करते हुए इसे आगे भी जारी रखने का निश्चय किया है. संबलपुर में वकीलों का अनशन 17 नवंबर से लगातार जारी है. वकील संगठनों ने अपनी मांग को धार देने के लिए पश्चिम ओडिशा के विभिन्न जिलों में आर्थिक नाकेबंदी भी की. लगातार बंद की वजह से आम जन की दिक्कतें बढ़ गई हैं, साथ ही सरकार को भी राजस्व की भारी हानि उठानी पड़ रही है. संबलपुर सर्किल जेल में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. छोटे मोटे अपराधों के लिए जिन्हें जमानत मिल जानी चाहिए, वे जेल में रहने को मजबूर हैं. इलाके में स्थिति बहुत गंभीर हो गई है. राज्य सरकार ने वकीलों से अपील की है कि वे अपना आंदोलन स्थगित कर दें. उसने यह भी आश्वासन दिया कि वह पश्चिम व दक्षिण ओडिशा में हाईकोर्ट की स्थायी बेंच की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है. राज्य सरकार का कहना है कि इसमें देरी के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है.
मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि बेंच की स्थापना के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सहमति और सिफारिश जरूरी है. साल 1991 से 2007 के बीच राज्य सरकार ने कई बार हाईकोर्ट से इस संबंध में विचार करने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने स्वयं आठ नवंबर 2007 को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा था. यही नहीं, सरकार ने राज्य के विभिन्न जिलों में स्थायी या सर्किट बेंच की मांगों का अध्ययन व सिफारिश करने के लिए 11 मार्च 2008 को सी आर पाल आयोग भी गठित किया. आयोग को छह महीने में रिपोर्ट देनी थी, लेकिन उसे लग गए छह साल. रिपोर्ट आई 31 मई 2014 को, लेकिन अभी तक विधानसभा में पेश नहीं हो सकी और न हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इसके बारे में अवगत कराया गया. मुख्यमंत्री पटनायक ने जब 28 सितंबर 2013 को तत्कालीन विधि मंत्री कपिल सिब्बल को पत्र लिखकर राज्य में हाईकोर्ट की बेंच स्थापित करने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया, तो 15 अक्टूबर 2013 को सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस विषय पर उनकी राय मांगी. दो अगस्त 2015 को मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र को भेजे गए अपने जवाब में कहा कि वह राज्य सरकार द्वारा गठित सी आर पाल आयोग की रिपोर्ट पेश होने का इंतजार कर रहे हैं. रिपोर्ट के अध्ययन के बाद ही अदालत कोई राय देगी. और, मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया.
28 नवंबर 2016 को पश्चिम ओडिशा के वकीलों ने दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया, जिसमें केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव, धर्मेंद्र प्रधान, बीजद सांसद ए यू सिंहदेव भी शामिल हुए थे. 10 नवंबर 2017 को वकील कटक में हाईकोर्ट के निकट धरने पर बैठे. वकीलों के 15 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री पटनायक से मुलाकात कर उन्हें स्थिति से अवगत कराया, इस पर उन्होंने पांच सितंबर 2018 को केंद्रीय विधि व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर उनसे पश्चिम और दक्षिण ओडिशा में स्थायी बेंच स्थापित करने के लिए कार्यवाही का अनुरोध किया. उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा कि हाईकोर्ट बेंच के विस्तार के लिए आवश्यक संसाधन राज्य सरकार मुहैया कराएगी. पटनायक के पत्र का तत्काल जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार मुख्य न्यायाधीश के परामर्श व सहमति से पहले बेंच स्थापना के लिए जगह का चयन और आवश्यक भूमि निर्धारण करके बताए. अपने इस जवाब से विधि मंत्री ने गेंद फिर राज्य सरकार के पाले में डाल दी है. वकील संगठन इस जवाब से खुश नहीं हैं और वे इसमें केंद्र सरकार की साजिश देख रहे हैं.
वकीलों की केंद्रीय कार्रवाई समिति के संयोजक अशोक दास दोनों सरकारों के बीच चल रहे पत्र युद्ध से नाखुश हैं. वह कहते हैं कि अधिवक्ता समाज में कहीं कोई मतभेद नहीं है. सभी लोग पश्चिम ओडिशा में स्थायी बेंच की मांग को लेकर एकजुट हैं. हम सब जसवंत सिंह आयोग के निर्देशानुसार बेंच की स्थापना चाहते हैं. इस मुद्दे पर राज्य व केंद्र सरकार के बीच पत्र लिखने और जवाब देने का एक निरर्थक सिलसिला चल रहा हैै. दोनों सरकारें एक दूसरे पर दोष मढकऱ मामले को खींच रही हैं. गौरतलब है कि ब्रिटिश शासनकाल में पश्चिम ओडिशा की बलांगीर रियासत के पाटना गढ़ में छह सितंबर 1940 को अदालत की बेंच स्थपित की गई थी, जिस पर पश्चिम ओडिशा की विभिन्न रियासतों के साथ साथ छत्तीसगढ़ और झारखंड की कई रियासतें भी निर्भर थीं. देश आजाद होने के बाद अप्रैल 1948 में ओडिशा हाईकोर्ट की स्थापना हुई. 1959 में हाईकोर्ट ने बलांगीर और बारीपदा में दो बेंच स्थापित करने का प्रस्ताव दिया, जिसे राज्य सरकार ने स्वीकार नहीं किया. 1961 में प्रयोग के तौर पर बलांगीर में एक बेंच स्थापित करने का प्रस्ताव मिला, उसे भी स्वीकार नहीं किया गया.
संबलपुर में अलग बेंच की स्थापना को लेकर 1983 में पहला आंदोलन हुआ, जो ढाई महीने तक चला. कांग्रेस ने 1974 से 1990 के बीच जारी अपने चुनावी घोषणा पत्रों में इस मांग को शामिल किया. पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बीजू पटनायक ने 1989 में संबलपुर वकील संघ के अध्यक्ष बिपिन बिहारी नायक को पत्र लिखकर आश्वासन दिया था कि वह अगर सत्ता में आए, तो संबलपुर और ब्रह्मपुर में हाईकोर्ट की बेंच स्थापित करेंगे. मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजू पटनायक ने 11 दिसंबर 1990 को संबलपुर में डिवीजन बेंच की स्थापना के लिए मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. इस पर संबलपुर में आंदोलन दोबारा शुरू हो गया. वकीलों ने कोर्ट में ताला लगा दिया, जो 113 दिनों तक लगा रहा. राज्य सरकार ने वकील संगठनों से बातचीत के बाद 13 दिसंबर 1991 को केंद्र सरकार से इस दिशा में कदम उठाने का अनुरोध किया. 2006 में पश्चिम ओडिशा के वकीलों ने एकजुट होकर लडऩे का फैसला किया और 10 जिलों के वकील संगठनों से बातचीत करके केंद्रीय कार्रवाई समिति गठित कर दी गई. सात अक्टूबर 2007 को टिटिलागढ़ के वकीलों ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से पश्चिम ओडिशा के किसी भी जिले में बेंच स्थापित करने की मांग उठाई और 31 दिसंबर तक ऐसा न होने पर आंदोलन का ऐलान कर दिया. इसी बैठक में महीने के आखिरी तीन दिनों में पश्चिम ओडिशा के जिलों में अदालती कामकाज ठप रखने का भी निर्णय लिया गया.
पश्चिम ओडिशा के स्वाभिमान से जोडक़र चलाए जा रहे इस आंदोलन में समय के साथ कुछ दरारें भी दिखाई देने लगी हैं. बेंच की जगह को लेकर मतभेद उभर रहे हैं. संबलपुर के अलावा बलांगीर, राउरकेला व कालाहांडी भी अपने यहां बेंच स्थापना के लिए आंदोलन पर उतर आए हैं. बलांगीर के वकील तो अलग आंदोलन चला रहे हैं. दक्षिण ओडिशा में भी बेंच स्थापना को लेकर विभिन्न जिलों के बीच जबरदस्त मतभेद है. ब्रह्मपुर के साथ कोरापुट के वकील भी अपने यहां बेंच स्थापित करने की मांग कर रहे हैं. दूसरी तरफ कटक के वकील राज्य के किसी अन्य जिले में हाईकोर्ट बेंच स्थापना का विरोध कर रहे हैं. जबकि इस मांग को लेकर राज्य के विभिन्न जिलों में होड़ सी लगी है. सभी जगह धरना, हड़ताल, रैलियों का आयोजन करके कामकाज ठप किया जा रहा है. नतीजतन एक गंभीर मांग प्रहसन में तब्दील हो गई है.