भारत-बांग्लादेश छिटमहल विनिमय समन्वय समिति के सहायक सचिव दीप्तिमान सेन गुप्ता दोनों देशों के बीच हुए भूमि सीमा समझौते से काफी खुश हैं। उनके मुताबिक, भारत और बांग्लादेश की सरकारों ने उनकी मांगों को पूरा किया जिसकी खातिर वे 21 फरवरी, 1994 से संघर्षरत थे। दीप्तिमान सेन गुप्ता बताते हैं कि खालिदा जिया के सत्ता में आने के बाद बहुचर्चित तीन बीघा समझौता भारत और बांग्लादेश के बीच हुआ। उन दिनों पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे। वर्ष 1947 से 1990 तक दोनों देशों के बीच खुली सरहद थी।1992 से भारत सरकार ने सीमाओं की घेराबंदी शुरू कर दी। इससे दोनों देशों की जनता के सामने बड़ी कठिनाई पैदा हो गई। लिहाजा भारत-बांग्लादेश छिटमहल विनिमय समन्वय समिति का गठन 1994 में किया गया। उन दिनों दीपक सेन गुप्ता इस संगठन के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनका कहना है, ‘लोग सोचते हैं कि इस समझौते से छिटमहल में रहने वाले महज 51,000 लोगों को फायदा हुआ है जबकि मेरा मानना है कि इससे करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है। दुनिया में यह पहली घटना है कि दो लोकतांत्रिक देशों ने स्वेच्छा से अपनी भौगोलिक सीमीएं बदलीं। यह विश्व के अन्य देशों के लिए एक मिसाल है। अगर वैश्विक जगत भारत और बांग्लादेश के बीच हुए इस समझौते पर विचार करे और सीख ले तो दुनिया की सभी विवादित सरहदों की समस्या सुलझाई जा सकती है।’
उनके मुताबिक, पूरी दुनिया में रोजाना औसतन 600 सुरक्षाकर्मी और नागरिक सरहद विवाद के चलते अपनी जान गंवाते हैं। दरअसल, वैश्विक जगत में सीमा संबंधी विवाद द्वितीय विश्व युद्ध की देन है। उनका कहना है कि भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा विवाद को सुलझाने की पहल तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की, इंदिरा गांधी ने उसे संवारा, पीवी नरसिम्हा राव ने उसे नया रूप दिया, अलट बिहारी वाजपेयी ने ज्वाइंट बाउंड्री वर्किंग ग्रुप (जेबीडब्ल्यूजी) का गठन कर इसे गति दी, मनमोहन सिंह ने इसे आगे बढ़ाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दशकों से चले आ रहे इस विवाद को खत्म करने का काम किया। गुप्ता बताते हैं कि इस समझौते के बाद उनके संगठन का संघर्ष खत्म हो गया है। हालांकि जनता की भलाई के लिए अब सिटीजन राइट्स कॉर्डिनेशन कमेटी (सीआरसीसी) का गठन किया जाएगा। इसके तीन अंग होंगे- इंडियन पार्ट, बांग्लादेशी पार्ट और माइग्रेटेड पार्ट।