उमेश सिंह
यहां सन्नाटा पसरा है। खतरनाक खामोशी छाई हुई है। उदासी भी घुली हुई है। जुबां तो चुप है पर आंखें बोल रही हैं। लेकिन आंखों की पुतलियां भय को संकेतित कर रही हैं। शांतिजनित सन्नाटे में आनंद की धारा उमगती रहती है लेकिन माखी गांव में भयजनित सन्नाटा है जो मन में बेचैनी बुन रहा है, हृदय में घबराहट पैदा कर रहा है। यहां वेदना बौनी हुई थी, संवेदना का रंग खो गया था, धुल गया था। इसीलिए एक तूफान आया और जो अब जा चुका है। सब कुछ तहस-नहस करके, बर्बाद करके। दरअसल यहां ‘महल’ और ‘झोपड़ी’ के बीच का संघर्ष था। ‘झोपड़ी’ से निकली एक चिंगारी ने महल को जलाकर राख कर दिया। महल तो अब भी खड़ा है लेकिन उसका मिथक मिट गया, टूट गया। बाहुबल इतराता है तो विनाश रचता है। ज्ञानबल इतराता है तो बंधन की गांठें खुलती हैं। मुक्तिकामी चेतना निर्मित होती है। मनुष्य ‘चेतना का गौरीशंकर’ बन जाता है। माखी में बाहुबल वर्षों से बाहुबल बढ़ते-बढ़ते इतराया था, जिसने विनाश रच दिया।
माखी गांव में घुसते ही बाएं हाथ पर कई एकड़ में फैला एक विशाल परिसर है जिसमें तीन दरवाजे हैं। इसी परिसर के पहले गेट पर वीरेंद्र सिंह शिक्षा निकेतन इंटर कालेज का बोर्ड लगा है। दूसरे गेट पर कुछ भी नहीं लिखा है लेकिन बांगरमऊ के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का आवास है। चारदीवारी फिर बार्इं उस ओर मुड़ गई जहां पीड़िता का बिना पलस्तर का दो कमरे का मकान है। इसी मकान के पहले विशाल हाते का एक छोटा सा तीसरा गेट है। अठारह मजरों में बंटे इस गांव की आबादी तकरीबन चालीस हजार है। मतदाता बीस हजार हैं। लेकिन यह सड़क सन्नाटा बुन रही थी। आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के प्रभाव और सीबीआई की अतिसक्रियता के कारण सड़क सूनी है, गलियों में चुप्पी है, घर के बाहर दरवाजे पर तख्ता, चारपाई और कुर्सियां तो लगी हैं लेकिन वे भी खाली हैं। वैसे तो सरसरी तौर पर विधायक के आवास के सामने कोई दिखता नहीं, लेकिन ज्यों ही विशाल परिसर के सामने पहले गेट पर गाड़ी का पहिया थमा, त्यों ही घूरती हुई कुछ नजरें सामने आ गर्इं। बोलने की कोशिश… लेकिन सामने वाला हिमालय की तरह चुप। दूसरा गेट खुला था। परिसर के भीतर कोई दिख नहीं रहा था। जैसे ही चित्र उतारने की कोशिश की, भीतर से नई उम्र के दो लोग एकाएक प्रकट हो गए और आंखों ही आंखों में इशारा कर ऐसा करने से मना कर दिया। विधायक के घर के तीसरे गेट और उससे सटे पीड़िता के मकान की ओर पुलिस का जबरदस्त पहरा था। कुछ पुलिसकर्मी पेड़ के नीचे कुर्सियों पर बैठे थे जबकि कुछ सामने के एक बरामदे में लगी चारपाई पर लेटे और बैठे थे। पीड़िता के मकान के दोनों दरवाजे बंद थे। दोनों दरवाजों के बीच की दीवार पर एक बोर्ड टंगा है जिस पर ‘वीआईपी इंटरप्राइजेज’ लिखा है और इसके स्वामी महेश सिंह हैं। ये महेश सिंह पीड़िता के चाचा हैं जिन्होंने भतीजी को न्याय दिलाने के लिए अपने मोबाइल को माध्यम बना लिया। मुख्यमंत्री और अफसरों को सौ से ज्यादा बार ट्वीट किया। बातचीत को रिकार्ड करता रहा और दिल्ली में हर रोज अपनी उपस्थिति का वीडियो क्लिप भी बनाता रहा। बीते तीन अप्रैल की शाम को विधायक के भाई अतुल सिंह सेंगर और उनके गुर्गांे विनीत मिश्रा, सोनू, बउवा और शैलू पीड़िता के पिता को इसी घर से खींचकर बाहर लाए थे। नीम के पेड़ से बांधकर बुरी तरह पीटा और जेल भी भिजवा दिया जहां उनकी मौत हो गई। पीड़िता के घर और विधायक के तीसरे गेट के बीच महज कुछ कदमों की दूरी है। आरोप है कि इसी गेट से पीड़िता के पिता को हाते में ले गए जहां उनकी निर्मम पिटाई की गई। ये वही अतुल सिंह सेंगर हैं जिनके ऊपर वर्ष 2004 में बालू खनन को लेकर हुए विवाद में तत्कालीन एएसपी रामलाल पर गंगाघाट के शुक्लागंज में फायर करने का आरोप लगा था। एएसपी की तहरीर पर तत्समय गंगाघाट थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था।
माखी गांव में हर किसी के होंठ मानो सिले हुए हैं। लेकिन दृश्य बेबाकी से बोल रहे हैं। विधायक सेंगर के हाते में भगवान शिव जी और हनुमान जी का भव्य मंदिर है। ऐसी सघन अनुभूति हुई कि मानो मंदिर की भव्यता और दिव्यता को ग्रहण लग गया हो। यहां भययुक्त सन्नाटा समा गया हो। चीखों की चीत्कार से संवेदित हो विराजमान देवता शायद मंदिर से चुपचाप चले गए! बाहरी चमक-दमक तो वैसी ही है लेकिन मंदिर की प्राणधारा में बहने वाली ‘आध्यात्मिक-विभुता’ से यह रीता-रीता लग रहा था। ऊर्जाहीनता की अनुभूति हुई। ऐसा हो भी क्यों न? जहां देवता विराजमान हैं। प्राणप्रतिष्ठित विग्रह है। वहीं पर इतना बड़ा अत्याचार आखिर क्यों किया गया? करने वालों के आखिर हाथ क्यों नहीं कांपे? पीड़िता के पिता की चीखों से क्या देवता नहीं हिल गए होंगे? कंपित नहीं हुए होंगे? उनके कंपित होकर कुपित होने का परिणाम है कि एक नन्ही सी झोपड़ी से उठी चिंगारी ने महल को जला दिया, उसकी प्रतिष्ठा को राख कर दिया। तीन दशक से जो सेंगर परिवार अपनी ताकत की बदौलत माखी गांव में ही नहीं उन्नाव जिले में मिथक बना हुआ था, उसका तिलिस्म टूट गया। उसकी प्रभुता के किले के कंगूरे ढह गए।
तीसरे गेट से दो युवा बाहर आए और हमारे इर्द-गिर्द मडराने लगे। मैंने बातचीत करने की कोशिश की लेकिन लगातार निष्फल हो रहा था। बहुत कुरेदने के बाद उन लोगों ने थोड़ी देर बात की। पीड़िता किशोरी और उसके चाचा पर बोलते रहे। कहा कि जिस विधायक ने इस परिवार को शरण दी, जरूरत पड़ने पर मदद की, वही लोग दुश्मन हो गए हैं। किशोरी के पिता के पिटाई प्रकरण पर तो ये युवा चुप्पी साधे रहे लेकिन किशोरी के साथ दुष्कर्म प्रकरण पर बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि समूचा जिला जानता है कि विधायक का इस मामले में चरित्र कितना मजबूत है। वह ऐसा नहीं कर सकते हैं। उन्हें राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। पीड़ित किशोरी के दिल्ली में रह रहे चाचा को साजिशकर्ता बताया जो विरोधियों के हाथों में खेल रहा है। कातर स्वर में कहा कि ‘अब बचा क्या है, सब कुछ खत्म हो गया’। मीडिया पर भी तंज कसते हुए कहा कि ‘सिर्फ एक पक्ष को ही दिखाया जा रहा है। क्या यही पत्रकारिता है?’
सिविल लाइंस स्थित चौधरी चरण सिंह सिंचाई निरीक्षण भवन चार स्तरीय सख्त सुरक्षा घेरे में जकड़ दिया गया है। यहीं पर पीड़ित किशोरी का परिवार रह रहा है। मुख्य गेट पर जांच पड़ताल और फिर भीतर दाखिल होते ही बरामदे में पुलिस बल का एक जत्था। बरामदे के बाद भीतर निरीक्षण भवन में खाकी वर्दीधारी जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं। जिस समय ओपिनियन पोस्ट की टीम पहुंची तो वहां पर पीड़ित पक्ष के ग्यारह सदस्य थे। सुरक्षा कर्मियों ने सीबीआई का हवाला दे पीड़िता से बात कराने से मना कर दिया लेकिन इसी बीच पीड़ित किशोरी की एक महिला रिश्तेदार बाहर आ गई और बोली कि मैं बात करूंगी, आप लोग क्यों रोक रहे हैं? बरामदे में थोड़ी देर बात करके वह हमें भीतर उस कमरे की ओर लेकर गई जहां पर पीड़ित किशोरी थी। पीड़िता बेड पर लाल रंग की समीज और काले रंग की सलवार में पल्थी मारे बैठी थी। उसकी आंखों में न डर था और न ही भय। आत्मविश्वास से लबरेज उसका चेहरा दर्प से दीपित हो दपदपा रहा था। ऐसा हो भी क्यों न? जो कल तक पुलिस से भागता था, उसका परिवार चार स्तरीय सख्त सुरक्षा घेरे में और जो सुरक्षा के घेरे में रहते थे, वे या तो जेल में हैं या फिर पुलिस के डर से भागे-भागे फिर रहे हैं। सच्चे अर्थों में जनतंत्र की यही रवायत है। लोकतंत्र की यही ऊष्मा है। यही जम्हूरियत की उर्वर पूंजी थी, है और रहेगी भी। हम ‘बसाढ़वंशी’ हैं। दुनिया में लोकतंत्र का आदिम सिरा जिस बिंदु पर जाकर ठहर जाता है, वह बसाढ़ गांव है। प्राचीन युग में उसी बसाढ़ गांव (वैशाली) मेंं लोकतंत्र का पहला बिरवा रोपा गया था जो अब विशाल बरगद बन घनी शीतल छाया दे रहा है। लेकिन कभी-कभी इस पर संकट के बादल मडराने लगते हैं। लोकतंत्र पर ऐसी ही बदली छायी थी उन्नाव में, जहां सिपाही से लेकर उच्च अधिकारी तक बाहुबली विधायक के इशारे पर लोकतंत्र का मान-मर्दन कर रहे थे, उसे सिसकियां भरने पर मजबूर कर रहे थे। जनतंत्र में पीड़ित जन सिसक रहा था और तंत्र थाने से लेकर जेल और अस्पताल में ठहाके मार रहा था। लोकतंत्र के दो खंभे पिलपिले हो गए थे, भुरभुरे हो गए थे। विधायिका और कार्यपालिका दोनों पाए कमजोर हो गए थे लेकिन यह हमारी जम्हूरियत की खूबसूरती है कि जब सब डगमग-डगमग कर रहे थे तो विपदा की इस घड़ी में लोकतंत्र के तीसरे खंभे न्यायपालिका ने डेमोक्रेसी की लाज रख ली। कमरे में पीड़िता अपनी तीन बहनों, एक भाई, माता और दादी व अन्य रिश्तेदार के साथ थी।
पीड़िता से मैंने मुंह को दुपट्टे से ढकने को कहा तो उसने कहा, ‘मैंने इंसाफ के लिए जंग छेड़ दी है तो अपना चेहरा क्यों ढकंू? क्यों अपने को छिपाऊं?’ कई बार अनुरोध करने पर उसने दाहिनी और रखे दुपट्टे को उठाया और झट अपने मुंह पर बांध लिया। मुंह पर बांधने के दौरान ही कहा, ‘कहिए तो सभी को बुला लें। यहां पर मेरे परिवार से जुड़े इस समय ग्यारह लोग हैं।’ उसने अपनी महिला रिश्तेदार को इशारा किया और कमरे के पीछे की ओर आंगन से एक-एक करके सभी आने लगे। आंगन की ओर भी सुरक्षा के नजरिये से महिला पुलिसकर्मी थी जो कमरे में दाखिल हो गई। पीड़िता काफी देर तक अपनी व्यथा-कथा सुनाती रही। उसके स्वर में निराशा नहीं थी बल्कि इलाके के लिए पिछले तीन दशक से अजेय और दुर्जेय बन चुके बांगरमऊ के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर व उनके परिजनों-गुर्गों को कानून के फंदे में फंसाने के लिए जान हथेली पर रखकर किए गए सतत संघर्ष से मिली विजय से जनित आशावादी स्वर था।
सिविल लाइंस स्थित विधायक का बंगला चुप्पी साधे हुए है। कभी यह समर्थकों और फरियादियों से खचाखच भरा रहता था लेकिन ईश्वर की आवाजहीन लाठी ऐसी पड़ी कि इसके खाते में सूनापन दर्ज हो गया। गेट पर एक पत्थर चस्पा हुआ है जिस पर काले अक्षर में जगदेव सिंह उत्कीर्ण है। यह नाम विधायक के बाबा का है जो पुलिस विभाग में अधिकारी रहे। विधायक के पिता मुलायम सिंह का नाम यहां नहीं मिला। लाल रंग का टंगा एक बोर्ड जगदेव सिंह के बगल ही लगा है जिस पर कार्यालय कुलदीप सिंह सेंगर विधायक बांगरमऊ उन्नाव दर्ज है। यह घर जिस तिराहे पर है, उसी के सामने विधायक के छोटे भाई मनोज सिंह सेंगर का विशाल हाते वाला बड़ा सा मकान है। ये पत्रकार भी हैं। दूरभाष के जरिये लंबरदार-लंबरदार का संबोधन कई बार किया गया और अपना पक्ष रखने का अनुरोध किया गया लेकिन वे न मिलने को तैयार हुए और न ही फोन पर ही इस सिलसिले में कोई बातचीत की। ’